वक्फ संशोधन विधेयक की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में बुधवार को बवाल मच गया। विपक्षी सदस्यों ने कार्यवाही को मजाक बताते हुए मीटिंग का बहिष्कार किया। हालांकि, बाद में वे वापस लौट आए। समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कार्यकाल बढ़ाने की बात कही है। विपक्ष का कहना है कि विधेयक पर पूरी तरह से विचार करने के लिए और समय चाहिए। जेपीसी का कार्यकाल बढ़ने के बाद यह भी बात तय है कि वक्फ बिल इस संसद सत्र में पेश नहीं हो पाएगा। यह और लंबे समय तक के लिए लटक सकता है।
BJP सांसद और वक्फ JPC चेयरपर्सन जगदंबिका पाल ने मीटिंग के बाद कहा…
“हमें अभी भी दूसरे लोगों और छह राज्यों के अधिकारियों की बात सुननी है। इन राज्यों में वक्फ और राज्य सरकारों के बीच विवाद हैं। 123 प्रॉपर्टी पर भारत सरकार, शहरी मंत्रालय और वक्फ बोर्ड के बीच विवाद है। हमें लगता है कि कार्यकाल बढ़ाने की ज़रूरत है।”
कमिटी मेंबर और बीजेपी सांसद अपराजिता सारंगी ने बताया…
“कमिटी लोगसभा स्पीकर ओम बिड़ला से रिपोर्ट जमा करने की समयसीमा 2025 के बजट सत्र के आखिरी दिन तक बढ़ाने का अनुरोध करेगी। हमारे पास अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की सुनवाई थी और वक्फ संशोधन विधेयक 2024 में प्रस्तावित विभिन्न संशोधनों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। हंगामा मूल रूप से रिपोर्ट जमा करने के संबंध में उनके अनुरोध से उत्पन्न हुआ। इस बारे में काफी बहस हुई। सत्तारुढ़ दल के सदस्यों ने भी महसूस किया कि कुछ तरह का विस्तार होना चाहिए। मुझे लगता है कि कुछ समय निश्चित रूप से आवश्यक है।”
विपक्षी सांसदों ने JPC अध्यक्ष पर ये आरोप लगाए
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोईने कहा…
“लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संकेत दिया था कि समिति को विस्तार दिया जा सकता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि कोई बड़ा मंत्री जगदंबिका पाल की कार्रवाई को डायरेक्ट कर रहा है।”
आप सांसद संजय सिंह ने कहा…
“स्पीकर ने हमें आश्वासन दिया था कि JPC का समय बढ़ा देंगे। लेकिन अब उन्होंने कहा कि मसौदा रिपोर्ट पेश करने के लिए तैयार है। पाल ने दिल्ली सरकार, जम्मू-कश्मीर सरकार, पंजाब सरकार और यूपी सरकार की बात नहीं सुनी।”
YSRCP सांसद वी विजयसाई रेड्डी ने कहा…
“भाजपा से गठबंधन न करने वाली सभी पार्टियां JPC का विस्तार चाहती थीं, लेकिन पाल ने अपना काम पूरा करने की बात कही। ताकि रिपोर्ट 29 नवंबर को लोकसभा में पेश की जा सके।”
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा…
“मैंडेट ये है कि रिपोर्ट 29 (नवंबर) को दी जानी चाहिए। हम इसे कैसे दे सकते हैं, इसके लिए तय प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए जो नहीं किया गया है! सबसे जरूरी बात ये है कि इस समिति ने बिहार, पश्चिम बंगाल का दौरा नहीं किया है। ऐसे कई स्टेकहोल्डर्स हैं, जिन्हें हम आने देना चाहते हैं। ये कमेटी सभी स्टेकहोल्डर्स को आने की परमिशन क्यों नहीं दे रही है?”
JPC में लोकसभा के 21 सदस्य
1.जगदंबिका पाल (भाजपा) 2. निशिकांत दुबे (भाजपा) 3. तेजस्वी सूर्या (भाजपा) 4. अपराजिता सारंगी (भाजपा) 5. संजय जायसवाल (भाजपा) 6. दिलीप सैकिया (भाजपा) 7. अभिजीत गंगोपाध्याय (भाजपा) 8. श्रीमती डीके अरुणा (YSRCP) 9. गौरव गोगोई (कांग्रेस) 10. इमरान मसूद (कांग्रेस) 11. मोहम्मद जावेद (कांग्रेस) 12. मौलाना मोहिबुल्ला (सपा) 13. कल्याण बनर्जी (TMC) 14. ए राजा (DMK) 15. एलएस देवरालयु (TDP) 16. दिनेश्वर कामत (JDU) 17. अरविंद सावंत (शिवसेना, उद्धव गुट) 18. सुरेश गोपीनाथ (NCP, शरद पवार) 19. नरेश गणपत म्हास्के (शिवसेना, शिंदे गुट) 20. अरुण भारती (LJP-R) 21. असद्द्दीन ओवैसी (AIMIM)
JCP में राज्यसभा के 10 सदस्य
1.बृज लाल (भाजपा) 2. डॉ. मेधा विश्राम कुलकर्णी (भाजपा) 3. गुलाम अली (भाजपा) 4. डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल (भाजपा) 5. सैयद नसीर हुसैन (कांग्रेस) 6. मोहम्मद नदीम उल हक (TMC)7. वी विजयसाई रेड्डी (YSRCP) 8. एम मोहम्मद अब्दुल्ला (DMK)9. संजय सिंह (AAP)10. डॉ. धर्मस्थल वीरेंद्र हेगड़े (राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत)
क्या होती है JPC और क्यों होता है इसका गठन? जानिए इसके कार्य, अधिकार व शक्तियों के विषय में
