कुम्भ 2019: अपनों से मिला रहा खोया-पाया केंद्र, राजाराम ने की थी शुरुआत

बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों में अक्सर आपने देखा होगा की दो भाई 20 साल बाद मिलते हैं जो कुम्भ मेले में बिछड़ गए थे। कुम्भ मेले में लोग अपने परिजनों से बिछड़ जाते थे, लेकिन इस बार हो रहे दिव्य-भव्य कुम्भ में अपनों से लोग नहीं बिछड़ेंगे। क्योंकि मेला क्षेत्र में यूपी पुलिस द्वारा 15 आधुनिक, समन्वित, डिजिटल खोया-पाया केंद्र चलाए जा रहे हैं, बिछड़े हुए लोगों को अपनों से मिलाने के लिए माइक से एनाउंसमेंट के साथ एलईडी डिसप्ले पर भी सूचना दी जा रही है।
कुम्भ 2019 में इस बार डिजिटल खोया पाया केंद्रों की स्थापना की गई है साथ ही 14 साल से कम उम्र के बच्चों को ‘रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान’ (आरएफआईडी) टैग लगाए जा रहे हैं, इस टैग से मेले की भीड़ में खोने वाले बच्चों का पता लगाया जा रहा है। पुलिस विभाग ने आरएफआईडी टैग के लिए वोडाफोन से सहयोग लिया है।

पहली बार कम्प्यूटराइज्ड केंद्र
खोया-पाया केंद्र के कॉर्डिनेटर डॉ. प्रसंन्ना ओगावकर ने बताया कि इस बार कुम्भ में खोया-पाया केंद्र का डिजिटलाइजेशन हुआ है। उत्तर प्रदेश पुलिस के सौजन्य से कुम्भ में पहली बार कम्प्यूटराइज्ड खोया-पाया केंद्र की स्थापना की गई है जो चार जनवरी से चल रहा है। मेले में अगर कोई अपनों से बिछड़ता है तो केंद्र में खोए हुए व्यक्ति की पूरी जानकारी, जिसे मेले में लगी सभी एलसीडी पर तस्वीर के साथ दिखाई जा रही है। तस्वीर और जानकारी मेले के अलावा शहरों में लगे एलसीडी पर भी दिखाई जा रही है। माइक से पूरे मेला क्षेत्र में लगातार एनाउंसमेंट किया जाता है। अभी तक खोया-पाया केंद्र ने लगभग तीन हजार से ज्यादा बिछड़े लोगों को मिलाया है साथ ही सैकड़ों लोगों के जरूरी सामान जो की मेला क्षेत्र में कहीं खो गए थे उसे भी वापस दिया गया है। कुम्भ मेले में 15 केंद्रों पर ऑनलाइन के जरिए हर खोने वाले कि सूचना का रिकॉर्ड सभी के पास होता है। ऐसे में खोए व्यक्ति द्वारा बताई गई जानकारी को किसी अन्य केंद्र पर मिलने वाली जानकारी से क्रॉस चेक किया जाता है। जिससे खोए हूए व्यक्ति को ढूंढने में आसानी होती है। मेला में बिछड़ जाने वालों के बारे में इस https://kumbh.gov.in/en/lost-and-found वेबसाइट पर लॉग-इन करके भी पता लगाया जा सकता है।
भूले-भटकों को मिलाने की राजाराम ने की थी शुरुआत
राजाराम तिवारी आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके काम को आज भी लोग याद करते हैं। राजाराम तिवारी ने अपनी सारी जिंदगी कुम्भ में बिछड़े लोगों को मिलाने के लिए समर्पित कर दिया था। कुम्भ के दौरान राजाराम ‘खोया-पाया कैंप’ चलाते थे। 1946 में 18 साल के राजाराम अपने दोस्तों के साथ इलाहाबाद के माघ मेले में घूमने गए थे। मेले में उनको एक बच्चा मिला, जो अपनों से बिछड़ गया था। राजाराम अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसके घरवालों को ढूंढने लगे। उस समय लाउडस्पीकर नहीं होता था, तो उन्होंने एक टीन के डिब्बे को काटकर उसका भोंपू बनाया और उससे चिल्लाकर अनाउंसमेंट करने लगे। आखिर में राजाराम की मेहनत रंग लाई और उस बच्चे के घरवाले मिल गए। इस घटना के बाद राजाराम ने बिछड़ों को अपनों से मिलाना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया।

राजाराम तिवारी ने वर्ष 1946 में भारत सेवा दल की स्थापना की और इसी संस्था के बैनर तले भूले-भटके शिविर का संचालन किया। पिछले कुंभ तक उन्होंने मेला क्षेत्र में कुल 12 लाख 50 हजार भूले-भटके पुरुषों और महिलाओं को मिलाया। इसके अलावा 20 हजार से अधिक बच्चों को उनके परिजनों से मिलवाया। इस उपलब्धि के लिए राजाराम तिवारी का नाम वर्ष 2008 में लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया।
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राजाराम तिवारी को सरकार से कई पुरस्कार मिले। उन्होंने कुंभ में ऐसी शुरुआत की जो सभी के लिए नजीर बन गई। 88 वर्ष की आयु में 20 अगस्त 2016 में राजाराम तिवारी का निधन हो गया। राजाराम तिवारी की इस मुहिम की वजह से ही लोग उन्हें 'भूले भटके तिवारी' के नाम से जानने लगे। वो जबतक जिंदा रहे, लोगों को एक दूसरे से मिलाते रहे। राजाराम तिवारी के चार पुत्र हैं, जिनमें सबसे बड़े पुत्र पंडित लालजी तिवारी भारत सेवा दल के अध्यक्ष और सबसे छोटे पुत्र उमेश तिवारी संस्था के संचालक हैं।
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