
वीर सावरकर केवल एक क्रांतिकारी नहीं, बल्कि एक महान विचारक, राष्ट्रवादी चिंतक और हिंदुत्व के प्रमुख प्रवर्तक भी थे। उनकी विचारधारा राष्ट्र की एकता और अखंडता पर आधारित थी। उनका जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागूर गांव में हुआ था। उन्होंने छात्र जीवन से ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया था और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1909 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और 1911 में उन्हें काला पानी की सजा देकर अंडमान और निकोबार द्वीप की सेल्युलर जेल में भेज दिया गया, जहां उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर यातनाएं झेलीं। सावरकर ने ‘हिंदुत्व’ का विचार प्रस्तुत किया और राष्ट्र की अखंडता, सांस्कृतिक गौरव और स्वदेशी मूल्यों पर बल दिया। उन्होंने सामाजिक सुधारों की दिशा में भी कार्य किया और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई।
वीर सावरकर की कश्मीर को लेकर सोच
कश्मीर को लेकर उनकी सोच बेहद स्पष्ट और दूरदर्शी थी। उन्होंने कश्मीर से लेकर रामेश्वरम तक भारत की एकता की बात कही थी और यह भी चेतावनी दी थी कि कश्मीर में भविष्य में पाकिस्तान की घुसपैठ का खतरा हो सकता है।
“एक भारत” की अवधारणा
वीर सावरकर भारत की संस्कृति, अखंडता और राष्ट्रवाद के कट्टर समर्थक थे। उनका मानना था कि भारत एक अखंड राष्ट्र है और उसकी सीमाओं की सुरक्षा सर्वोपरि है। उनका मानना था कि भारत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक अखंड राष्ट्र है और इसे विभाजित नहीं किया जा सकता। वीर सावरकर का विचार था
“एक ईश्वर, एक देश, एक लक्ष्य, एक जाति, एक जीवन, एक भाषा।”
कश्मीर में बहुमत और अल्पसंख्यक पर सावरकर का विचार
- जब 1942 में सावरकर कश्मीर की यात्रा पर गए, तो रावलपिंडी में उनसे सवाल पूछा गया कि मुस्लिम बहुल कश्मीर में हिंदू राजा क्यों होना चाहिए?
- इस पर सावरकर का जवाब था, “अगर मुस्लिम बहुल कश्मीर में हिंदू राजा नहीं होना चाहिए, तो क्या यही सिद्धांत हिंदू बहुल भोपाल और हैदराबाद पर भी लागू नहीं होना चाहिए, जहां मुस्लिम शासक हैं?”
- यह उनके स्पष्ट राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिसमें वे किसी भी जाति या धर्म के आधार पर विभाजन के खिलाफ थे।
1942 की कश्मीर यात्रा
सावरकर जुलाई 1942 में कश्मीर यात्रा पर गए, जब उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। जम्मू में 40,000 से अधिक हिंदू और मुस्लिम लोगों ने उनका स्वागत किया। उन्होंने हिंदुओं को संगठित रहने और राष्ट्र की एकता बनाए रखने का संदेश दिया।
1947 में कश्मीर पर सावरकर की चेतावनी
जब भारत आज़ादी की ओर बढ़ रहा था, सितंबर 1947 में सावरकर ने कश्मीर को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि “कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठ का खतरा है और इस पर निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।”
उनका मानना था कि अगर भारत ने कश्मीर की सुरक्षा को हल्के में लिया, तो पाकिस्तान इसका फायदा उठाएगा। सावरकर की चेतावनी सही साबित हुई। 1947 में पाकिस्तान ने कबाइलियों की आड़ में कश्मीर पर हमला कर दिया। भारतीय सेना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन युद्धविराम के कारण कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा (POK) पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। आज भी कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की समस्या बनी हुई है, जो सावरकर की दूरदर्शी सोच को सही साबित करता है।
दूरदर्शी व्यक्तित्व
वीर सावरकर केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी राष्ट्रवादी भी थे। उन्होंने भारत की अखंडता, संस्कृति और सुरक्षा को सर्वोपरि माना। कश्मीर के भविष्य को लेकर उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई। आज भी भारत की अखंडता और सुरक्षा के संदर्भ में उनकी विचारधारा प्रासंगिक बनी हुई है।
“कश्मीर से रामेश्वरम तक भारत एक है और एक ही रहेगा।” – वीर सावरकर