कर्नाटक सरकार की इस कृषि योजना की पीएम ने भी की थी तारीफ, बढ़ी है किसानों की आमदनी

हाल ही में महाराष्ट्र में हुए किसानों के आंदोलन में पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस आंदोलन ने देश की कृषि व्यवस्था से जुड़े कई मुद्दों पर सवाल उठाए और उनमें से एक मुद्दा है - कृषि उत्पादों को सही दाम न मिलना। इनमें से ज्यादातर मुद्दे सरकार द्वारा निर्धारित फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी पर टिके हैं। कृषि उत्पादों के लिए एमएसपी बढ़ाने के अलावा सरकार को कृषि उत्पाद मार्केट समितियों या अस्थायी मंडी प्रणाली में कई तरह के सुधार करने की ज़रूरत भी है। देश में जहां इस तरह की प्रणाली की बहुत ज़रूरत है वहीं कर्नाटक सरकार की राष्ट्रीय ई मार्केट सेवा (आरईएमएस) ऐसी मंडियों के लिए एक मिसाल है।
यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अप्रैल 2016 में केंद्र के राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-नाम) का उद्घाटन करते वक्त आरईएमएस की तारीफ भी की थी। केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने उस वक़्त कहा था कि उन्हें ई-नाम योजना का आइडिया कर्नाटक की राष्ट्रीय ई मार्केट सेवा से ही आया था। उन्होंने कहा था कि हम देश के लगभग सभी राज्यों के कृषि मंत्रियों को कर्नाटक लेकर गए थे ताकि वे वहां ये सीख सकें कि कैसे कर्नाटक ने 40 से 50 बाज़ारों को ई ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से जोड़ रखा है। वहां सब जगह एक इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले है जिसमें दूसरे बाज़ारों में उत्पाद की कीमतें पता चलती रहती हैं। इससे किसान अपने उत्पाद उस बाज़ार में जाकर बेच सकते हैं जहां उन्हें अच्छा पैसा मिले।

कर्नाटक राज्य के 2018 के बजट के मुताबिक, नीति आयोग ने भी इस योजना की काफी तारीफ की थी। नीति आयोग के मुताबिक इस योजना से कर्नाटक के किसानों की आय में 38 फीसदी का इज़ाफा हुआ। ज्यादातर मंडियां कृषि उत्पादों के सही दाम नहीं देतीं लेकिन किसानों को ये पता ही नहीं होता कि किस मंडी में उन्हें उनकी फसल के बेहतर दाम मिलेंगे। ऐसे में किसान मज़बूरी में अपना सामान पास वाली मंडी में ही बेंच देते हैं लेकिन आरईएमएस इससे अलग है।
ये कर्नाटक सरकार और एनसीडीईएक्स ई मार्केट लिमिटेड का ज्वाइंट वेंचर है। ये एक प्रयास है पुराने मंडी सिस्टम को ऑनलाइन बनाने का, जहां किसानों को ये सुविधा है कि वे किसी भी मंडी में जाकर ये पता कर सकते हैं कि बाकी मंडियों में उनके उत्पाद के क्या दाम हैं। ऐसे में उनके पास मौका होता है अपने उत्पाद को उस जगह बेचने का जहां उन्हें अच्छा दाम मिले। राज्य की 162 कृषि उत्पाद बाज़ार समितियों में से 157 इस सिस्टम से एक लाइसेंस सिस्टम के तहत इलेक्ट्रॉनिकली लिंक्ड हैं। राज्य सरकार के मुताबिक इससे किसानों को एक संयुक्त बाज़ार प्लेटफॉर्म मिल गया है।

राज्य सरकार के 2018 के बजट के मुताबिक, अभी तक लगभग 75,690 करोड़ रुपये की कीमत वाले कृषि उत्पादों को 95.21 लाख किसान ऑनलाइन बेच चुके हैं। इसके अलावा 47.28 किसानों ने इस यूनीफाइड मार्केट प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर करा चुके हैं। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, जिन किसानों ने यहां रजिस्टर कराया है उनके अकांउट की डीटेल्स भी यहां ऑनलाइन दर्ज़ हैं ताकि उन्हें जल्दी से जल्दी उनके उत्पाद की क़ीमत मिल सके।
कर्नाटक में कृषि उत्पाद मार्केट समितियां ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के लिए 1.5 फीसदी मंडी फीस लेती हैं और 2 फीसदी कमीशन एजेंट फीस के तौर पर लेती हैं लेकिन आरईएमएस पर ये काम सिर्फ 0.1 फीसदी ट्रांजेक्शन फीस पर होता है। इसके अलावा कर्नाटक सरकार जल्द ही 25 कृषि उत्पाद मार्केट समितियों में गुणवत्ता विशलेषक लैब भी बनवाने वाली है ताकि दलहन, तिलहन और बाकी अनाज़ की गुणवत्ता की जांच हो सके। इस योजना के लिए सरकार ने 2.5 करोड़ का बजट निर्धारित किया है यानि एक समिति के लिए 10 लाख रुपये।

कैसे काम करता है ये सिस्टम
एक सामान्य किसान इस सुविधा का लाभ कैसे उठाता है ये जानना भी ज़रूरी है। किसान यहां मंडी में आता है, यहां वो अपने नाम और मोबाइल नंबर लिखी हुई एक एंट्री स्लिप लेता है। किसान के पास ये च्वाइज़ होती है कि वह अपना उत्पाद कमीशन एजेंट के ज़रिए नीलामी के लिए रखेगा या अपने पसंद के किसी ग्राहक को सीधा बेचेगा। कृषि उपज को बिक्री के लिए पेश किए जाने से पहले, पेशेवर सेवा प्रदाता मानकीकृत गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार उसकी गुणवत्ता की जांच होगी, जो ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म पर डिस्प्ले होगी। उत्पाद का नाम, उसकी मात्रा, गुणवत्ता से जुड़े आंकड़े इस प्लेटफॉर्म पर डिस्प्ले होंगे। किसान को उसकी उपज के लिए मिले इस प्रमाण पत्र को कोई भी तीसरा पक्ष किसी भी समय ऑडिट कर सकता है। जैसे ही ये प्रॉसेस पूरा होगा किसान के नंबर पर एक एसएमएस आ जाएगा जिसमें उसके उत्पाद के लिए सबसे ज्यादा कीमत लिखी होगी, ये किसान के ऊपर निर्भर करेगा कि वो इसे एक्सेप्ट करता या नहीं।
अगर उसे ये कीमत मंज़ूर होती है तो सिस्टम ग्राहक के लिए एक बिल जनरेट कर देता है और किसान को उसके उत्पाद के पैसे कैश या ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के ज़रिए मिल जाते हैं। अगर किसान को एसएमएस पर बताई गई कीमत मंज़ूर नहीं होती है तो उसे यह बात तय समय में कमीशन एजेंट को बतानी होती है। ऐसे में कमीशन सिस्टम यूनीफाइड माकेर्ट प्लेटफॉर्म को तुरंत इसकी सूचना भेजता है और वह डील कैंसल हो जाती है। इसके बाद अगले दिन वह उत्पाद दोबारा बेंचा जा सकता है। आरईएमएस पर आईटीसी, रिलायंस, गोदरेज एग्रो और कारगिल जैसी कई बड़ी कंपनियां रजिस्टर हैं। ।
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