सेना में महिलाओं को स्थायी कमिशन मिलने पर ट्विटर पर भिड़े राहुल गांधी और स्मृति ईरानी
भारतीय सेना में महिला अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद राहुल गांधी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी में बीच ट्विटर पर भिड़ गए हैं। दलअसल, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति एक विकासवादी प्रक्रिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। कोर्ट ने महिलाओं की शारीरिक विशेषताओं पर केंद्र के विचारों को खारिज कर दिया और कह कि केंद्र अपने दृष्टिकोण और मानसिकता में बदलाव करे। अदालत के इस फैसले के साथ ही सेना में अब महिलाओं को भी स्थायी कमीशन मिलेगा।
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यह था राहुल गांधी का ट्वीट
कोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहकर महिलाओं का अपमान किया है कि महिला सैनिक कमांड पोस्ट और परमानेंट कमीशन के लायक नहीं हैं, क्योंकि वे पुरुषों से कमजोर हैं। मैं सभी महिलाओं को साथ खड़े होने और भाजपा सरकार को गलत साबित करने के लिए बधाई देता हूं।
स्मृति ईरानी ने किया पलटवार
राहुल गांधी के ट्वीट के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईराने ने राहुल गांधी को घेरते हुए ट्वीट किया कि आदरणीय बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाने, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे जिन्होंने सशस्त्र बल में महिलाओं के लिए परमानेंट कमीशन का ऐलान कर लैंगिक न्याय को सुनिश्चित किया। भाजपा महिला मोर्चा ने इस मुद्दे को तब उठाया था, जब आपकी सरकार ने इस बदलाव को ठेंगा दिखा दिया था। ट्वीट से पहले टीम को बोलो की चेक करें।
राहुल गांधी के दावों में कितनी सच्चाई
राहुल गांधी के दावों के जवाब में सोशल मीडिया पर 2010 में यूपीए सरकार के दौरान महिलाओं को स्थायी करने के विरोध से जुड़ी कई खबरें पोस्ट की गई हैं। इसे ही आधार बनाते हुए स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर तंज कसते हुए फैक्ट चेक करने की बात कही है।
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2008 में दो ब्रांच में मिला था स्थायी कमीशन
बता दें कि सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महिलाएं अब सेना में पूर्णकालिक रूप से कर्नल या उससे ऊपर रैंक तक पहुंच सकती हैं। युद्ध अथवा दुश्मनों से मुकाबला करने वाली भूमिकाओं में महिलाओं की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, इसलिए वह अभी भी पैदल सेना, तोपखाने और बख्तरबंद कोर में शामिल नहीं हो सकती हैं। यह फैसला आने के बाद एक महिला कर्नल अब 850 पुरुषों की एक बटालियन की कमान संभाल सकती है।
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