आज के डिजिटल दुनिया में बच्चे कम उम्र में ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना शुरू कर दे रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में हर आधे सेकेंड में कोई न कोई बच्चा पहली बार ऑनलाइन दुनिया में दाखिल होता है। मगर यह ऑनलाइन क्रांति अपने साथ कई गंभीर चुनौती भी लेकर आई है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि जब सोशल मीडिया का इस्तेमाल लत की हद तक पहुंच जाए, तो यह न केवल मानसिक सेहत बल्कि शारीरिक समस्याओं का भी कारण बन सकता है। यही वजह है कि दुनियाभर में सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारियों को बढ़ाने की मांग जोर पकड़ रही है। खासतौर पर बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा पर फोकस करते हुए कई देश नए कानून बना रहे हैं।
इसी दिशा में ऑस्ट्रेलिया ने एक कदम उठाया है जिसने एक तरफ तारीफ बटोरी है तो दूसरी तरफ आलोचना का सामना किया है। ऑस्ट्रेलिया ने गुरुवार को 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इंटरनेट मीडिया का प्रतिबंध लगाने को मंजूरी दे दी है। ऑस्ट्रेलिया की निचली संसद में एक ऐसा विधेयक पास किया गया है जो 16 साल से कम उम्र के बच्चों को फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस्तेमाल करने से रोकता है। सीनेट की मंजूरी के बाद ये विधेयक कानून बन जाएगा। ऐसा कदम उठाने वाला ऑस्ट्रेलिया विश्व का पहला देश बन गया है।
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी एल्बनीज ने बिल का किया समर्थन
प्रधानमंत्री एंथनी एल्बनीज ने भी बिल का समर्थन किया। 25 नवंबर को संसद में बोलते हुए एल्बनीज ने सोशल मीडिया को टेंशन बढ़ाने वाला, ठगों और ऑनलाइन अपराधियों का हथियार बताया था।
उन्होंने कहा-
“मैं चाहता हूं कि ऑस्ट्रेलियाई युवा फोन छोड़कर फुटबॉल, क्रिकेट और टेनिस खेलें।”
सरकार का कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई युवा के लिए सोशल मीडिया नुकसानदायक हो सकता है। 14 से 17 साल की उम्र के लगभग 66%ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने ऑनलाइन बहुत हानिकारक कंटेट देखा है, जिसमें नशीली दवाओं का इस्तेमाल, आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाना शामिल है। इसी को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने इस साल एक आयु सीमा तकनीक का परीक्षण शुरू किया था। सरकार का कहना है कि ऐसा वो उन मां-बाप के लिए कर रही है जो अपने बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
टेक कंपनियों ने किया विरोध
बिल पास होने से पहले ही इसका विरोध भी शुरू हो गया था। 100 से भी ज्यादा ऑस्ट्रेलियाई और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने एक खुला पत्र लिखा था जिसमें उम्र सीमा को बहुत सख्त बताया गया है। टेक कंपनियों का कहना है –
“उम्र की सीमा तय करने को लेकर एक रिसर्च के परिणाम आने वाले हैं, तब तक सरकार को ये बिल पास नहीं करना चाहिए। परिणामों के अभाव में, न तो उद्योग और न ही ऑस्ट्रेलियाई लोग बिल के लिए जरूरी उम्र के पैमाने को समझ पाएंगे न ही ऐसे उपायों के असर समझ पाएंगे।”
युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली संस्था रीचआउट ने भी इस कानून पर आपत्ति जताई। संस्था ने कहा-
“73 फीसदी युवा सोशल मीडिया के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सहायता लेते हैं और बैन से यह सुविधा बाधित हो सकती है।”
यही नहीं, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार आयुक्त लोरेन फिनले ने भी बिल की आलोचना की है।
वहीं, ऑस्ट्रेलियाई डिजिटल उद्योग समूह, DIGI की प्रबंध निदेशक सुनीता बोस ने कहा-
“हमारे पास विधेयक है, लेकिन हमारे पास ऑस्ट्रेलियाई सरकार से मार्गदर्शन नहीं है कि इस कानून के अधीन आने वाली सेवाओं के लिए कौन सी सही विधियां अपनानी होंगी।”
हालांकि, यह प्रतिबंध प्रमुख सहयोगी अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया के संबंधों को तनावपूर्ण बना सकता है, जहां एक्स के मालिक एलन मस्क ट्रंप प्रशासन में काफी अहम भूमिका में हैं। मेटा, टिकटाक और एक्स जैसी कंपनियां इस प्रतिबंध के अधीन होंगी। इससे You Tube को छूट दी गई है क्योंकि इसका स्कूलों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।
मस्क ने किया था विरोध
एलन मस्क ने इस महीने एक पोस्ट में कहा था कि यह सभी ऑस्ट्रेलियाई इंटरनेट तक पहुंच को नियंत्रित करने का एक पिछले दरवाजे का तरीका लगता है। अधिकतम तकनीकि दिग्गज अमेरिका के ही हैं, जिन पर प्रभाव पड़ने वाला है। ऑस्ट्रेलिया पहला देश है, जिसने इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्मों को सामग्री साझा करने के लिए मीडिया आउटलेट्स को रॉयल्टी का भुगतान करने के लिए बाध्य किया।
नियम नहीं माने तो लगेगा भारी जुर्माना
संसद में भारी बहुमत से इस बिल को मंजूरी मिली। बिल के पक्ष में 103 वोट पड़े और विरोध में 13 वोट। अब यह सीनेट में पास होने की राह पर है। सीनेट की मंजूरी के बाद ये विधेयक कानून बन जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि इसे सत्तारूढ़ लेबर पार्टी और विपक्षी लिबरल पार्टी दोनों का समर्थन मिला है। इसलिए माना जा रहा है कि सीनेट में भी बिना रुकावट के यह पास हो जाएगा।
