कान्हा की नगरी मथुरा में कण- कण में प्रेम और अनुराग है। जब दुनिया में बेजुबानों पर जुल्म हो रहे है तो उनको इंसान से कैसा नाता। ये देखना है तो मथुरा स्थित चुरमुरा के हाथी संरक्षण केंद्र आइये। यहाँ ज़िंदगी के संकटों से मुक्त हुए हथियों के साथी इंसान है। अपनत्व के रिश्तों की डोर इतनी मजबूत है कि हाथी अपने महावत को परिवार का हिस्सा मानते हैं और महावत के लिए हाथी ही उनका सब कुछ है।
हाथी संरक्षण केंद्र में रिश्तों के भाव से सजी कई तस्वीर दिखती है। हाथी केंद्र के महावत बाबूराम वहाँ के हथियों की देख रेख में लगे रहते है। इसी केंद्र में 74 वर्षीय नेत्रहीन हथिनी है जिसका नाम है सूजी। बाबूराम सूजी का खास खयाल रखते हैं। इन दोनों का नाता 9 साल पुराना है।बाबूराम रोज़ सुबह उठकर सूजी के पैर छूते हैं। फिर सूजी को नहलाना उसके भोजन का इंतजाम करना होता है। हालाकि सूजी को दिखता नहीं है लेकिन बाबूराम की एक आवाज़ पर वो दौड़ पड़ती है। बाबूराम कहते हैं की वो मेरे परिवार की सदस्य की तरह है।
ऐसे ही इस केंद्र में एक और महावत है आसिफ। आगरा के रहने वाले आसिफ एक तरह से महावतों को ट्रेनिंग देते है। वैसे तो हथिनी के मुक़ाबले हाथी को ज्यादा गुस्सा आता है, ऐसे में उन्हे संभालने की ज़िम्मेदारी आसिफ की होती है।ट्रक से ज़ख्मी हुए हाथी जिसका नाम भोला है इसकी देखभाल आसिफ ही करते हैं इस कारण भोला से आसिफ की दोस्ती भी अच्छी हो गई है।
रिश्ते क्या होते हैं और उन्हे कैसे जिया जाता है ये यहा के बेजुबान ही सिखाते हैं। इसी केंद्र में एक और हथिनी है 65 वर्षीय होली। दुर्भाग्य से वो भी नेत्रहीन है और उसका ज़्यादातर समय तलाब में नहाने में गुजरता है। उसकी आँखें 55 साल की हथिनी कल्पना है। जितनी देर होली तालाब में रहती है कल्पना उसके पास ही रहती है। अगर दोनों को कुछ देर के लिए अलग भी कर दिया जाए तो होली चिल्लाने लगती है और महावत को पता चल जाता है की दोनों एक साथ रहना चाहती हैं।