उपन्यास सम्राट बाबू भगवती चरण वर्मा का जन्म उन्नाव जिले के सफीपुर तहसील में हुआ था। उनकी जन्मस्थली के लोग आज भी उनकी यादों को संजोए हैं। सफीपुर के साहित्य प्रेमियों ने उनकी स्म्रती में अर्चना परिषद गठित करने के बाद उनके नाम से पार्क का निर्माण कराया। जहां पर नगर वासियों द्वारा हर वर्ष उनका जन्मदिन धूम-धाम से प्रति वर्ष मनाया जाता है। इस बार भी आज के दिन उनका जन्मदिन मनाया जाएगा। जिसकी तैयारी पूरी कर ली गई है।
उपन्यास सम्राट बाबू भगवती चरण वर्मा को हिन्दी साहित्य क्षेत्र में सरवोंच्च स्थान प्राप्त है। इनका जन्म सफीपुर में 30 अगस्त 1903 को संभ्रांत कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता देवीचरण कानपुर में वकालत करते थे। ये संयोग की बात है की दो संतानों का जन्म होने के बाद जब वह जीवित नहीं रहे तो लोगों ने उन्हें स्थान बदलने की सलाह दी। इसी आधार पर इनके पिता को सफीपुर में वकालत करनी पड़ी और यहीं तीसरी संतान के रूप में भगवती बाबू का जन्म हुआ। आठ महीने के बाद इनके पिता कानपुर वापस चले गए और पहले की तरह वकालत चालू कर दी।
जब भगवती बाबू पांच वर्ष के हुए तो उन्हें कानपुर के पटकापुर के मोहल्ले के घर के निकट पाठशाला में दाखिला करवा दिया गया। यहां उन्होने कक्षा तीन तक शिक्षा पाई फिर उन्हें आर्य समाज स्कूल में दाखिला दिलाया गया। कक्षा चार में प्रथम स्थान होने के कारण उन्हें सीधे कक्षा छ में प्रवेश दिया गया। लेकिन गणित के विषय में कमजोर होने और अध्यापक द्वारा पीटे जाने पर इनकी माँ ने उस स्कूल से नाम हटवा लिया। इसके बाद थिएसोफ़िकल स्कूल में नाम लिखवा दिया। यहां पर भी शिक्षकों ने शिक्षा में सुधार लाने के हित को देखते हुए इन्हें पत्रिकाएं पढ़ने का सुझाव दिया।
जिसे पढ़कर इनमें काव्य प्रतिभा जागृत हो गई। कक्षा आठ में इन्होंने एक कविता लिखी। जिसे एक मासिक पत्रिका में शामिल किया गया था। इसके बाद तो तत्कालीन प्रभा, प्रताप आदि पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं छपने लगीं। उच्च शिक्षा के लिए इन्होने प्रयागराज विश्वविद्यालय से साहित्य एवं विधि स्नातक के रूप में पूर्ण हुई।इनहोने कविता, कहानी, उपन्यास आदि की रचना कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित की। वे काफी समय तक रेडियो संचालक भी रहे।