नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि बच्चों से संबंधित यौन सामग्री को डाउनलोड करना, अपने पास रखना या देखना भी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत दंडनीय अपराध है। कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के एक विवादास्पद फैसले को पलटते हुए यह निर्णय सुनाया।
मद्रास हाईकोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था, जिसके पास बच्चों की यौन गतिविधियों से संबंधित वीडियो था। आरोपी ने यह वीडियो करीब तीन साल से अपने पास रखा हुआ था। हाईकोर्ट ने कहा था कि इस प्रकार की सामग्री को अपने पास रखना या उसका भंडारण करना POCSO अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने दी स्पष्टता
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि बच्चों से जुड़ी यौन सामग्री को डाउनलोड करना, देखना या अपने पास रखना भी POCSO अधिनियम की धारा 15 के तहत अपराध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधूरा नहीं, बल्कि पूरा अपराध है, जो कानून के तहत दंडनीय है। इस प्रकार की सामग्री का भंडारण भी अपराध के दायरे में आता है, भले ही इसका प्रसारण न किया गया हो।
हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि निजी डोमेन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना दंडनीय नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह निर्णय न्याय के खिलाफ था और कानून के प्रावधानों के प्रति अनभिज्ञता को दर्शाता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ कार्यवाही रद्द करके गंभीर गलती की है।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी एक गंभीर समस्या
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों से संबंधित यौन उत्पीड़न आज एक व्यापक सामाजिक समस्या बन चुका है, जो पूरी दुनिया के समाजों को प्रभावित कर रहा है। कोर्ट ने इसे भारत के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय करार दिया। कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और इसके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
POCSO अधिनियम की धारा 15 के तहत दंड
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि POCSO अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत, किसी बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री का भंडारण या कब्जा करना दंडनीय अपराध है। यह अधिनियम इस शर्त के अधीन है कि यदि आरोपी आपत्तिजनक सामग्री को नष्ट, मिटाने या रिपोर्ट करने में विफल रहता है, तो उसे दंडित किया जाएगा।
हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के 11 जनवरी के फैसले को रद्द करते हुए तिरुवल्लूर जिला कोर्ट में आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की अश्लील सामग्री का भंडारण एक गंभीर अपराध है और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है। बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री को किसी भी रूप में देखना, डाउनलोड करना या अपने पास रखना अब कानून के तहत अपराध है, और इसके लिए कड़े दंड का प्रावधान है। यह निर्णय न केवल कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करेगा, बल्कि समाज में बच्चों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक सख्त संदेश भी देगा