भीख मांगना छोड़कर काम करने वालों को मदद दे रही है बिहार सरकार

भारत में बेरोजगारी का आलम ये है कि लोग जरूरी पढ़ाई करने के बाद भी नौकरी न मिलने की वजह से भीख मांगने तक को मजबूर हो जाते हैं! लेकिन उनका क्या जिनको हालात ने ही भिखारी बना दिया या वो उसी परिवार में पैदा हुए जिनकी जिंदगी इसी काम से चलती है। लेकिन वो चाहते हैं, अगर उन्हें कोई भी और काम मिल जाए तो वो ये काम नहीं करेंगे।
ऐसे लोगों के लिए बिहार सरकार ने एक योजना की शुरुआत की है, जिसमें इस तरह के भिखारियों को इज्जत से जिंदगी जीने का मौका देती है। हर व्यक्ति सामान्य जीवन जी सके इसके लिए बिहार सरकार ने अक्षमों को सक्षम बनाने की तरफ कदम बढ़ाया है। बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग की सोसाइटी 'सक्षम' मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना चलाती है, जिसके तहत भिखारियों को इज्ज़त की ज़िंदगी जीने लायक बनाने की कोशिशें हो रही हैं।
क्या है योजना?
योजना से जुड़े अविनाश कुमार के मुताबिक इसके लिए बिहार के सात जिलों में चौदह पुनर्वास केंद्र शांति और सेवा कुटीर के नाम से चलाए जा रहे हैं। इन केंद्रों में रहने वाले लोगों ने पटना में आयोजित एक खास मैराथन में हिस्सा भी लिया।
इस योजना का लाभ अत्यंत गरीब और भिक्षावृत्ति में शामिल महिलाओं को दिया जाना है। इसके लिए जिलों में संचालित इकाई सक्षम में संपर्क कर अपना नामांकन करा सकते हैं। कार्यालय द्वारा उनका पंजीयन करा कर उन्हें पुनर्वासित कराया जायेगा। इसके लिए टॉल फ्री नंबर की सुविधा भी प्रदान की गयी है। ताकि कोई भी व्यक्ति 18003456266 पर संपर्क कर इसका लाभ ले सकेंगे। साथ ही वैसे लोग जो अपने आसपास दिखने वाले भिखारियों की मदद करना चाहते है। इन नंबरों पर कॉल कर कार्यालय को सूचित कर सकते हैं। सूचना मिलने पर सक्षम कार्यालय के कर्मचारी उन तक पहुंच कर उनकी मदद की जाती है।
कब शुरू हुई यह योजना
वर्ष 2011-12 में समाज कल्याण विभाग की ओर से अति गरीब व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए स्टेट सोसाइटी फॉर रीहैबीलिटेशन ऑफ अल्ट्रा पुअर की स्थापना कर राज्य में भिक्षावृत्ति की कुप्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना की शुरुआत हुई। वैसी महिलाओं की पहचान की जा रही है, जो भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं. यह योजना पटना समेत सात जिलों में चलायी जा रही है।
कुछ कहानियां जो इस दलदल से निकलना चहती हैं
बीबीसी ने पिछले दिनों इस योजना में शामिल होने वाले लोगों से बात की, उनमें से एक बारह साल की सोनल (बदला हुआ नाम) के माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। उनका पालन-पोषण एक ऐसे परिवार ने किया जो उनसे भीख भी मंगवाता था। सोनल को ये पसंद नहीं था और वह एक दिन भागकर बाढ़ रेलवे स्टेशन पहुंची। फिर रेल थाने से पटना के शांति कुटीर भेज दी गईं। यहां अब वह स्कूल जाती हैं, डांस, जूडो-कराटे भी सीखती हैं।
सोनल बताती हैं कि उन्हें डांस के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं. सोनल आगे कॉलेज तक पढ़ना चाहती हैं और बड़ी होकर डांस टीचर बनकर अपने पैरों पर खड़ा होने की ख्वाहिश रखती हैं। समस्तीपुर ज़िले के ब्रह्मदेव कामती करीब तीन साल पहले अपने भाई से झगड़कर पटना आ गए थे। उन्होंने काम की तलाश की, लेकिन काम न मिलने पर पटना के मशहूर हनुमान मंदिर के बाहर भीख मांगने लगे। करीब एक महीने तक भीख मांगने के बाद वे सक्षम से जुड़े कार्यकर्ताओं के ज़रिए सेवा कुटीर पहुंचे।
ये तो कुछ कहानियां हैं जो इस समाज और इस मजबूरी की सच्चाई बता रही हैं, ऐसे में बिहार सरकार की ये पहल नि:संदेह सराहनीय है।
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