महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्ता के साथ मतदाता, महायुति की जीत व मविआ की हार का चुनावी विश्लेषण

राजनीतिक लिहाज से उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा महत्व अगर किसी राज्य का है तो वह है महाराष्ट्र। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ महायुति को छप्परफाड़ जनादेश मिला है। इसकी उम्मीद खुद महायुति के नेता भी नहीं कर रहे थे। मराठी मानुष ने जो जनादेश दिया है, उसका असर देश की राजनीति पर तो पड़ेगा ही, अर्थनीति पर भी पड़ेगा, क्योंकि महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी माना जाता है। भाजपा यह कह सकती है कि उसका शासन देश की राजनीतिक राजधानी के साथ आर्थिक राजधानी पर भी रहने वाला है। यह किसी से छिपा नहीं कि हर दल यह चाहता है कि उसका दिल्ली के साथ मुंबई पर भी नियंत्रण रहे।

महाराष्ट्र के नतीजों ने इस धारणा को ध्वस्त किया कि शरद पवार के बिना महाराष्ट्र की सत्ता की कल्पना नहीं की जा सकती। नतीजे बता रहे हैं कि शरद पवार की चाणक्य नेता वाली छवि उज्जवल नहीं। यह साफ दिख रहा है कि गत लोकसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन से भाजपा की अगुआई वाली महायुति ने सबक लिया और खुद में सुधार किया।महाराष्ट्र में 2019 विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 4% ज्यादा वोटिंग हुई। 2019 में 61.4% वोट पड़े थे। इस बार 65.11% वोटिंग हुई।

मेरा पानी उतरता देख, किनारों पर घर मत बसा लेना…मैं समंदरहूंलौटकर वापस आऊंगा।

देवेंद्र फडणवीस ने दुष्यंत कुमार का यह शेर 1 दिसंबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा में पढ़ा था। 28 नवंबर 2019 को भाजपा से अलग होकर उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और NCP के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उद्धव ठाकरे की वजह से ही फडणवीस सीएम बनते-बनते रह गए थे। 23 नवंबर 2024, यानी 5 साल पूरे होने के 5 दिन पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम आया। भाजपा 149 सीटों पर लड़ी, 132 सीटें जीती। उसके गठबंधन ने 288 सीटों में से रिकॉर्ड 230 सीटें जीतीं।

महाविकास अघाड़ी को 46 सीटें मिलीं

इस चुनाव में मुकाबला 6 बड़ी पार्टियों के दो गठबंधन में था। महायुति में भाजपा, शिवसेना (एकनाथ शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) शामिल हैं, जबकि महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार)। कांग्रेस नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी को 46 सीटें मिलीं।

महायुति की जीत के कारण

1- माझी लाडकी बहिन योजना की वजह से मिला महिलाओं का वोट

महायुति की शिंदे सरकार ने जून 2024 में माझी लाडकी बहिन योजना शुरू की। इस योजना के तहत 2.5 लाख रुपए से कम सालाना कमाई वाले परिवार की महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं। जुलाई से अक्टूबर तक 2.34 करोड़ महिलाओं को इसका फायदा मिला, जो राज्य की कुल महिला वोटर्स का लगभग आधा है। चुनाव के दौरान सीएम एकनाथ शिंदे ने वादा किया, “अगर महायुति सत्ता में आती है तो योजना के तहत हर महीने 2,100 रुपए दिए जाएंगे। कई लोगों ने इसे सराहा।”

चुनाव विशेषज्ञ के अनुसार-

महायुति को उम्मीद थी कि लाडकी बहिन योजना से महिलाओं का वोट हासिल करने में मदद मिलेगा। ऐसी ही योजना मध्यप्रदेश में बीजेपी के लिए कारगर साबित हुई, जहां कांग्रेस जीतती दिख रही थी।महिला वोटर्स चुनावों में किंगमेकर का रोल निभा रही हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञ के अनुसार-

मध्यप्रदेश की लाडकी बहन योजना को कॉपी कर महायुति ने महाराष्ट्र में लाडकी बहिन योजना लॉन्च की। इसमें टाइम-टू-टाइम महिलाओं को पैसा मिला। इस योजना से महिला वोटर्स महायुति की ओर लामबंद हुईं।

