छापा पड़ने के बाद आईएएस चन्द्रकला ने शेयर की ये कविता

आईएएस ऑफिसर बी चन्द्रकला के यहां सीबीआई का छापा पड़ने के बाद वो लगातार सुर्खियों में बनी है। इन सबके बीच उन्होंने आज अपने linkedln अकाउंट से एक कविता शेयर की है और साथ ही एक नोट भी लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि
"चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा ,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाए, दोस्तों ।
आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हो जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें ।।""
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
फलक से रंग , या मुझे रंग दे जमीं से ,
रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से।।
छन-छन करती पायल से ,
जो फूटी हैं यौवन के स्वर ;
लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ,
नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया,
गाल पे हो ,ज्यों चाँदनी बिखरी ,
माथे पर फैली ऊषा-किरण ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
यहाँ से रंग ,या मुझे रंग दे, वहीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से ।।
कमर को रंग, जैसे,छलकी गगरिया ,
उर,उठी हो, जैसे चढ़ती उमिरिया ,
अंग-अंग रंग, जैसे, आसमान पर ,
घन उमर उठी हो बन, स्वर्ण नगरिया ।।
रे रंगरेज़! तू रंग दे मुझको ,
सांस-सांस रंग, सांस-सांस रख ,
तुला बनी हो ज्यों ,बाँके बिहरिया ,
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
पग- रज ज्यों, गोधुली बिखरी हो ,
छन-छन करती नुपूर बजी हो ,
फाग के आग से उठती सरगम ,
ज्यों मकरंद सी महक उड़ी हो ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से ।।
पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा ,
कपोल को चूमे , लट का नगीना ,
तपती जमीं सा मन को रंग दे ,
रोम - रोम तेरी चाहूँ पीना ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
बरस-बरस मैं चाहूँ जीना ।।
कविता के अंत में उन्होंने लिखा कि चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा ,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाए, दोस्तों ।आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हो जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें ।।

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