चुनाव से पहले लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने पर शीर्ष न्यायालय सख्त

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त चीजें देने के राजनीतिक दलों के वादे पर कहा कि राष्ट्रीय विकास के लिए लोगों को मुख्यालय में लाने के बजाए क्या हम परीजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं। न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि बेहतर होगा कि लोगों को समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाकर राष्ट्रीय विकास में योगदान दिया जाए।

पीठ ने सवाल किया, “राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के बजाय, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?” न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “दुर्भाग्यवश, चुनाव से ठीक पहले घोषित की जाने वाली इन मुफ्त की योजनाओं, जैसे ‘लाडकी बहिन’ और अन्य योजनाओं के कारण लोग काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।”

शीर्ष कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कल्याणकारी योजनाएं गरीबों के उत्थान के लिए आवश्यक हैं, लेकिन चुनावी फ्रीबीज़ को लोकलुभावनवाद और असमानता को बढ़ावा देने वाली मानी जा सकती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता समाज के आत्मनिर्भरता और मेहनत की भावना को कमजोर कर सकती है। न्यायमूर्ति रमना ने कहा, “जो हाथ देता है, वही हाथ लेता भी है,” और ऐसे समाज की ओर इशारा किया जहां लोग मुफ्त योजनाओं पर निर्भर हो सकते हैं, जो श्रम की संस्कृति को नष्ट कर सकती हैं।

जहां एक ओर कई राजनीतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता फ्रीबीज़ का समर्थन करते हैं, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह समाज में काम करने की इच्छा को प्रभावित कर सकता है। आम आदमी पार्टी और तमिलनाडु की डीएमके जैसी पार्टियाँ फ्रीबीज़ के पक्ष में हैं, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी भी विभिन्न योजनाओं का हिस्सा हैं। इस समर्थन का मुख्य तर्क यह है कि फ्रीबीज़ से समाज में समानता आती है और गरीबों की मदद होती है।

न्यायालय शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था। अदालत ने कहा कि लोगों को बिना काम किए मुफ्त राशन और पैसा मिल रहा है। पीठ ने पूछा, हम उनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या यह बेहतर नहीं होगा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाया जाए और राष्ट्र के विकास में योगदान करने का मौका दिया जाए याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि देश में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो काम न करना चाहे, यदि उसके पास काम हो। न्यायाधीश ने कहा, आपको केवल एकतरफा जानकारी है। मैं एक कृषक परिवार से आता हूं। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले घोषित मुफ्त सुविधाओं के कारण, किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं।

हालांकि अदालत ने कहा कि वह बहस नहीं करना चाहती। न्यायालय ने कहा कि अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी समेत सभी लोग इस बात पर एकमत हैं कि बेघर लोगों को आश्रय प्रदान करने पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। पीठ ने पूछा लेकिन साथ ही, क्या इसे संतुलित नहीं किया जाना चाहिए।

वेंकटरमणि ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में बेघरों के लिए आश्रय की व्यवस्था समेत विभिन्न मुद्दों का समाधान किया जाएगा। पीठ ने अटॉर्नी जनरल को केंद्र सरकार से यह पूछने का निर्देश दिया कि शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन कितने समय में लागू किया जाएगा। पीठ ने कहा इस बीच, अटॉर्नी जनरल से यह अनुरोध किया जाता है कि वह इस बारे में निर्देश लें कि क्या उक्त योजना के क्रियान्वयन तक भारत सरकार राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन को जारी रखेगी।

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