ऑस्ट्रेलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी के बाइनर स्पेस प्रोग्राम के तीन क्यूब सेटेलाइट्स धरती की निचली कक्षा में जलकर खत्म हो गए। इसकी वजह है सूरज की गर्मी। सूरज इस समय भयानक गुस्से में है। यह गुस्सा सोलर मैक्सिमम फेज़ की वजह से है। सूरज का सोलर मैक्सिमम फेज़ यानी ज्यादा गर्मी, ज्यादा रेडिएशन और ज्यादा जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म।
बाइनर
वैसे तो नूंगर भाषा में बाइनर का मतलब फायरबॉल होता है। लेकिन बाइनर पर्थ के सबसे पहले राष्ट्रीय लोगों को भी कहा जाता है। इनके नाम पर ही स्पेस प्रोग्राम बनाया गया था।
असमय ही खत्म हो हो गए सैटेलाइट्स
ये तीनों सैटेलाइट्स समय से पहले ही खत्म हो गए। ये धरती के ऊपर 2000 किलोमीटर की कक्षा से थोड़ा कम ऊंचाई पर चक्कर लगा रहे थे। लेकिन वो धीरे-धीरे वायुमंडल के नजदीक आने लगे। बाइनर-2, 3 और 4 की यह स्थिति देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए। ये सिर्फ दो महीने ही अंतरिक्ष में जीवित रह पाए। जबकि इन्हें 6 महीने के लिए भेजा गया था।
आइए समझते हैं तीनों सैटेलाइट्स के जलने की असली वजह…
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस समय सूरज अपने सोलर मैक्सिम में चल रहा है। यानी 11 साल का वो पीरियड जब सूरज में सबसे ज्यादा गतिविधियां होती हैं। सौर धब्बे बनते हैं। उनमें ज्यादा विस्फोट होता है। ज्यादा सौर लहरें और तूफान निकलते हैं। चार्ज्ड कणों की लहरें निकलती हैं। इसकी वजह से सैटेलाइट्स पर सीधा असर पड़ता है।
क्या है सोलर मैक्सिमम
सोलर मैक्सिमम यानी सूर्य का अधिकतम। सूर्य के 11 साल के सौर चक्र के दौरान सबसे ज़्यादा गतिविधि का समय होता है। इस दौरान सूर्य पर कई बदलाव होते हैं। जैसे-
1.सूर्य की सतह पर नज़र आने वाले धब्बे यानी सनस्पॉट की संख्या बढ़ जाती है।
2. सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र पलट जाता है।
3. सूर्य से ज़्यादा तूफ़ान निकलते हैं।
4. पृथ्वी पर ज़्यादा नॉर्दन लाइट्स यानी ऑरोरा दिखने लगते हैं।
सोलर मैक्सिममयानी खतरा
सोलर मैक्सिमम के दौरान होने वाले बदलावों से पृथ्वी और पूरे सौरमंडल पर असर पड़ता है। इन बदलावों से संचार और नेविगेशन प्रणालियां, उपग्रह और अंतरिक्ष यात्री प्रभावित हो सकते हैं। साथ ही, बिजली आपूर्ति नेटवर्क, रेडियो संचार, खनिज अन्वेषण, पाइपलाइन सुरक्षा जैसे बुनियादी ढांचे को भी खतरा हो सकता है।
2019 में हुई थी सोलर मैक्सिमम की शुरुआत
सिर्फ सैटेलाइट्स ही नहीं बल्कि धरती पर ज्यादा नॉर्दन लाइट्स यानी अरोरा देखने को मिलता है।11 साल पूरा होते ही यह वापस ठंडा हो जाता है। फिर 11 सालों तक इस तरह की गतिविधियां कम हो जाती हैं। सोलर मैक्सिमम की शुरुआत 2019 में हुई थी। जब मैक्सिमम का मध्य हिस्सा चल रहा होता है, तब सूरज से बहुत सारे तूफान निकलते हैं।
सूरज के मौसम की भविष्यवाणी मुश्किल
हैरानी इस बात की है कि सूरज के मौसम को लेकर वैज्ञानिक ज्यादा भविष्यवाणी भी नहीं कर सकते हैं। इस समय सोलर साइकिल 25 चल रहा है। पिछले कुछ महीनों से सूरज की गतिविधियां उम्मीद से डेढ़ गुना ज्यादा हो रही हैं। जो भी सैटेलाइट्स 1000 किलोमीटर की ऊंचाई या उससे कम दूरी पर धरती का चक्कर लगाते हैं, उन्हें वह वायुमंडलीय खिंचाव महसूस होता है। ऐसे में सैटेलाइट्स को उनकी कक्षा में रखना मुश्किल हो जाता है।
आर्बिट में सैटेलाइट्स को रखना होता है मुश्किल
इससे बचने के लिए सैटेलाइट्स को अपने इंजन ऑन करने पड़ते हैं, ताकि वो अपने ऑर्बिट में बने रहे। जैसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन या स्टारलिंक। लेकिन क्यूब सैटेलाइट्स में इतनी चीजें नहीं होती। इसलिए ही बाइनर स्पेस प्रोग्राम के तीनों सैटेलाइट्स जलकर खत्म हो गए। वो धरती के वायुमंडल में आ गए थे। अब सूरज 2030 में सोलर मिनिमम की तरफ जाएगा।