भारत में किसी विशिष्ट नेता के निधन या गंभीर राष्ट्रीय संकट के समय राष्ट्रीय और राजकीय शोक की घोषणा की जाती है। यह दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने और संवेदना प्रकट करने का एक आधिकारिक तरीका है। हालांकि, इस दौरान छुट्टी न देने का कारण अक्सर चर्चा का विषय बनता है।
छुट्टी न देकर यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि कार्य और दैनिक जीवन निरंतर जारी रहे। इस प्रकार शोक केवल एक सांकेतिक प्रक्रिया बनकर अपने उद्देश्य को पूरा करता है। आइए इस पर विस्तार से समझते हैं।
राष्ट्रीय और राजकीय शोक का उद्देश्य
राष्ट्रीय शोक: यह देशव्यापी शोक होता है, जिसे आमतौर पर किसी शीर्ष नेता जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या अन्य प्रतिष्ठित शख्स के निधन पर घोषित किया जाता है। इस अवधि में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया जाता है। सरकारी समारोह और मनोरंजन के कार्यक्रम स्थगित कर दिए जाते हैं। टीवी और रेडियो पर शोक संदेश और भक्ति संगीत प्रसारित किए जाते हैं।
राजकीय शोक: यह किसी राज्य स्तर के प्रतिष्ठित व्यक्ति के निधन पर घोषित किया जाता है। राज्य सरकार इसकी अवधि की घोषणा करती है। इसका प्रभाव केवल संबंधित राज्य तक ही सीमित रहता है।
आर्थिक व प्रशासनिक कारण
ध्वज को आधा झुकाना, सांस्कृतिक और मनोरंजन गतिविधियों को स्थगित करना शोक प्रकट करने के लिए पर्याप्त माना जाता है। कार्यालय और संस्थान खुले रहते हैं ताकि सामान्य दिनचर्या प्रभावित न हो। छुट्टी से देश की उत्पादकता पर असर पड़ सकता है। सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
क्या है नीति
भारत में केवल विशेष अवसरों और राष्ट्रीय महत्व के दिनों पर ही सार्वजनिक छुट्टियां निर्धारित हैं। शोक के दौरान छुट्टी देना आवश्यक नहीं माना जाता है। सरकारी कार्यालय और अन्य सेवाएं सामान्य रूप से कार्य करती रहती हैं। वहीं राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया जाता है।
बड़े समारोह या मनोरंजन के कार्यक्रम स्थगित कर दिए जाते हैं। राष्ट्रीय और राजकीय शोक के दौरान छुट्टी न देने का मुख्य उद्देश्य यह है कि शोक केवल श्रद्धांजलि का प्रतीक है, न कि कामकाज को रोकने का कारण।