प्रयागराज में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग कार्यालय के सामने 20 हजार विद्यार्थियों का प्रदर्शन जारी है। उनकी मांग है कि पीसीएस प्री और आरओ-एआरओ परीक्षाएं एक दिन और एक शिफ्ट में आयोजित की जाएं।
गौरतलब है कि प्रयागराज में सोमवार को यूपी के अलग-अलग जिलों और दूसरे राज्यों से पहुंचे अभ्यर्थियों ने लोग सेवा आयोग के बाहर धरना दिया। मंगलवार को भी प्रदर्शन जारी है। इस दौरान पुलिस और अभ्यर्थियों के बीच झड़प भी हुई। आंदोलन को देखते हुए पुलिस ने आयोग के ऑफिस के जाने वाले रास्तों पर बैरिकेड लगा दिए और पूरा इलाका छावनी में बदल गया। प्रदर्शन अभी भी जारी है, अभ्यर्थी मानने को तैयार नहीं हैं। अभ्यर्थियों ने आयोग के सामने ‘एक दिन, एक शिफ्ट, नॉर्मेलाइजेशन नहीं’ की मांग रखी है।
आज दोपहर में छात्रों मे थाली बजाकर विरोध जताया। यही नहीं, आयोग के मेन गेट पर कालिख से लूट सेवा आयोग लिख दिया। आयोग के अध्यक्ष संजय श्रीनेत की शव यात्रा निकाली। पुलिस यह सब देखती रही। छात्रों के प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
छात्रों के प्रदर्शन पर सियासत शुरू
डिप्टी सीएम केशव मौर्य छात्रों के समर्थन में उतर आए। उन्होंने कहा, “अधिकारी छात्रों की मांगो को संवेदनशीलता से सुनें और जल्द समाधान निकाले। सुनिश्चित करें कि छात्रों का कीमती समय आंदोलन में नहीं, एग्जाम की तैयारी में लगे।”
वहीं, अखिलेश यादव ने कहा, “योगी बनाम प्रतियोगी छात्र जैसा माहौल है। भाजपा के पतन में ही छात्रों का उत्थान है। भाजपा और नौकरी में विरोधाभासी संबंध है। जब भाजपा जाएगी, तभी नौकरी आएगी। अब क्या भाजपा सरकार छात्रों के हॉस्टल या लॉज पर बुलडोजर चलाएगी?”
पहले भी हो चुका है विरोध प्रदर्शन
अपनी इसी मांग को लेकर पहले भी हजारों अभ्यर्थियों ने 21 अक्टूबर को पीसीएस और आरओ-एआओ प्रारंभिक परीक्षा को लेकर आयोग का घेराव करके सड़क पर धरना दिया था। उस दौरान भी विरोध प्रदर्शन का यही मुद्दा था।
‘हैशटैग आंदोलन’ भी चलाया गया
आयोग के निर्णय से नाखुश अभ्यर्थियों ने सोशल मीडिया पर हैशटैग अभियान चलाकर भी इसका विरोध किया। एक्स पर हैशटैग यूपीपीएससी आरओ एआओ वनशिफ्ट नाम से चलाए गए अभियान को 2.40 लाख अभ्यर्थियों ने अपना समर्थन दिया। छात्रों का कहना है कि दो पालियों में परीक्षा कराए जाने से उन्हें नॉर्मलाइजेशन का खामियाजा भुगतान पड़ेगा। हालांकि, आयोग नकल और निष्पक्ष परीक्षा कराने के लिए दो दिन और दो पालियों में परीक्षा कराने की तैयारी कर रहा है।
आंदोलन की वजह
यूपी लोक सेवा आयोग ने 5 नवंबर की शाम यूपी पीसीएस और आरओ-एआरओ परीक्षा की तारीखों की घोषणा कर दी। 220 पदों पर भर्ती होनी है। पीसीएस प्री परीक्षा 7 और 8 दिसंबर को दो शिफ्ट में होगी। आरओ-एआरओ की प्री परीक्षा तीन शिफ्ट में होगी। दो शिफ्ट 22 दिसंबर को और एक शिफ्ट 23 दिसंबर को होगी। पीसीएस की परीक्षा के लिए 5 लाख 76 हजार 154 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा है। वहीं, आरओ-एआरओ के लिए 10 लाख 76 हजार 4 अभ्यर्थियों ने फॉर्म भरा है।
तारीखों की घोषणा करते वक्त आयोग ने बताया, “एक साथ परीक्षा करवाने के लिए 1758 सेंटर की जरूरत है। लेकिन, 41 जिलों में 978 ही योग्य मिले। इसमें एक साथ 4 लाख 35 हजार 74 अभ्यर्थी परीक्षा दे सकते हैं। इसलिए परीक्षा दो दिन में करवाने का फैसला किया गया है। किसी भी परीक्षार्थी के साथ कोई दिक्कत न हो, इसके लिए नियम के मुताबिक नॉर्मलाइजेशन होगा।”
आखिर नॉर्मलाइजेशन क्या है? इसके विरोध में अभ्यर्थियों के तर्क क्या हैं? कैसे यह पीसीएस और आरओ-एआरओ की परीक्षा को प्रभावित करेगा? कैसे तय होगा कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सरल है? आयोग को दो दिन परीक्षा करवाने की जरूरत क्यों पड़ी? आइए इन सभी विषयों को समझते हैं…
नॉर्मलाइजेशन क्या है और क्यों अपनाया जाता है
