भारतीय दाल अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) का जैविक तरीके से तैयार जैविक रोगनाशक दलहनडर्मा अब दलहन फसल पौधों के जड़ों में लागने वाले रोगों से छुटकारा दिलाएगा। इससे किसानों को पेस्टिसाइड का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा और उनका उत्पादन भी बढ़ जाएगा। दलहनडर्मा के बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए लैब का विकास किया जाएगा। इसके लिए प्रदेश सरकार से 2 करोड़ रुपए का अनुदान मिलने वाला है।
अरहर, चना, मसूर समेत विभिन्न दालों की खेती करने वाले किसानों को पौधे की जड़ से होने वाले आधा दर्जन से ज्यादा रोगों से जूझना पड़ रहा है। दलहन फसलों की जड़ों में लगने वाली बीमारियों में उखठा, कालर राठ, ड्राई रूट राठ, वेट राठ प्रमुख हैं। ऐसे रोगों से किसानों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। बीमारी से पौधों को बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ता है। साथ ही उत्पादन में भी कमी आती है। जड़ से होने वाली बीमारियों के बारे में किसानों को बहुत बाद में तब जानकारी मिल पाती है जब पौधे बड़े हो जाते हैं। जबकि बीमारी की शुरुवात जड़ों से ही होती है। आईआईपीआर के विज्ञानियों ने इससे बचाव के लिए दलहनडर्मा व दलहनडर्मा-1 नाम से जैविक रोगनाशक तैयार किया है।
दरसल भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान दलहनी फसलों पर शोध का एक शीर्ष संस्थान है । इसकी स्थापना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा प्रमुख दलहनी फसलों पर मूलभूत, रणनीतिक एवं प्रयुक्त शोध के लिए एक अग्रणी संस्थान के रूप में की गयी है । संस्थान के क्रिया-कलापों में आधारभूत सूचनाओं का सृजन, उन्नतशील प्रजातियो का विकास, प्रभावी फसल प्रणाली तथा उपयुक्त फसल उत्पादन एवं संरक्षण तकनीकी का विकास, जनक बीज उत्पादन और उन्नत तकनीकी का प्रदर्शन एवं हस्तांतरण सम्मिलित हैं । इसके साथ ही, संस्थान देश भर में फैले हुए परीक्षण केन्द्रों के विशाल नेटवर्क के माध्यम से दलहनी फसलों पर किए जा रहे शोध कार्यों का कौशलयुक्त समन्वयन भी करता है ।