
अमेरिका में बसना लोगों का सपना होता है। जाहिर सी बात है कि भारतीय भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2022 में 65 हजार से ज्यादा भारतीयों को अमेरिकी नागरिकता प्रदान की गई। 2023 के अंत तक करीब 28,31000 विदेशी मूल के नागरिक भारत के रहने वाले थे। लेकिन अमेरिका की नागरिकता हासिल करना हमेशा इतना आसान नहीं था। अमेरिका में 20वीं सदी के दौरान नस्लभेद का दौर था। उस माहौल में भीकाजी बलसारा पहले ऐसे भारतीय बने, जिन्होंने अमेरिका की नागरिकता हासिल की।
हालांकि, बंबई (अब मुंबई) के कपड़ा व्यापारी बलसारा को इसके लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। उन्होंने ये लड़ाई लड़ी और सफलता हासिल की। अमेरिका में 1900 की शुरुआत में सिर्फ आजाद श्वेत लोगों को ही अमेरिका की नागरिकता दी जाती थी। लोगों को अमेरिका की नागरिकता 1790 के नैचुरलाइजेशन एक्ट के तहत मिलती थी। अमेरिका की नागरिकता लेने के लिए लोगों को साबित करना पड़ता था कि वो आजाद और श्वेत हैं।
1906 में लड़ी कानूनी लड़ाई
भीकाजी बलसारा ने इस कानून के तहत पहली लड़ाई साल 1906 में न्यूयॉर्क के सर्किट कोर्ट में लड़ी। बलसारा ने दलील दी कि आर्यन श्वेत थे, जिनमें कोकेशियन और इंडो-यूरोपियन भी शामिल हैं बाद में बलसारा की इस दलील का उन भारतीयों ने भी कोर्ट में इस्तेमाल किया, जो अमेरिका की नैचुरलाइज्ड सिटिजनशिप चाहते थे। बलसारा की दलील पर कोर्ट ने कहा कि अगर इस आधार पर उनको अमेरिका की नागरिकता दी जाती है तो इससे अरब, हिंदू और अफगानों के लिए भी नैचुरलाइजेशन का रास्ता खुल जाएगा। कोर्ट ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि बलसारा अमेरिका की नागरिकता के लिए उच्च अदालत में अपील कर सकते हैं।
बलसारा ने कैसे हासिल की नागरिकता
बलसारा को एक पारसी के तौर पर फारसी संप्रदाय का शुद्ध सदस्य माना जाता था। इसलिए उन्हें स्वतंत्र श्वेत व्यक्ति भी माना जाता था। बलसारा को 1910 में न्यूयॉर्क के दक्षिणी जिले के जज एमिल हेनरी लैकोम्बे ने इस उम्मीद के साथ अमेरिका की नागरिकता दे दी कि यूएसए के वकील उनके फैसले को चुनौती देंगे। साथ ही कानून की आधिकारिक व्याख्या के लिए अपील करेंगे। अमेरिकी अटॉर्नी ने लैकोम्बे की इच्छाओं का पालन किया और 1910 में इस मामले को सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स में ले गए। सर्किट कोर्ट ऑफ अपील्स ने सहमति जताई कि पारसियों को श्वेत के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसी फैसले के आधार पर बाद में एक अन्य संघीय अदालत ने एके मजूमदार को अमेरिका की नागरिकता दी थी।
पंजाबी अप्रवासियों ने अपनाया अवैध तरीका
बलसारा के पक्ष में आया ये फैसला अमेरिकी अटॉर्नी जनरल चार्ल्स जे. बोनापार्ट की 1907 की घोषणा के विपरीत था। इसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी कानून के तहत ब्रिटिश भारत के मूल निवासियों को श्वेत नहीं माना जा सकता है। साल 1917 के आप्रवासन अधिनियम के बाद अमेरिका में भारतीयों का आप्रवासन कम हो गया। हालांकि, पंजाबी अप्रवासी मेक्सिको सीमा के जरिये अमेरिका में घुसते रहे। कैलिफोर्निया की इंपीरियल वैली में पंजाबियों की बड़ी आबादी थी, जिन्होंने इन अप्रवासियों की मदद की। सिख अप्रवासी पंजाबी आबादी के साथ आसानी से घुल मिल गए। भारतीय स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाने वाले कैलिफोर्निया के समूह गदर पार्टी ने मेक्सिको की सीमा के जरिये लोगों को अवैध तरीके से अमेरिका में घुसने में मदद की।