बिजली कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ उठ रहे विरोध के स्वरों के बीच उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन (यूपीपीसीएल) ने कहा है कि कुछ लोग ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति सुधारने के लिए की जा रही सुधार प्रक्रिया संबंध में भ्रामक तथ्य प्रसारित कर रहे हैं। कार्पोरेशन ने साफ किया है कि यह निजी क्षेत्र के साथ पार्टनरशिप होगी न की निजीकरन। अधिकारियों व कर्मचारियों के हित सुरक्षित रहेंगे। कर्मियों के हित की शर्तें विषेशरूप से समझौते में रहेगी।
पवार कार्पोरेशन ने स्पष्ट किया कि सेवा शर्ते, प्रोन्नति व सेवा समाप्त होने के बाद में मिलने वाले लाभ में कोई कमी नहीं होगी। अधिकारियों व कर्मियों को तीन विकल्प दिये जाएंगे जिनमें वे उन्हीं स्थान पर बने रह सकते है यूपीपीसीएल में जाने का विकल्प ले सकते हैं या वीआरएस ले सकते हैं। तीनों विकल्प उन्हें एक साथ उपलब्ध होंगे।
प्रस्तावित व्यवस्था में चेयरमैन शासन का ही वरिष्ठ अधिकारी होगा जो कर्मचारियों के हितों का संरक्षण करेगा। कर्मचारियों की सेवा शर्तों में कोई परिवर्तन नहीं होगा और न ही पदोन्नति वेतन या भर्ती में कमी आएगी। यदि अधिकारी व कर्मचारी सहयोग करते हैं तो सरकार नई कंपनी में उनको हिस्सेदारी देने पर विचार करेगी। सुधार का कार्य ऐसे क्षेत्र में ही किया जाएगा जहां पर पैरामीटर अच्छे नहीं है। जिन क्षेत्रों में अधिकारियों व कर्मचारियों ने पैरामीटर में सुधार किया है उन क्षेत्रों को इससे बाहर रखा जाएगा। पावर कार्पोरेशन ने कहा है कि जो आंकड़े प्रस्तुत किए जा रहे हैं वे आड़ीटेड एकाउंट के आधार पर है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति प्रमुख पदाधिकारियों ने संयुक्त बयान में कहा कि पॉवर कारपोरेशन का फैसला कर्मचारियों और आम जनता के हित में नहीं है। 25 जनवरी 2000 को मुख्यमंत्री के साथ हुए लिखित समझौते में यह साफ है कि बिजली सुधार अंतरण स्कीम के लागू होने से हुए उपलब्धियों का मूल्यांकन कर यदि आवश्यक हुआ तो पूर्व की स्थिति बहाल करने पर एक वर्ष बाद विचार किया जाएगा। 2000 में राज्य विद्युत परिषद के विघटन के बाद 77 करोड़ रुपये का घाटा अब 25 वर्ष के बाद 1.10 लाख करोड़ का हो गया है।