ग्रामीण क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस से आ रही है एक नई क्रांति

आज हर कोई अपना समय बचाना चाहता है। साथ ही सरकारी दफ्तरों की लंबी-लंबी लाइनों से बचाना चाहता है। इसलिए आज पूरे देश में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो आम सेवा केंद्रों पर जाकर आपना समय बचा रहे हैं।
क्या है आम सेवा केंद्र ?
ये आम सेवा केंद्र ई-गवर्नेंस के केन्द्रों की तरह काम करते हैं। इनकी शुरुआत 2006 में राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्स योजना (NeGP) के तहत हुई थी। ये आम सेवा केंद्र पीपीपी मॉडल पर काम करते हैं जहाँ स्थानीय उधमी न केवल कंप्यूटर की सुविधा वाले इन केन्द्रों की स्थापना करते हैं बल्कि उन्हें चलाते भी हैं। उन्हें हर सौदे के लिए पैसे दिए जाते हैं।
आम सेवा केंद्र की कहां तक है पहुंच ?
अभी फिलहाल 1,60,000 आम सेवा केन्द्र हैं जो देश के 6,00,000 गांवों में फैले हुए हैं। इनमे से कई केंद्र ऐसे हैं जो काफी समय से सक्रिय नहीं हैं पर सरकार की नयी पहल जो सरकार से नागरिकों को मिलने वाली सेवाओं (G2C) को कैश ऑन डिलीवरी सेवा बनाना चाहती है।
फिलहाल आम सेवा केंद्र आधार कार्ड संबंधी सेवाएं दे रहे हैं। 100 करोड़ आधार कार्डों में से कम से कम 10 % आधार कार्ड इन्ही केंद्रों द्वारा बनें हैं। इतना ही नहीं 40% से भी अधिक आधार कार्ड के आवेदन भी आम सेवा केंद्रों के द्वारा ही हुए हैं।
हालांकि आम सेवा केंद्रों का मुख्य उद्देश्य सरकार को कम लागत वाला माध्यम देना था जिस से सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस सुविधाएं दे सके। धीरे धीरे इसका विस्तार वित्तीय समावेश और पेंशन स्कीमों तक हुआ है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना में 30,000 आम सेवा केंद्र शामिल हैं। आम सेवा केंद्र सिर्फ बैंकिंग सेवाओं द्वारा तक़रीबन 40 करोड़ इकठ्ठे कर लेते हैं। आम सेवा केंद्र एक दिन में एक एजेंट की तरह एक करोड़ का प्रीमियम जमा करती है। इस से बीमा संस्थाओं की आमदनी भी बढ़ी है और स्थानीय एजेंटों को ज्यादा कमाने का मौका भी मिला है।
अधिकतर लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बिजली बिल भरना, राशन कार्ड के लिए अप्लाई करना। फोटो पहचान पत्र के लिए अप्लाई करना, सरकार की योजनाओं के फॉर्म लेना और नौकरी के लिए आवेदन देने में सहूलियत होती है। इस तरह से आम सेवा केंद्र धीरे-धीरे ही सही लेकिन निश्चित रूप से ग्रामीण भारत में ई-गवर्नेंस की क्रांति ला रहे हैं।
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