संसद में विधायी समेय अन्य मामलों के बहुत सारे कामकाज होते हैं। सभी मामलों पर गहराई से विचार करना संभव नहीं होता है, ऐसे में कई कार्यों को करने के लिए विशेष समितियों का गठन किया जाता है। अलग-अलग कार्यों के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की समिति गठित की जा सकती है।
अस्थाई एवं स्टैंडिंग कमेरी
संसदीय समितियां मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं, अस्थाई या एडहॉक और स्टैंडिंग कमेटी। अस्थायी समितियां किसी विशेष उद्देश्य से नियुक्त की जाती हैं और अपना कार्य समाप्त करने के बाद स्वत: समाप्त हो जाती हैं।
आइए संयुक्त संसदीय समिति के बारे में विस्तार से समझते हैं…
उद्देश्य: भारतीय संसदीय प्रणाली में संयुक्त संसदीय समिति एक शक्तिशाली जांच निकाय है, जिसे कई सारे अधिकार प्राप्त होते हैं। इसमें कई दलों के सदस्य शामिल होते हैं। आमतौर पर किसी बिल के प्रावधानों या किसी मुद्दे या घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाता है।
संरचना: अस्थायी समितियों में मुख्य रूप से चयन और संयुक्त संसदीय समिति शामिल होती हैं। संयुक्त संसदीय समिति किसी बिल या मुद्दे पर गहन जांच के लिए गठित की जाती है। इसमें राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं।
गठन: संयुक्त संसदीय समिति का गठन करने के लिए संसद के एक सदन द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाता है और दूसरे सदन से इस पर सहमति ली जाती है। इसके बाद दल अपने सदस्यों का नाम जेपीसी के लिए आगे बढ़ाते हैं।
सदस्यों की संख्या: संयुक्त संसदीय समिति में सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं होती है, लेकिन इसके निर्माण के समय ध्यान रखा जाता है कि अधिक से अधिक पार्टियों के सदस्यों की भागीदारी इसमें हो। आमतौर पर समिति में बहुमत वाले या फिर सबसे बड़े दल के सदस्य सबसे अधिक होते हैं। लोकसभा स्पीकर समिति के अध्यक्ष का चुनाव करते हैं।
शक्तियां: जेपीसी को जिस उद्देश्य से गठित किया गया है, उससे संबंधित साक्ष्य और तथ्य जुटाने के लिए उसके पास किसी भी व्यक्ति, संस्था या पक्ष को बुलाने और पूछताछ करने का अधिकार होता है। साथ ही मामले से जुड़े किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है।
गोपनीयता: जनहित के मामलों को छोड़कर समिति की कार्यवाही और निष्कर्ष को गोपनीयता रखा जाता है। सरकार चाहे तो राज्य या देश की सुरक्षा से जुड़े दस्तावेजों को वापस ले सकती है।
विघटन: संयुक्त संसदीय समिति के पास किसी भी विषय की जांच के लिए अधिकतम तीन महीने की समय सीमा होती है। जांच रिपोर्ट पेश करने के बाद समिति का अस्तित्व स्वत: ही समाप्त हो जाता है।
रिपोर्ट: विषय पर रिपोर्ट पेश करने के बाद संयुक्त समिति स्वत: ही समाप्त हो जाती है। समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए सरकार बाध्य नहीं होती है। अगर वह चाहे तो अपने विवेक से रिपोर्ट के आधार पर जांच शुरू करने का फैसला कर सकती है। सरकार को जेपीसी की सिफारिशों के आधार पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट देनी होती है।
संसद में चर्चा: सरकार के जवाब के आधार पर समितियां संसद में कार्यवाई रिपोर्ट पेश करती है। रिपोर्टों पर संसद में चर्चा की जा सकती है और इससे जुड़े सवाल उठाए जा सकते हैं।
आइए जानते हैं वक्फ बोर्ड का पुराना कानून क्या कहता है…
- सेक्शन 40 में रीजन टू बिलीव के तहत अगर वक्फ बोर्ड किसी प्रॉपर्टी पर दावा करता है तो उस जमीन पर दावा करने वाला सिर्फ ट्रिब्यूनल में ही अपील कर सकता है।
- वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला आखिरी माना जाता है। उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।
- किसी जमीन पर मस्जिद हो या उसका उपयोग इस्लामिक उद्देश्यों के लिए हो तो वो ऑटोमैटिक वक्फ की संपत्ति हो जाती है।
- वक्फ बोर्ड में महिला और बतौर सदस्य अन्य धर्म के लोगों की एंट्री नहीं होगी।
अब वक्फ बोर्ड के नए प्रस्तावित बिल को समझते हैं…
- नए बिल के अनुसार, जमीन पर दावा करने वाला ट्रिब्यूनल के अलावा रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट या हाईकोर्ट में अपील कर सकेगा।
- अब वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा सकेगी।
- जब तक किसी ने वक्फ को दान में जमीन नहीं दी हो, उस पर भले ही मस्जिद बनी हो पर वह वक्फ की संपत्ति नहीं होगी।
- वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं और अन्य धर्म के दो सदस्यों को एंट्री मिलेगी।