अमेरिका में 5 नवंबर को चुनाव है। अमेरिकी लोकतंत्र के 231 साल के इतिहास में दूसरी बार ऐसा हो रहा है, जब कोई महिला राष्ट्रपति उम्मीदवार है। सबसे पहले 2016 में हिलेरी क्लिंटन प्रेसिडेंट कैंडिडेट थीं, वहीं इस चुनाव में भारतवंशी कमला हैरिस हैं।
पर ऐसा क्यों है कि अमेरिका के 23 दशक पुराने राजनीतिक इतिहास में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन पाई? पिछले 60 सालों में 60 से ज्यादा देशों में महिला राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री चुनी हैं। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि दुनिया का सबसे ताकतवर लोकतांत्रिक देश अमेरिका अब तक ऐसा नहीं कर पाया है!
अमेरिका को अब तक क्यों नहीं मिली कोई मैडम प्रेसिडेंट
आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्या है बड़ी वजह…
सामाजिक वजह
अमेरिकी राजनीति की एक्सपर्ट आइरीन नतिविदाद के मुताबिक दुनिया के दूसरे देशों की तरह अमेरिका में भी महिलाओं को कई बुनियादी अधिकार पुरुषों के मुकाबले बहुत बाद में मिले। जैसे आजादी से पहले अमेरिका स्कूलों में लड़कों को पढ़ना-लिखना दोनों सिखाया जाता था, लेकिन लड़कियों को लिखना नहीं सिखाया जाता था। इस कारण महिलाएं पढ़ तो सकती थीं, लेकिन लिख नहीं पाती थीं। महिलाएं दस्तखत के तौर पर अपने नाम की जगहX लिखा करती थीं। महिलाओं के पास प्रॉपर्टी के अधिकार भी नहीं थे। इन वजहों के चलते वे सामाजिक तौर पर पिछड़ने लगीं। उन्हें हर क्षेत्र में पुरुषों का मुकाबला करने मे समय लगा।
सर्वे एजेंसी गैलप के मुताबिक 1937 में 64% लोगों का मानना था कि महिलाएं राष्ट्रपति पद के काबिल नहीं हैं। उनका कहना था कि राजनीति पुरुषों की दुनिया है और इसे ऐसे ही रखा जाना चाहिए। एजेंसी के अनुसार अब भी 5% से ज्यादा वोटर महिलाओं को लेकर यही सोच रखते हैं।
राजनीतिक वजह
7 लोगों को अमेरिका का फाउंडिंग फादर माना गया है। इनमें कोई भी महिला नहीं है। अमेरिका में पहला राष्ट्रपति चुनाव 1789 में हुआ था लेकिन इसमें महिलाओं को वोट डालने का भी अधिकार नहीं था। उन्हें यह अधिकार आजादी के करीब 141 साल बाद 18 अगस्त, 1920 में मिला।
अमेरिकी राजनीतिक मामलों के एक्सपर्ट डेबी वाल्स कहते हैं कि बाकी देशों में लोग पार्टी को वोट करते हैं और फिर पार्टी पीएम का चुनाव करती है। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। यहां वोटर सीधे प्रेसिडेंट के लिए वोट करते हैं, इसके चलते महिलाओं के लिए मुश्किल होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका के लोगों का मानना है कि महिलाओं में युद्ध जैसे मुश्किल हालातों में नेतृत्व के लिए शारीरिक, मानसिक क्षमताएं नहीं हैं, जबकि पुरुषों में ये गुण वंशानुगत होते हैं।
आर्थिक वजह
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादातर अरबपति ही लड़ पाए हैं। अमेरिका में चुनाव लड़ना बहुत खर्चीला होता है। 1987 में पेट्रीसिया श्रोएडर ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटाई पर फंड्स इकट्ठा न कर पाने के कारण वे प्राइमरीज से पहले ही बाहर हो गईं।
CNN में राजनीतिक मामलों की जानकारी प्रो वाल्श का मानना है कि अमेरिकी चुनाव में उम्मीदवार का आर्थिक रूप से संपन्न होना एक जरूरी शर्त बनती जा रही है। महिलाएं यहां पिछड़ जाती हैं। इसके अलावा चुनाव जीतने के लिए पैसा जुटाना भी एक बड़ी चुनौती है।
अमेरिकी इतिहास में जब-जब किसी महिला का चेहरा राष्ट्रपति उम्मीदवार के रुप में सामने आया, आखिर क्या हुआ…
राष्ट्रपति बनना चाहती थीं, देश छोड़ने की नौबत आ गई
अमेरिका की महिला नेता, विक्टोरिया क्लेफिन वुडहल ने सबसे पहले राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी पर अपना हक जताया था। वुडहल 1838 में ऐसे परिवार में जन्मीं थीं जो शहर-शहर घूम कर जादुई दवाएं बेचने का दावा करता था। हालांकि, उन दवाओं में शराब के अलावा कुछ नहीं होता था।
वुडहल जब 15 साल की थीं तभी उनकी शादी एक झोलाछाप डॉक्टर से हो गई थी। पति के शराब पीने से तंग आकर उन्होंने 12 साल बाद उसे तलाक दे दिया। उसके बाद वह न्यूयॉर्क में अपनी बहन के साथ रहने लगी और एक सैलून खोल लिया। यहां एक कस्टमर से वुडहल को शेयर मॉर्केट और राजनीति का ज्ञान हासिल हुआ। वुडहल वॉल स्ट्रीट की पहली महिला ब्रोकर बन गईं। उन्होंने स्टॉक मार्केट से तब 7 मिलियन डॉलर कमाए और मैगजीन शुरू की। इसमें महिलाओं और मजदूरों के मुद्दों पर लिखा जाता था। कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल का पहला अंग्रेजी संस्करण इसी मैगजीन में छपा था।
