उन्नाव से कानपुर को जोड़ने वाला 149 साल पुराने पुल का 40 मीटर हिस्सा ढहा

ब्रिटिश शासन काल में वर्ष 1875 में 17.60 लाख से निर्मित 149 साल पुराने गंगा पुल के कानपुर छोर पर 9 से 10 नंबर की कोठी (पिलर) के बीच का 40 मीटर हिस्सा मंगलवार भोर पहर ढह गया। पुल बंद होने से कोई जनहानि नहीं हुई। इष्ट इंडिया कंपनी के इंजीनियरों द्वारा 7 साल 4 माह में बनाए गए पुल से 50 साल ट्रेने गुजरी। बाद में 40 फिट की दूरी पर बने समानांतर रेलवे पुल से ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया। जर्जर कोठियों में दरारें पड़ने पर वर्ष 2021 में पुल को पूरी तरह बंद कर दिया गया।

कभी कानपुर से शुक्लागंज को जोड़ने में अहम 800 मीटर लंबे गंगा पुल का निर्माण अवध व रूहेलखण्ड रेलवे ने किया था। निर्माण पूरा होते ही उस पर ट्रेनों का आवागमन शुरू हो गया। सिंगल रेलवे ट्रैक होने व ट्रेनों की संख्या बढ्ने पर 1910 में समानांतर नया रेलवे पुल बना जो 814 मीटर लंबा है। दोनों तरफ गंगा पुल बायाँ व दायाँ किनारा रेलवे हाल्ट स्टेशन अब भी है। तब कानपुर सेंट्रल नहीं बना था।

वर्ष 1924 तक दोनों पुलों से ट्रेनों का आवागमन हुआ। उसी साल पुराने पुल पर ट्रेनों का परिचालन बंद करके ट्रैक हटाने के बाद सड़क बना दी गई। साल 1925 ने रेलवे ने पुल सरकार को सौंप दिया। 1979 में इसकी मरम्मत हुई। 146 वर्ष यातायात चलने के बाद पुल को पीडब्लूडी के अभियंता की रिपोर्ट में जर्जर बताए जाने पर जिलाधिकारी कानपुर ने पांच अप्रेल 2021 बंद करवाकर दोनों छोर पर पांच-पांच फिट ऊंची पक्की दीवार बनवा दी थी।

पुल को पिकनिक स्पॉट बनाने की तैयारी थी

कानपुर की ओर पुल को खोलकर पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित करने की कवायद चल रही थी, लेकिन इसका काम शुरू होता इससे पहले ही पुल गिर गया।   

पुल का इतिहास

ब्रिटिशकाल में कानपुर से लखनऊ के बीच अंग्रेजों ने जीटी रोड का निर्माण कराया था। गजेटियर के अनुसार, कानपुर और शुक्लागंज (गंगाघाट) के बीच गंगा नदी पर पुल का निर्माण 1875 में उस समय की अवध एंड रुहेलखंड कंपनी ने कराया था। इंजीनियर एसबी न्यूटन और असिस्टेंट इंजीनियर ई वेडगार्ड की देखरेख में यह 800 मीटर लंबा पुल बना था। पुल की उम्र 100 वर्ष बताई गई थी हालांकि यह 149 साल तक मजबूती से खड़ा रहा। इस पुल के गिरने से एक ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान हुआ है।

कानपुर छोर पर कानपुर ब्रिज बायां किनारा व शुक्लागंज में दायां किनारा हाल्ट स्टेशन थे। इसमें बायां किनारा अभी तक है। पुल निर्माण से पहले अंग्रेज बड़ी लोहे की नाव से आते-जाते थे, जिसमें वक्त के साथ मिट्टी भर गई और आसपास अस्थायी घर बन गए।

पुराने लोगों को छोड़ दें तो नई पीढ़ी में कितने ही लोग नहीं जानते होंगे कि शुक्लागंज को जोड़ने वाले पुराने गंगा पुल के ऊपर ट्रेनें दौड़ती थीं। 10-20 बरस नहीं, बल्कि पूरे 50 साल ऊपरी हिस्से से ट्रेनें, नीचे वाहन और पैदल लोग गुजरते रहे। 

पुल की खासियत

ब्रिटिश इंजीनियरों ने इस पुल को पिलर के ऊपर लोहे के मोटे एंगल से बनाया था। यह पुल दो तल का था। तब निचले तल पर अंग्रेजों ने पैदल आवागमन के लिए बनाया और ऊपरी तल से बग्घी, बैलगाड़ी और अंग्रेज अधिकारियों के वाहनों का आवागमन होता था। बाद में निचले हिस्से से पैदल और साइकिल सवारों को रास्ता दिया गया और ऊपर से वाहनों का आवागमन होने लगा।

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