बिहार में इन दिनों बाढ़ से तबाही का खतरनाक मंजर देखने को मिल रहा है। नेपाल में लगातार वर्षा से बिहार में नदियों ने रौद्र रूप ले लिया है। नदियों में उफान से 6 तटबंध और एक सुरक्षा बांध ध्वस्त हो गए हैं।
बिहार के वीरपुर और वाल्मीकिपुर बैराज से भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने के बाद 13 जिलों के 16.28 लाख से अधिक लोगों की स्थिति और खराब हो गई है। राज्य सरकार ने प्रदेश के उत्तरी, दक्षिणी और मध्य भागों में बाढ़ को लेकर चेतावनी जारी की है।
सीतामढ़ी शहर तक पहुंचा पानी
अधिकारियों ने बताया कि सीतामढ़ी जिले के बेलसंड के अंतर्गत मधकौल गांव में बागमती नदी का तटबंध रविवार को टूट गया, जिसकी मरम्मत की जा रही है। इससे करीब एक लाख की आबादी प्रभावित है। सीतामढ़ी के जिलाधिकारी (डीएम) रिची पांडे ने बताया कि इस घटना के मद्देनजर ग्रामीणों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है और मरम्मत का काम जारी है। इसी जिले में बागमती का दाहिना तटबंध बलुआ पंचायत के खरौउवा गांव के समीप टूट गया। बागमती परियोजना के सहायक अभियंता का कहना है कि 12 साल बाद इतना पानी बागमती में आया है।
नदियों का बढ़ रहा जलस्तर
पिछले तीन-चार दिनों से लगातार हो रही बारिश के बाद राज्य भर में गंडक, कोसी, बादमती, बूढ़ी गंडक, कमला बलान और महानंदा, बागमती और गंगा नदियों का जलस्तर बढ़ रहा है। नेपाल के जलग्रहण क्षेत्रों में लगातार बारिश के कारण सीमावर्ती जिलों में कई स्थानों पर नदियां खतरे के निशान को छू रही हैं या उससे ऊपर बह रही हैं। इसलिए बिहार में भीषण बाढ़ का खतरा लगातार बना हुआ है।
50 घंटे काफी चुनौतीपूर्ण: विजय कुमार चौधरी
बिहार सरकार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने सोमवार की शाम मीडिया से बात करते हुए कहा कि हमारे यहां मानसून से ज्यादा नेपाल की बारिश का प्रभाव पड़ा है। इस बार ऐसी स्थिति बनी कि नेपाल में करीब 60 से 70 घंटे तक लगातार बारिश हुई। विभाग ने पूर्वानुमान लगाया और सभी जिलाधिकारियों को अलर्ट कर दिया था। लेकिन उस अनुमान से अधिक बारिश हुई। नतीजा यह हुआ कि कोसी और गंडक उफना गईं। यह 50 घंटे काफी चुनौतीपूर्ण बीते। दिन-रात बचाव के इंतजाम में लगे रहे। लगातार बाढ़ के हालत की निगरानी की गई। पानी का दबाव ही इतना था कि पिछले कई साल का रिकॉर्ड टूट गया। सारे रिकॉर्ड टूट गए। 56 साल में सबसे अधिक पानी कोसी में आया है।
56 वर्षों में सबसे अधिक पानी कोसी से छोड़ा गया
कोसी नदी पर बने वीरपुर बैराज से रविवार सुबह पांच बजे तक कुल 6.61 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जो 56 वर्षों में सबसे अधिक है। राज्य जल संसाधन विभाग के ताजा बुलेटिन के अनुसार, पिछली बार इस बैराज से सबसे अधिक पानी 1968 में 7.88 लाख क्यूसेक छोड़ा गया था। इसी तरह गंडक नदी पर बने बाल्मीकिनगर बैराज से बीते शनिवार रात 10 बजे तक 5.62 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया। रविवार को एहतियातन कोसी बैराज के पास यातायात रोक दिया गया।
तेज बहाव के कारण सड़कें क्षतिग्रस्त
सहरसा के महिषी प्रखंड क्षेत्र के जलई थाना क्षेत्र में बाढ़ का पानी पहुंच गया। लोग जब तक संभल पाते तब तक कई घर डूब गए। कमर भर पानी दर्जनों गांव के घर में घुस गया। प्रशासनिक अधिकारियों की टीम राहत बचाव में जटी रही। वहीं तेज बहाव के कारण गंडौल टोल सड़क क्षतिग्रस्त हो गई। प्रशासन द्वारा लोगों को ऊंचे स्थानों पर शरण लेने की अपील की गई है।
जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते दिखे शिक्षक