2- संघ का साथ

लोकसभा चुनाव के दौरान कई ऐसी खबरें चलीं कि बीजेपी और संघ के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। नतीजों में बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई। इस नतीजे को संघ-बीजेपी के बिगड़े हुए संबंधों से जोड़कर देखा गया। इसके बाद हरियाणा चुनाव में संघ जमीन पर उतरा और बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत हासिल कर हैट्रिक मारी। महाराष्ट्र में भी बीजेपी के लिए वोट मांगने के लिए संघ जमीन पर उतरा।

3- मराठा की बजाय छोटी-छोटी जातियों को बीजेपी ने साधा

इस चुनाव में बीजेपी ने जातिगत समीकरण साधने की पूरी कोशिश की। बीजेपी ने प्याज के निर्यात पर शुल्क घटाने से लेकर बंजारा विरासत म्यूजियम बनाने तक के दांव चले। गोपीनाथ मुंडे और प्रमोद महाजन के दौर में बनाया गया बीजेपी का ‘माधव’ फॉर्मूला इस चुनाव में जिंदा किया। बीजेपी ने ‘माधव’ में माली, धनगर और वंजारी समुदाय आते हैं। ये तीनों ही समुदाय OBC कैटेगरी में आते हैं। बीजेपी ने इस चुनाव में ‘मराठा’ से इतर OBC को साधने का प्रयास किया।

चुनाव विशेषज्ञ के अनुसार-

अब मराठा आंदोलन खत्म हो गया है और मनोज जरांगे पाटिल एक्सपोज हो गया। OBC में एकजुटता बढ़ी है। 2019 में दलित और मुस्लिम वोट एकमुश्त एक ओर पड़ा था, वैसा इस बार नहीं हुआ। इसका फायदा महायुति को मिला।

4- ज्यादा वोटिंग होने से महायुति को फायदा

2019 के विधानसभा चुनाव में 61.1% वोटिंग हुई थी, जो इस बार बढ़ी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में करीब 66% वोटिंग हुई।

विशेषज्ञ के अनुसार-

वोटिंग को बढ़ाने के लिए बीजेपी समेत महायुति अलायंस ने काफी जोर लगाया।

महाविकास अघाड़ी के हार के कारण

  • मविआ सीट बंटवारे का मुद्दा नामांकन तक सुलझाया नहीं जा सका। कांग्रेस और शिवसेना यूबीटी कई सीटों को लेकर लड़ती रही।
  • मविआ ने माझी लाड़की बहिन योजना पर सवाल उठाया। बाद में दोगुणी राशि देने का वादा कर दिया। भाजपा ने विरोधाभास उजागर कर दिया।
  • राहुल गांधी जातिवार जनगणना की बार करते रहे। लेकिन, मराठों को ओबीसी कोटे में ही आरक्षण पर रुख स्पष्ट नहीं कर सके।
  • लोकसभा चुनाव में मविआ ने भाजपा पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया था। इस बार भाजपा ने राहुल गांधी पर ही आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया।
  • मुस्लिम मतदाताओं के बीच उद्धव की बढ़ती लोकप्रियता ने उनके प्रतिबद्ध वोट बैंक को ही उनसे दूर कर दिया।

चुनाव विशेषज्ञ के अनुसार-

लोकसभा चुनाव के दौरान महाविकास अघाड़ी ने जो पकड़ बनाई थी, वो इस चुनाव में ढीली पड़ गई। महाविकास अघाड़ी ने न तो कोई नैरेटिव खड़ा किया और न ही कोई मुद्दा उठाया। पूरे चुनाव उन्होंने गद्दारी-गद्दारी का नारा लगाया।

आखिर क्यों नहीं चला उद्धव का जादू

हिंदुत्वकीराजनीतिपरबालठाकरे के परिवार की दावेदारी कमजोर हो गई। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र की जनता ने 2019 में एनडीए से अलग होकर कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन करना स्वीकार नहीं किया। महाराष्ट्र की जनता ने शिवसेना (शिंदे) को ही असली शिवसेना माना है उद्धव ठाकरे की शिवसेना को नकार दिया है।

उद्धव ठाकरे ने कहा-

मुझे समझ नहीं आ रहा कि ये सुनामी क्यों आई है। इस पर शोध करना होगा, क्योंकि किसान परेशान हैं, बेरोजगारी है।

राहुल गांधी बोले…

महाराष्ट्र के नतीजे अप्रत्याशित हैं और इनका हम विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

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