प्रदेश की बिजली जा सकती हैं निजी हाथों में

ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ते घाटे के मद्देनजर प्रदेश की बिजली आपूर्ति व्यवस्था को अब निजी क्षेत्र को सौपां जाएगा। पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पर्टेनरशिप) माडल के तहत पहले-पहल राज्य के सर्वाधिक घाटे के पूर्वाचल व दक्षिणाचल डिस्काम (विधयुत वितरण निगमों) वाले क्षेत्रों को निजी हाथों में सौपा जाएगा। सोमवार को पावर कार्पोरेशन के अध्यक्ष डॉ आशीष कुमार गोयल ने शक्तिभवन मुख्यालय में डिस्काम के प्रबंध निदेशकों से लेकर मुख्य अभियन्ताओं की बैठक में सभी से ऊर्जा क्षेत्र को घाटे से उबरने के बारे में सुझाव मांगे। ज़्यादातर ने उड़ीसा में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत टाटा पावर द्वारा की जा रही बिजली आपूर्ति के माडल का अध्ययन कर उसे अपनाने का सूझाव दिया।

आरडीएसएस को लेकर बुलाई गई बैठक में अध्यक्ष द्वारा वितरण निगमों की खराब वित्तीय स्थिति का जिक्र करते हुए कहा गया कि तमाम कोशिशों के बावजूद कार्पोरेशन का घाटा बढ़ता जा रहा है। जितनी बिजली खरीदी जा रही है उतने विधयुत राजस्व की वसूली नहीं हो रही है।

प्रदेशवासियों को बिजली आपूर्ति के लिए मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही कार्पोरेशन को सरकार से 46130 करोड़ रुपए के सहयोग की जरूरत पड़ी है। यही स्थिति रहने पर अगले साल लगभग 50-55 हजार करोड़ रुपए तथा फिर 60-65 हजार करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। इस पर अधिकारियों अभियन्ताओं ने कहा कि विधयुत राजस्व वसूली बढ़ाने से लेकर लाइन हानिया घटाने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। बिजली चोरी रोकने को विजिलेन्स के छापे और बड़े पैमाने पर रिपोर्ट दर्ज कराई गई फिर भी वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं हुआ। ऐसे में सूझव दिया गया कि ज्यादा घाटे वाले क्षेत्रों की वित्तीय स्थिति को सार्वजनिक निजी सहभागिता के आधार पर सुधारा जाए। इसमें सहयोग करने वाले निगम के मौजूदा अभियन्ताओं कर्मचारियों की सहभागिता भी सुनिश्चित की जाए। कहा गया कि उड़ीसा में टाटा पावर के बिजली आपूर्ति के माडल को अपनाया जा सकता है।

एमडी निजी कंपनी का और सरकार का होगा अध्यक्ष

बैठक में कहा गया कि अपनाए जाने वाले पीपीपी माडल में निजी कंपनी का प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष सरकार का होगा। दावा किया जा रहा है कि अध्यक्ष सरकार का होने से विधयुत उपभोक्ताओं से लेकर निगम के अधिकारियों कर्मचारियों के हितों को सुनिश्चित किया जा सकेगा।    

चार साल बाद एक बार फिर प्राइवेटाइजेशन का दांव

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के कार्यकाल में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में साल 2020 में प्राइवेटाइजेशन का खाका खींचा गया था। बिजली संगठनों ने इसका जोरदार विरोध किया, जिसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के नेतृत्व में गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने लिखित समझौता कर प्राइवेटाइजेशन के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। साल 2009 से अब तक यूपी में बिजली कंपनियों के कुछ खास क्षेत्र के प्राइवेटाइजेशन के पांच प्रयास किए जा चुके हैं। बिजली क्षेत्र के निजीकरण का पहला उदाहरण नोएडा है। साल 2009 में कानपुर और आगरा के बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर को देने का एग्रीमेंट सरकार ने कर लिया था। कानपुर में इसका जोरदार विरोध हुआ था जिसके चलते टोरेंट पावर से समझौता हो जाने के बाद भी राज्य सरकार को ये एग्रीमेंट 2013 में तोड़ना पड़ गया था। हालांकि 2010 में आगरा की बिजली टोरेंट पावर को सौंप दी गई। साल 2013 में पांच शहरों मुरादाबाद, गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ और कानपुर में निजीकरण का फैसला होने के बाद टेंडर कर दिया गया था। विरोध होने पर टेंडर के बाद इस फैसले को टाला गया था।

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