सुप्रीम कोर्ट ने UP बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट की बैधता बरकरार रखी है। यानी उत्तर प्रदेश में मदरसे चलते रहेंगे और 16000 मदरसों में पढ़ने वाले 17 लाख विद्यार्थी सरकारी स्कूल नहीं भेजे जाएंगे।
मदरसा बोर्ड को हायर एजुकेशन का सिलेबस व किताबें तय करने का अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला खारिज कर दिया, जिसमें मदरसा एक्ट को असंवैधानिक बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मदरसा एक्ट के सभी प्रावधान मूल अधिकार या संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का उल्लंघन नहीं करते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट के उस प्रावधान पर रोक लगा दी, जिसमें मदरसों कोPG और रिसर्च का सिलेबस तय करने का अधिकार था। यानी अब मदरसा बोर्ड हायर एजुकेशन का सिलेबस और किताबें तय नहीं कर पाएंगे।
धर्म निरपेक्षता का मतलब ‘जिओ और जीने दो’: डीवाई चंद्रचूड़
5 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार देने वाले फैसले पर रोक लगा दी थी। केंद्र और UP सरकार से इस पर जवाब भी मांगा था। इस मामले में 22 अक्टूबर 2024 को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में सुनवाई हुई थी। चीफ जस्टिस ने कहा था, “धर्मनिरपेक्षता का मतलब है, जिओ और जीनेदो।”
क्या है UP मदरसा बोर्ड कानून
- UP मदरसाबोर्डएजुकेशनएक्ट 2004 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित कानून था।
- इस कानून को राज्य में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए लागू किया गया था।
- इस कानून के तहत मदरसों को न्यूनतम मानक पूरा करने पर बोर्ड से मान्यता मिल जाती थी।
मदरसा एक्ट का उद्देश्य
- एक्ट का उद्देश्य मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना।
- छात्रों को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करना।
- मदरसों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ना।
एक्ट के खिलाफ पहली 2012 में दाखिल हुई थी याचिका
2004 में मुलायम सरकार ने मदरसा एक्ट 2004 लागू किया। इसके खिलाफ पहली बार 2012 में याचिका दायर हुई। ये याचिका दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में दाखिल की थी।
इसके बाद 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज, 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। सभी मामलों का नेचर एक था। सभी ने एक्ट को रद्द करने की मांग की थी। कहा था, ‘धार्मिक शिक्षा से समाज में भेदभाव पैदा हो रहा है।’ इसके बाद कोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया। कुछ लोगों का मानना है कि यह कानून मदरसों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने से रोकता है।
धर्म के आधार पर अलग-अलग प्रकार की शिक्षा मुहैया कराना धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन: हाईकोर्ट
22 मार्च, 2024 को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 86 पेज का फैसला सुनाया। कोर्ट ने मदरसा को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इसके बाद ही यूपी सरकार को स्कीम बनाकर मदरसों के बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजने को कहा था।
कोर्ट ने कहा, “यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है। विभिन्न धर्मों के बच्चों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। धर्म के आधार पर उन्हें अलग-अलग प्रकार की शिक्षा मुहैया नहीं कराई जा सकती। अगर ऐसा किया जाता है तो यह धर्म निरपेक्षता का उल्लंघन होगा।”
हाईकोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं: सुप्रीम कोर्ट
हाईकोर्ट के फैसले को मदरसा अजीजिया इजाजुतूल उलूम के मैनेजर अंजुम कादरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 5 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट में पहली बार सुनवाई हुई। कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “हाईकोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्म निरपेक्षता का उल्लंघन करता है।” यहां तक कि यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में मदरसा एक्ट का बचाव किया था। इसके बाद 22 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही है: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट का कहना था कि मदरसों के छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश ठीक नहीं है। देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही है। बौद्ध भिक्षुओं को कैस प्रशिक्षित किया जाता है? अगर सरकार कहती है कि उन्हें कुछ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान की जाए तो यह देश की भावना है
प्रदेश में 8441 मदरसों को नहीं प्राप्त मान्यता
दरअसल, UP सरकार को सामाजिक संगठनों और सुरक्षा एजेंसियों से इनपुट मिले थे कि अवैध तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है। इस आधार पर उत्तर प्रदेश परिषद और अल्पसंख्यक मंत्री ने सर्वे कराने का फैसला लिया था। इसके बाद हर जिले में 5 सदस्यीय टीम बनाई गईं। इसमें जिला अल्पसंख्यक अधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक शामिल थे।
इसके बाद 10 सितंबर 2022 से 15 नवंबर 2022 तक मदरसों का सर्वे कराया गया था। इस समय सीमा को बाद में 30 नवंबर तक बढ़ाया गया। इस सर्वे में प्रदेश में करीब 8441 मदरसे ऐसे मिले थे, जिनकी मान्यता नहीं थी। सबसे ज्यादा मुरादाबाद में 550 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे मिले थे। इसके बाद सिद्धार्थनगर में 525 और बहराइच में 500, बस्ती में 350 मदरसे बिना मान्यता मिले थे।
राजधानी लखनऊ में 100 मदरसों को नहीं प्राप्त मान्यता
वहीं, राजधानी लखनऊ में 100 मदरसों की मान्यता नहीं थी। इसके अलावा प्रयागराज-मऊ में 90, आजमगढ़ में 132 और कानपुर में 85 से ज्यादा मदरसे गैर मान्यता प्राप्त मिले थे।
सरकार के मुताबिक प्रदेश में फिलहाल 15,613 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। अक्टूबर 2023 में यूपी सरकार ने मदरसों की जांच के लिए का गठन किया था। मदरसों को हो रही विदेशी फंडिंग की जांच कर रही है।
इन बिंदुओं पर हुआ था मदरसों का सर्वे…
- मदरसे का नाम क्या है?
- संचालन करने वाली संस्था?
- कब स्थापित हुआ था?
- छात्रों की सिक्योरिटी के प्रबंध क्या हैं?
- पेयजल और फर्नीचर की व्यवस्था क्या है?
- बिजली सप्लाई कैसे होती है?
- टॉयलेट कितने हैं?
- मदरसे में विद्यार्थियों की संख्या?
- शिक्षक की संख्या और सिलेबस क्या है?
- मदरसे की आय का स्त्रोत क्या है?
- विद्यार्थी का किसी अन्य संस्था से रजिस्ट्रेशन है क्या?
- गैर सरकारी समूह की संबद्धता कहां से है?