जो परीक्षाएं एक दिन में एक शिफ्ट में खत्म हो रही हैं, उसमें नॉर्मेलाइजेशन नहीं अपनाया जाता। लेकिन, जो परीक्षा अलग-अलग डेट पर होती हैं, अलग-अलग प्रश्न पत्र होते हैं, उसमें यह अपनाया जाता है। क्योंकि हर पेपर कि डिफिकल्टी लेवल में थोड़ा अंतर हो सकता है, इस कारण सरल आए पेपर के ही शिफ्ट के छात्रों को ही फायदा न हो, इसलिए नॉर्मलाइजेशन प्रोसेस अपनाया जाता है। इसके लिए विभाग एक फॉर्मुले के आधार पर काम करता है।
उदारहण से समझते हैं…
मान लीजिए कोई परीक्षा तीन शिफ्ट में हो रही है। हर शिफ्ट में 5-5 अभ्यर्थी शामिल हुए। पहली शिफ्ट का प्रश्न पत्र कठिन आया। अभ्यर्थियों को क्रमश 80, 85, 90, 95, 100 नंबर मिला। दूसरी शिफ्ट का पेपर सरल आया। उसमें शामिल अभ्यार्थियों को 110, 115, 120, 125, 130 नंबर मिला। तीसरी शिफ्ट का पेपर नॉर्मल रहा। उसमें शामिल अभ्यर्थियों को 90, 95, 100, 105, 110 नंबर मिला।
इसे देखने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि दूसरी शिफ्ट के अभ्यर्थी ज्यादा सिलेक्ट होंगे। इसलिए यहां नॉर्मलाइजेशन अपनाया जाएगा। उदाहरण के लिए, जो तीन शिफ्ट बताया है, उसमें दूसरी शिफ्ट को ऊपर रखा जाएगा। पहली शिफ्ट वालों को 30-30 नंबर एक्स्ट्रा मिलेगा। तीसरी शिफ्ट वालों को 20-20 नंबर एक्स्ट्रा मिलेगा। इस तरह से इस परीक्षा का औसत 120 नंबर होगा।
यह समझाने के लिए एक उदाहरण मात्र है। अलग-अलग परीक्षाओं में अलग-अलग मानक होते हैं। जैसे इस साल के शुरुआत में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी एनटीए ने JEE Main के रिजल्ट में किया था। पहली बार 56 अभ्यर्थियों को 100% नंबर दिया गया था। यह स्कोर अलग-अलग दिन, अलग-अलग शिफ्ट में हुई परीक्षा और उस शिफ्ट में शामिल अभ्यर्थियों की परफॉर्मेंस के आधार पर होता है।
सरकार के सामने पारदर्शी परीक्षा करवाने की चुनौती
रेस आईएएस कोचिंग के टीचर नवनाथ मिश्रा कहते हैं, यहां छात्र अपने पक्ष की चुनौती देख रहे, सरकार के पास भी अपनी चुनौती है। फॉर्म की संख्या ज्यादा है, इसलिए ट्रांसपेरैंसी के लिए दो दिन में परीक्षा करवाई जा रही है। 2013 के पहले आप चले जाइए, जब लड़के ने दो सब्जेक्ट में ऑप्शनल ले लिया। कोई हिस्ट्री-मैथ तो कोई जियोग्राफी व हिस्ट्री। तब भी कम-ज्यादा नंबर का मामला आता था। उस वक्त स्केलिंग प्रोसेस अपनाया जाता था।
नवनाथ कहते हैं, 41 जिलों में परीक्षा करवाने को लेकर छात्र जो कह रहे हैं, वह भी ठीक है, लेकन सरकार भी गलत नहीं है। उन्हें लग रहा कि इन-इन जिलों में परीक्षा करवाने से हम बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था दे सकते हैं तो यह बेहतर ही है, निश्चित तौर पर वह 75 में 45 जिले कर सकते हैं। चुनाव भी इसी तरह से होता है, कोई कहे कि 7 चरणों में क्यों होता है, एक चरण में करवा दीजिए।
आइए आयोग व छात्रों के तर्क-वितर्क समझते हैं…
आयोग का तर्क: प्राइवेट स्कूलों में पेपर लीक की आशंका है। इसलिए सरकारी कॉलेजों को ही सेंटर बनाया जाएगा। ये सभी जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर के अंदर होंगे।
छात्रों का जवाब: पिछली बार आरओ-एआरओ पेपर किसी सेंटर में नहीं, बल्कि प्रिंटिंग प्रेस से लीक हुआ था। जो छात्र दूसरे जिले मे परीक्षा देने जा सकता है, वह जिला मुख्यालय से 30-40 किलोमीटर दूर भी जा सकता है। वहां भी तो सरकारी स्कूल हैं।
आयोग का तर्क: नॉर्मलाइजेशन को लेकर किसी अभ्यर्थी के साथ गलत नहीं होगा। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व केरल में भी यह है।
छात्रों का जवाब: आखिर कैसे तय होगा कि कौन सा पेपर कठिन और कौन सा सरल था! हो सकता है कि जो पेपर कठिन लग रहा, वह किसी को सरल लग रहा है परीक्षा होने के बाद स्वाभाविक विवाद होगा और भर्ती कोर्ट में फंस जाएगी।
आयोग का तर्क: सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए 41 जिलों में ही सेंटर बनाए गए हैं।
छात्रों का जवाब: कुंभ में एक दिन में 3 करोड़ श्रद्धालु आएंगे और स्नान करेंगे, सरकार और प्रशासन उन्हें सुरक्षा मुहैया करवाएगा और आराम से घर भेज देगा। क्या यही शासन-प्रशासन पूरे यूपी में एक साथ 10 लाख अभ्यर्थियों की परीक्षा नहीं करवा सकते!