अब आपके पते की पहचान केवल वर्ष 1972 में शुरू पोस्टल ईडेक्स नंबर (पिन) कोड से ही नहीं बल्कि डिजिटल पिन या डीजीपिन से भी होगी। डीजिपिन तैयार करने एवं उसके अमल के लिए डाक विभाग ज़ोरशोर से तैयारी कर रहा है। अगले तीन साल में देश भर में डिजिपिन को अमल में लाया जा सकता है। हाल ही में विभाग ने 10 गाँव और एक शहर में डिजिपिन के इस्तेमाल को लेकर पायलट प्रोजेक्ट पूरा किया है। हालांकि विभाग ने गाँव या उस शहर के नाम को सार्वजनिक नहीं किया है। डिजिपिन तैयार करने में डाक विभाग आईआईटी हैदराबाद इसरो और शहरी विकास मंत्रालय की मदद ले रहा है।
अभी डाक विभाग किसी बड़े इलाके या स्थान के लिए 6 अंकों वाले पिन कोड का इस्तेमाल करता है। बड़े शहरों में इलाके के मुताबिक अलग-अलग पिन कोड होते है। लेकिन डिजिपिन बिलकुल छोटे सी जगह की सटीक जानकारी देगा। गाँव से लेकर जंगल या समुद्री इलाके में भी डीजपिन की मदद से सटीक जगह तक पहुंचा जा सकेगा क्योंकि डिजिपिन पूरे देश के क्षेत्र 4 मीटर गुणा 4 मीटर के आकार में बांटता है जिनमें इलाके का अक्षांस व देशांतर शामिल होगा।
हर 4 गुणा 4 मीटर के क्षेत्र को 10 डिजिट का एक अल्फ़ान्युमेरिक कोड दिया जाएगा और उसे ही डिजिपिन कहा जाएगा। अभी किसी पते में मकान नंबर , गली, ब्लाक आदि इस्तेमाल किया जाता है और छोटे शहर या गाँव के पते में मकान नंबर या गली का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है। इसलिए डिलिवरी में परेशानी होती है। लेकिन जियो लोकेटेड एड्रेस कोड होने से डिजिपिन किसी खास स्थान की सटीक जानकारी देगा चाहे वह इलाका गाँव में हो, जंगल में या फिर समुद्र में। सिर्फ डाक पहुँचने में ही नहीं आपात स्थिति में बचाव कार्यक्रम में भी डिजिपिन से मदद मिलेगी। डिजिपिन राष्ट्रीय स्तर पर पते का ग्रिड होगा और वह सार्वजनिक होगा। किसी व्यक्ति की निजी जानकारी डिजिपिन में नहीं होगी। यह सिर्फ भौगोलिक जानकारी देगा।