विधेयक के मुताबिक माता-पिता की सहमति या पहले से मौजूद सोशल मीडिया अकाउंट्स के लिए कोई छूट नहीं दी जाएगी। इसकी बड़ी बात यह भी है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को खुद बच्चों को इन मंचों से दूर रखने का बंदोबस्त करना होगा। कानून बनने के बाद, प्लेटफॉर्म के पास प्रतिबंध को लागू करने के तरीके पर काम करने के लिए एक साल का वक्त होगा। इसमें कामयाब नहीं होने पर उन्हें भारी जुर्माना भरना पड़ेगा जो कुल 32.5 मिलियन डॉलर यानी 270 करोड़ होगा।
रॉयटर्स के अनुसार-
“और भी कई देशों में कानून के माध्यम से बच्चों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग को रोकने की बात कही है, लेकिन इस मामले में ऑस्ट्रेलिया की नीति सबसे सख्त है।”
ऑस्ट्रेलियाई कानून का करते हैं सम्मान: मेटा
फेसबुक और इंस्टाग्राम के मालिक मेटा के प्रवक्ता ने कहा, “स्वाभाविक रूप से, हम ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा तय किए गए कानूनों का सम्मान करते हैं। हालांकि, हम उस प्रक्रिया के बारे में चिंतित हैं, जिसमें सबूतों पर उचित विचार किए बिना कानून को जल्दबाजी में पारित कर दिया।”
ब्रिटिश सरकार भी सोशल मीडिया बैन की तैयारी में
ऑस्ट्रेलिया के नक्शे कदम पर चलते हुए, ब्रिटिश सरकार भी 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया बैन पर विचार कर रही है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन के टेक्नोलॉजी सेक्रेटरी पीटर काइल का कहना है-
“हम ऑनलाइन सुरक्षा तय करने के लिए जो भी करना होगा, करेंगे। खासतौर पर बच्चों के लिए।”
पीटर काइल ने यह भी कहा कि युवाओं का स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के प्रभावों को लेकर और ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है। अभी इसे लेकर अभी तक हमारे पास कोई ठोस सबूत नहीं है।
बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए अमेरिका में भी है कानून
अमेरिका में तो बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए 26 साल पहले ही कानून बना दिया था। इस कानून का नाम है, ‘चिल्ड्रेन ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट’। इसके तहत 13 साल से कम उम्र के बच्चों से जानकारी जमा करने से पहले वेबसाइटों को माता-पिता की अनुमति लेनी पड़ती है। वहीं 2000 में, ‘चिल्ड्रेन इंटरनेट प्रोटेक्शन एक्ट’ के तहत स्कूलों और लाइब्रेरी में बच्चों को गैर-जरूरी कंटेंट से बचाने के लिए इंटरनेट फिल्टर लगाना अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि, कानूनों पर यह आलोचना हुई है कि यह बच्चों के बीच उम्र के इस्तेमाल में धोखाधड़ी को बढ़ावा देते हैं, उनकी जानकारी और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकारों को सीमित करते हैं।
फ्रांस और नार्वे ने भी इस दिशा में बढ़ाया है कदम
फ्रांस देश ने स्कूलों में 15 साल तक के बच्चों के लिए मोबाइल फोन पर बैन लगाने पर ट्रायल शुरू किया है। अगर ये ट्रायल सफल होता है तो पूरे देश में लागू किया जा सकता है। यही नहीं फ्रांस में ये भी कानून है कि 15 साल से कम उम्र के बच्चे माता-पिता की अनुमति के बिना सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। वहीं, नार्वे जैसे यूरोपीय देश ने भी हाल ही में ऐलान किया कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल की उम्र सीमा को 13 से बढ़ाकर 15 वर्ष किया जाएगा।
एक भारतीय कम से कम 11 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद
रिसर्च फर्म रेडसियर के मुताबिक इंडियन यूजर्स हर दिन औसतन 7.3 घंटे अपने स्मार्टफोन पर नजरें गड़ाए रहते हैं। इसमें से अधिकतम टाइम वे सोशल मीडिया पर बिताते हैं, जबकि अमेरिका यूजर्स का औसतन स्क्रीन टाइम 7.1 घंटे और चीनी यूजर्स का 5.3 घंटे है। सोशल मीडिया ऐप्स भी इंडियन यूजर्स ही सबसे ज्यादा यूज करते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में एक इंसान के औसतन 7 सोशल मीडिया अकाउंट्स हैं, जबकि एक भारतीय कम से कम 11 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद है।
सोशल मीडिया से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- दुनिया में कुल 4.9 अरब सोशल मीडिया यूजर्स हैं।
- 2027 में दुनिया में 5.85 अरब यूजर्स हो जाएंगे।
- 85%यूजर्स मोबाइल पर सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं।
- दुनिया में सबसे ज्यादा 102.10 करोड़ यूजर्स चीन में हैं।
- 75.50 करोड़ यूजर्स के साथ भारत दूसरे नंबर पर है।
- 30.20 करोड़ यूजर्स के साथ अमेरिका तीसरे नंबर पर है।
- भारत में प्रति यूजर 11.4 सोशल मीडिया अकाउंट हैं।
- अमेरिका में प्रति यूजर 7.1 अकाउंट हैं।
- दुनिया में लोग 2.35 घंटे सोशल मीडिया यूज करते हैं।
- 2.91 अरब यूजर्स वाला फेसबुक सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफार्म है।
- दुनिया में 2.56 अरब यूजर्स यूट्यूब के हैं।
- वॉट्सऐप दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है जिसे 2 अरब यूजर्स इस्तेमाल करते हैं।