नेपाल में हुई बारिश का असर दरभंगा जिला में साफ-साफ दिखने लगा है। जमालपुर के भूभौल गांव में देर रात कोसी के तटबंध के टूटने के बाद दर्जनों गांव में बाढ़ का पानी घुसा गया है जिससे ग्रामीणों का जनजीवन प्रभावित दिखने लगा है। सोमवार को इसी बाढ़ ग्रस्त इलाके के तिकेश्वरस्थान थाना क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक अपनी जान को जोखिम में डालकर मूल्यांकन करने अपने स्कूल निकल पड़े। मूल्यांकन कार्य में लगे शिक्षक अपने सिर पर जांचने वाली कॉपी और हांथों में अपने चप्पल/जूते और कंधे पर अपना बैग टांगकर जान को जोखिम में डालते हुए अपने कर्तव्य का पालन करने जाते दिखे।
बताया जा रहा है कि कोसी और गंडक नदी में पानी छोड़ने के रफ्तार में कमी आई है। अभी उत्तर बिहार में अगले 48 घंटे तक स्थिति चिंताजनक है। वहीं गंगा भी पटना में खतरे के निशान को फिर पार कर गई। इधर जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव संतोष कुमार मल्ल ने तीन दिन तक अभियंताओं को अलर्ट रहने को कहा है।
आखिर हर साल क्यों डूबता है बिहार
बिहार में हर साल ही बाढ़ आती है, खासकर उत्तरी बिहार में जहां 19 जिले पड़ते हैं। उत्तरी बिहार की सीमा नेपाल से लगती है। बिहार में कई सारी नदियां हैं जो बाढ़ का कारण बनती हैं।
गंगा नदी उत्तराखंड में हिमालय से निकलती है और उत्तर प्रदेश में बहती हुई बक्सर जिले से बिहार में आती है। कमला और बागमती नेपाल से निकलती हैं। गंडक नदी तिब्बत से जबकि कोसी हिमालय से निकलती है। बिहार में 36 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा इलाके में नदियां फैली हुई हैं। मॉनसून में जब ज्यादा बारिश होती है तो नदियां भर जाती हैं। अगर बिहार में कम बारिश भी होती है तो भी नेपाल में भारी बारिश के कारण नदियां तबाही लाती हैं।
क्या तटबंध ही बन रहे बाढ़ का कारण
बाढ़ को नियंत्रित करने की दृष्टि से 1954 में बिहार में पहली बार तटबंध बनाया गया था। तब ज्यादातर जमींदार ही अपनी जमीन को बचाने के लिए तटबंध बना देते थे। उस समय बिहार में 160 किलोमीटर इलाके में तटबंध बने थे। लेकिन आज 13 नदियों पर कुल 3,790 किलोमीटर इलाके पर तटबंध बने हैं। उत्तर बिहार की नदियों पर बने ज्यादातर तटबंध हर साल टूटते हैं। बाढ़ की स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब तटबंधों में दरार आ जाती है।
2019 में आई जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार,“1987 से 2018 के बीच बिहार में तटबंध टूटने की 400 से ज्यादा घटनाएं सामने आई थीं। हर साल तटबंधों को बनाने और मरम्मत करने के लिए डेढ़ अरब रुपये से ज्यादा खर्च होते हैं।”
2012 में आईआईटी कानपुर के दो प्रोफेसर राजीव सिन्हा और बीसी रॉय ने एक स्टडी के तहत बताया कि तटबंधों के कारण नदियों के बहने का स्तर बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिस कारण बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है।
जानिए इस आपदा के संभावित हल
जल संसाधन पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट मानते हैं कि नेपाल से सटे होने और नदियों की तलहट्टी में बसे होने के कारण यहां की भौगोलिक स्थिति में बाढ़ को टाला नहीं जा सकता, बल्कि बेहतर प्रबंधन से लोगों को हो रहे नुकसान में कमी जरूर आई जा सकती है। छोटे-छोटे नहर बनाकर कम प्रभाव वाले इलाकों में पानी को डायवर्ट किया जा सकता है। इसके अलावा बड़े जलाशयों का निर्माण कर पानी को संरक्षित किया जा सकता है। इससे जहां ज्यादा इलाकों में सिंचाई की जरूरत पूरी की जा सकती है, वहीं सूखे वाले इलाकों में पानी मुहैया कराया जा सकता है। साथ ही पीने के पानी के बढ़ते संकट को भी कम किया जा सकता है।