
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (1 अक्तूबर,2024) को बुलडोजर एक्शन केस पर सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक जगहों पर स्थित किसी भी धार्मिक ढ़ाचे को, चाहे वह दरगाह हो या मंदिर, उसे हटाना होगा क्योंकि जनहित सर्वोपरि है। शीर्ष कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं। हम जो भी तय कर रहे हैं वह सभी नागरिकों, संस्थानों के लिए है, किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं! किसी विशेष धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता।
बुलडोजर कार्रवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
राज्यों में अपराधियों की संपत्ति जबरन ढहाने की शिकायत वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखते हुए अदालत ने कहा कि वह देशभर में संपत्ति ढहाने को लेकर दिशा-निर्देश तय करेगी। यह दिशा-निर्देश सभी नागरिकों पर लागू होगा। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि 17 सितंबर के आदेश में शीर्ष अदालत की अनुमति के बिना अपराध के आरोपियों की संपत्ति जबरन ढहाने पर 1 अक्तूबर तक लगाई गई रोक आगे भी तब तक जारी रहेगी जब तक कि वह मामले में फैसला नहीं सुना देती। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह सार्वजनिक सड़कों, सरकारी भूमि या वनों की भूमि पर किसी भी अनधिकृत निर्माण को संरक्षण नहीं देगा।
सुप्रीम कोर्ट और जनरल तुषार मेहता के बीच सवाल-जवाब
शीर्ष अदालत ने राज्यों में अपराध के आरोपियों की संपत्ति जबरन ढहाने की शिकायत वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ को बताया कि उनके पास ध्वस्तीकरण अभियान पर पूरे देश के लिए दिशा-निर्देशों पर कुछ सुझाव हैं।
मेहता: किसी व्यक्ति पर अपराध में शामिल होने का आरोप लगाया जाना ध्वस्तीकरण का आधार नहीं हो सकता।
पीठ: अगर व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो क्या यह संपत्ति के ध्वस्तीकरण का आधार होगा?
मेहता: नहीं, बिल्कुल नहीं और यहां तक कि जघन्य अपराधों के लिए भी नहीं।
बच्चों और महिलाओं को सड़क पर देखना दुखद
पीठ ने कहा, संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए नोटिस पंजीकृत डाक के माध्यम से मालिकों को भेजे जाने चाहिए। इसे ऑनलाइन पोर्टल पर भी रखा जा सकता है ताकि डिजिटल रिकॉर्ड हो सके। साथ ही अधिकारियों के पारित आदेश की सत्यता पर न्यायिक निगरानी की भी जरूरत होगी। पीठ ने कहा कि बच्चों व महिलाओं को सड़क पर देखना दुखद होता है। ध्वस्तीकरण आदेश और उसके क्रियान्वयन के बीच 10 या 15 दिनों का समय होना चाहिए ताकि लोग वैकल्पिक व्यवस्था कर सकें।
जानिए क्यों उठ रहे हैं बुलडोजर कार्रवाई पर इतने सवाल
बीते कुछ समय से बुलडोजर कार्रवाई पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि कई राज्यों में संगीन अपराधों में लिप्त अभियुक्तों के घरों, दुकानों आदि पर बुलडोजर चलाए गए। इस पर संबंधित सरकारों और उनके पुलिस-प्रशासन की ओर से यह दलील दी जाती है कि इस तरह की कार्रवाई किसी व्यक्ति के अपराध में लिप्त होने के कारण नहीं, बल्कि इसलिए की जाती है कि उसका घर या व्यावसायिक स्थल बिना नक्शे के या अतिक्रमण करके बना पाना होता है।
यह दलील निराधार नहीं है लेकिन यह भी सच है कि अपने देश में बड़ी संख्या में घर और अन्य इमारतें स्थानीय निकायों की ओर से स्वीकृत नक्शे के बिना बनाई जाती हैं। जिस इलाके में किसी संदिग्ध अपराधी या अभियुक्त का घर अथवा व्यावसायिक भवन अवैध तरीके से बना होता है, वहीं अन्य लोगों के भी बने होते हैं लेकिन वे बुलडोजर कार्रवाई से बचे रहते हैं। यही कारण है कि अनाधिकृत निर्माण के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई को न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ कहा जाता है। बुलडोजर कार्रवाई के जरिए जब किसी अभियुक्त का घर गिराया जाता है तो उसके स्वजन भी सड़क पर आ जाते हैं। यह भी तो न्यायसंगत नहीं है!
तथ्य यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले यह आदेश दिया था कि यातायात में बाधक बनने वाले धार्मिक स्थलों को हटाया जाए, लेकिन उस पर अमल अब तक नहीं किया जा सका! उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट यह देखे कि ऐसा क्यों है अवैध तरीके से या अतिक्रमण कर बनाई गई इमारतों के खिलाफ सख़्ती दिखाई दी जानी चाहिए। इसी से अतिक्रमण और अवैध निर्माण की राष्ट्रव्यापी समस्या का समाधान किया जा सकता है। इस समस्या के लिए केवल अवैध निर्माण या अतिक्रमण करने वाले ही दोषी नहीं हैं। इसके लिए सरकारी विभाग भी दोषी हैं जो नियम विरुद्ध निर्माण होने देते हैं। ऐसी कोर्ट व्यवस्था बननी ही चाहिए जिससे देश में अवैध निर्माण थमे, चाहे वह धार्मिक स्थलों के रूप में हो या फिर अन्य किसी तरह के निर्माण के रूप में।