विद्धुत वितरण निगम किसी भी रूप में स्मार्ट प्रीपेड मीटर पर होने वाला खर्च उपभोक्ता पर नहीं डाल सकते हैं। प्रदेश विद्धुत नियामक आयोग के इस फैसले के बाद उपभोक्ताओं को राहत मिली है।
प्रदेश के विद्धुत वितरण निगमों ने नियामक आयोग में याचिका लगाकर मांग की थी कि उन्हें स्मार्ट प्रीपेड लगाने पर 27342 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड रहे हैं। इस खर्च कि वसूली उपभोक्ताओं से कराई जाए जबकि उपभोक्ता परिषद कि ओर से इसे नियम के वीरुद्ध करार दिया गया था।
आरडीएसएस योजना के खर्च अनुमोदन की याचिका पर विद्धुत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार व सदस्य संजय कुमार सिंह ने शुक्रवार को फैसला सुनाया। उन्होने कहा कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना पर होने वाले किसी भी खर्च की भरपाई विद्धुत उपभोक्ता से किसी भी रूप में नहीं की जा सकती है। चाहे वह वार्षिक राजस्व आवश्यकता का मामला हो या बिजली दर का मामला हो अथवा टू अप का मामला हो।
दरअसल, केंद्र सरकार की योजना आरडीएसएस (संशोधित वितरण क्षेत्र योजना) के तहत बिजली कंपनियों को राज्य के सभी बिजली उपभोक्ताओं के यहां स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने हैं। इसके लिए केंद्र सरकार ने 18,885 करोड़ रुपये बतौर अनुदान दिया है।
गौर करने की बात यह है कि राज्य में बिजली कंपनियों ने जिस दर पर मीटर खरीदे हैं उससे मीटर का कुल खर्चा 27,342 करोड़ रुपये पहुंच गया है। लगभग 45 प्रतिशत ज्यादा खर्चे की भरपाई किसी तरह से उपभोक्ताओं से करने की भनक लगने पर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने नियामक आयोग का दरवाजा खटखटाया था।