एक देश एक चुनाव की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए मंत्रिमंडल ने इससे संबन्धित विधेयक को हरी झंडी दे दी है। सरकार चालू शीतकालीन सत्र में ही विधेयक और उससे जुड़े क़ानूनों के मसौदे को संसद में पेश कर सकती है। माना जा रहा है कि विधेयक पर व्यापक सहमति बनाने के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जा सकता है। ध्यान देने कि बात है कि गृह मंत्री अमित शाह पहले ही मोदी सरकार के मौजूदा कार्यकाल में एक देश एक चुनाव को लागू किए जाने का ऐलान कर चुके है।
कैबिनेट की मंजूरी के बाद इस संबंध में विधेयक सदन में पेश करने का रास्ता साफ हो गया है। मोदी सरकार ने एक देश, एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। इस समिति ने 14 मार्च को रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट को सितंबर में कैबिनेट ने स्वीकार किया था। इसके करीब तीन महीने बाद विधेयक के मसौदे को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। उम्मीद है, संसद के इसी सत्र में विधेयक पेश किए जाएंगे।
देश भर में एक साथ चुनाव कब से?
एक देश, एक चुनाव भाजपा और नरेंद्र मोदी का पुराना एजेंडा है। प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही मोदी इसकी वकालत करते रहे हैं। अपने दूसरे कार्यकाल में 2 सितंबर 2023 को कोविंद कमिटी बना कर उन्होंने पहला कदम बढ़ाया था। अब वह कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू करने जा रहे हैं, लेकिन अगर यह कानून बन भी गया तो अमल में 2029 से आएगा या 2034 से, इस बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है।
असल में सारे चुनाव एक साथ नहीं?
सरकार के फैसले से एक और संकेत मिलता है कि अभी वह सारे चुनाव एक साथ करवाए जाने के पक्ष में नहीं है, क्योंकि कैबिनेट ने जिन विधेयकों को मंजूरी दी है उनमें पंचायत या निकाय चुनाव भी लोकसभा व विधानसभा चुनावों के साथ कराए जाने से संबंधित विधेयक नहीं है। कोविंद कमिटी का सुझाव था कि पहले लोकसभा व विधानसभा के चुनाव एक साथ करवाए जाएं और इसके सौ दिन के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक साथ करवाए जाएं। असल में, सारे चुनाव एक साथ करवाने में पेच यह है कि इससे जुड़े विधेयक पर कम से कम आधे राज्यों की मंजूरी लेनी होगी। यह जरा टेढ़ी खीर है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने संबंधी विधेयक पास करवाने में यह संवैधानिक बाध्यता नहीं है। शायद इसीलिए सरकार इसी पहल से अमल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाह रही है।