आंकड़े दे रहे गवाही, यूपी और बिहार में बह रही है महिला सशक्तिकरण की बयार

बिहार और यूपी में ये परिवर्तन की बयार 2001 के बाद से ही बहने लगी थी, लेकिन इस बहार के नतीजे अब सामने आने लगे हैं। पूरे देश में जहां घरेलू मामलों में फैसले लेने में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, वहीं बिहार इस मामले में दिल्ली से भी आगे हैं।
बिहार में 75 फीसदी महिलाएं घरेलू फैसले लेने में हिस्सेदारी निभाती हैं, वहीं दिल्ली में ये आंकड़ा एक फीसदी कम यानी 74 फीसदी ही है। शादी की उम्र में सुधार महिला सशक्तिकरण और साक्षरता का बड़ा पैमाना है। बिहार में एक दशक पहले यानी 2005-06 के मुकाबले 2015-16 में 18 साल से कम उम्र में महिलाओं की शादी के मामलों में 21 फीसदी की कमी आई है।
यूपी और बिहार की महिलाएं हुईं सशक्त
गरीब, पिछड़े और महिला सशक्तिकरण के मामले में फिसड्डी राज्यों की श्रेणी में आने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार की महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं। ऐसा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 (NFHS-4) के आंकड़े बता रहे हैं। जागरूक और सशक्त महिलाएं अपने परिवार और बच्चों का अब ज्यादा ख्याल रख पाती हैं। महिला सशक्तिकरण के मामले में उत्तर प्रदेश ने भी शानदार प्रगति की है। महिलाओं की शादी की उम्र और फैमिली प्लानिंग का सीधा असर कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट) पर पड़ता है, टोटल फर्टिलिटी रेट में यूपी में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। NFHS-4 के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 1.1 की कमी आई है। बच्चों के वैक्सीनेशन, घरेलू मामलों में हिस्सेदारी में भी उत्तर प्रदेश की महिलाओं में काफी सुधार आया है।
ऐसे में साफ है बिहार, उत्तर प्रदेश की महिलाएं सशक्तिकरण की राह पर हैं। अब ये भी जानना जरूरी है कि इस बदलाव के कारण क्या हो सकते हैं। कह सकते हैं कि महिलाओं के सशक्तिकरण में पंचायत चुनाव का खास योगदान है। देशभर के स्थानीय चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधत्व बढ़ रहा है। फिलहाल, उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनाव में महिलाओं के लिए 33 फीसदी का आरक्षण है, वहीं इस आरक्षण से कहीं ज्यादा 44 फीसदी महिलाएं ग्राम प्रधान हैं। खास बात ये भी है कि इन निर्वाचित महिला प्रधानों में 39 फीसदी की उम्र 21-35 साल के बीच है। ये आंकड़ा पुरुष प्रधानों से बेहतर है।
बिहार में स्थिति हुई बेहतर
2006 में बिहार के इस फैसले के बाद उस साल 55 फीसदी महिलाएं ग्राम प्रधान चुन कर आईं थी। बता दें कि देश का संविधान पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की 33 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करता है। देश के कुल निर्वाचित सरपंचों में से अभी 44 फीसदी तो महिलाएं ही हैं।
महिला प्रधानों का बढ़ा दबदबा
ऐसी प्रत्यक्ष भागीदारी ने 'प्रधानपतियों' का कॉन्सेप्ट खत्म किया है। पहले माना जाने लगा था कि प्रधान पति ही गांव की पंचायत चलाते हैं। महिलाएं बस नाम की प्रधान होती हैं। ये मान्यता अब खत्म हो रही है। अब महिला ग्राम प्रधान आगे आकर पंचायतों का नेतृत्व कर रही हैं उनके हाथ में सत्ता आने के बाद लड़कियां ज्यादा संख्या में स्कूल जाने लगी है। यूपी, बिहार में कम उम्र में लड़कियों की शादी के मामले में भी भारी कमी आई है। सत्ता जब महिलाओं के हाथ में हैं, तो वो फैमिली प्लानिंग और बच्चों के वैक्सीनेशन जैसी जरूरी कदमों को ज्यादा से ज्यादा उठा रही हैं और दूसरों को भी जागरूक कर रही हैं।
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