वुडहल सेक्स की आजादी, लिव इन रिलेशन का समर्थन करती थीं। 1870 में इक्यूअल राइट्स पार्टी ने उन्हें राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार घोषित कर दिया। वुडहल सिर्फ 34 साल की थीं, जबकि अमेरिका में चुनाव लड़ने की उम्र 35 साल है। वे चुनाव नहीं लड़ पाती फिर भी वुडहल से नफरत करने वाले नेताओं ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया। उन पर अश्लीलता का प्रचार करने के आरोप लगे। राष्ट्रपति चुनाव का दिन वुडहल ने जेल में बिताया। उन पर कम्युनिज्म और लिव इन रिलेशनशिप जैसे विषयों पर लिखने की वजह से कई मुकदमें दर्ज हो गए। इससे परेशान होकर उन्हें अमेरिका छोड़ ब्रिटेन जाना पड़ा।
पति से विरासत में मिली राजनीति, रूस ने शैतान कहा
मार्गरेट चेस स्मिथ किसी बड़ी पार्टी से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा करने वाली पहली महिला थीं। मार्गरेट को राजनीति अपने पति क्लाइड स्मिथ से विरासत में मिली थी। क्लाइड रिपब्लिकन पार्टी के बड़े नेता थे। 1940 में उनकी मौत हो गई थी। मरने से पहले उन्होंने एक प्रेस रिलीज जारी कराया, जिसमें उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत पत्नी को सौंपने की घोषणा की थी। मार्गेट ने अपने पति की जगह चुनाव लड़ा और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव पद के लिए चुनी गईं। मार्गरेट 1948 में मेन राज्य की सीनेटर बनीं।
1964 में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर अपना नाम आगे किया। यह पहली बार था जब किसी रिपब्लिकन पार्टी की महिला नेता ने इस पद के लिए दावेदारी की।
मार्गरेट चेज स्मिथ ने एक भाषण में कहा, “कुछ लोगों को लगता है कि औरतों को व्हाइट हाउस तक पहुंचने की महत्वाकांक्षा नहीं रखनी चाहिए। ये मर्दों की दुनिया है। उसे वैसे कही रखा जाना चाहिए।”
मार्गरेट ने जिस दिन अपनी उम्मीदवारी की चाहत जाहिर की वॉशिंगटन पोस्ट के एक पत्रकार ने उसी दिन उसकी कैंपेन को नॉन सीरियस घोषित कर दिया। मार्गरेट के पास उतना पैसा नहीं था कि वह दूसरे रिपब्लिकन प्रत्याशियों के साथ मुकाबला कर सकें।
प्रचार के दौरान उन्होंने कहा था, “महिलाएं भी इंसान हैं। उम्मीद है कि लोग मुझे वोट करेंगे।”
हालांकि वह उम्मीदवारी का चुनाव हार गईं। मार्गरेट अपने वक्त की मशहूर लीडर थीं। वामपंथ की कड़ी आलोचना करने की वजह से उन्हें सोवियत संघ में खूब पहचाना जाता था। सोवियत संघ के सुप्रीम लीडर निकिता ख्रुश्चेव ने कहा था, “मार्गरेट महिला के रूप में शैतान हैं।”
अश्वेत होने से ज्यादा महिला होने की सजा मिली
शर्ली चिसहोम डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की रेस में शामिल होने वाली पहली महिला बनीं। वे 1968 में न्यूयॉर्क से सांसद चुनी गईं। इस तरह वे यह उपलब्धि हासिल करने वाली देश की पहली अश्वेत महिला बनीं।
शर्ली ने 1972 में अपनी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का ऐलान करते हुए कहा था, “मैं अश्वेत हूं और मुझे इस पर गर्व है पर मैं सिर्फ अश्वेतों की उम्मीदवार नहीं। मैं औरत हूं, मुझे इस पहचान पर नाज है पर मैं सिर्फ औरतों की उम्मीदवार नहीं। मैं अमेरिका के सभी लोगों की उम्मीदवार हूं।”
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक शर्ली जब राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के लिए चुनाव लड़ रही थीं, तभी अलबामा के गवर्नर जॉर्ज वालेस पर हमला हो गया। वह अश्वेतों के खिलाफ नफरती भाषण देने के लिए जाने जाते थे। फिर भी शर्ली हॉस्पिटल में उनसे मिलने गईं। इससे डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े अश्वेत नाराज हो गए और उन्होंने शर्ली को वोट नहीं दिया। प्राइमरी चुनाव में उन्हें सिर्फ 152 डेलीगेट्स का समर्थन मिला जो उम्मीदवार बनने के लिए नाकाफी था।
शर्ली ने 2003 में एक इंटरव्यू में कहा था, “अश्वेत होने की तुलना में मुझे एक महिला होने की वजह से ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ा।”
एक अश्वेत महिला होकर राजनीति में बड़ी पहचान बनाने की वजह से उन्हें ‘फाइटिंग शर्ली’ कहा जाता था। शर्ली का कहना था, “यदि कोई आपको टेबल पर बैठने की जगह नहीं दे, तो अपने लिए एक फोल्डिंग कुर्सी ले आइए।”