हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला देश के सुंदर, शांत और सुरम्य शहरों में शुमार है पर आजकल वहां कि आबोहवा में जो तनाव व्याप्त है, वह न केवल दुखद है बल्कि शर्मनाक भी है। शिमला के संजौली में मस्जिद में अवैध निर्माण के विरोध में हिंदुवाही संगठनों ने प्रदर्शन किया। ज्ञात हो कि मस्जिद में अवैध निर्माण को ढहाने के लिए कई दिनों से विरोध हो रहा है। संजौली क्षेत्र में जिला प्रशासन की ओर से निषेधाज्ञा लगाकर मंगलवार को सारा क्षेत्र सील कर वहां फ्लैग मार्च भी किया गया था।
लेकिन बुधवार सुबह भारी भीड़ बैरिकेड तोड़कर संजौली पहुंच गई। पुलिस ने सुबह ही हिंदु जागरण मंच के अध्यक्ष कमल गौतम को हिरासत में ले लिया था। इस दौरान प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और वाटर कैनन का भी प्रयोग किया। इस दौरान चार पुलिसकर्मी और आठ प्रदर्शनकारी घायल हुए हैं। मामले में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने डीजीपी को तलब किया है। वहीं हिंदू संगठनों का आरोप है कि इस प्रदर्शन में पहुंचने से रोकने के लिए पूरे प्रदेश की सड़कों को पुलिस ने सील कर दिया था और हिंदु संगठनों के कई नेताओं को नजरबंद भी किया था।
बुधवार को शिमला में जुटी प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और मस्जिद में अवैध निर्माण को जल्द गिराने की मांग की। आंदोलन में काफी संख्या में महिलाएं भी शामिल रहीं। प्रदर्शन में शामिल सुनीता ने दावा किया कि पुलिस ने बच्चों पर भी लाठीचार्ज किया।
क्या है मामला
संजौली मस्जिद 1947 से पहले बनी थी। 2010 में इसकी पक्की इमारत बननी शुरू हुई। दो मंजिला इमारत बनाने की इजाजत मिली थी लेकिन मस्जिद पांच मंजिला है। नगर निगम में इसकी शिकायत की गई। निगम 35 बार अवैध निर्माण तोड़ने का आदेश दे चुका है। ताजा विवाद 31 अगस्त से शुरू हुआ जब दो गुटों के बीच मारपीट हुई। बताया गया कि मारपीट के आरोपी मस्जिद मे छिप गए। इसके बाद हिंदू संगठनों ने मस्जिद का अवैध निर्माण गिराने की मांग की।
बच्चे स्कूलों में फंसे रहे
झड़प के कारण संजौली, ढल्ली और आसपास के इलाकों के बच्चे स्कूलों में फंसे रहे। स्थानीय निवासियों ने प्रशासन के प्रति अपने आक्रोश का इजहार किया। उनका कहना था कि प्रदर्शन की जानकारी होने के बावजूद प्रशासन ने विद्यालयों को बंद रखने का आदेश नहीं दिया, इससे बच्चे दिन भर परेशान रहे। अभिभावक भी उन तक नहीं पहुंच सके।
जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन
बुधवार को प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर हिंदू संगठनों ने मस्जिद में अवैध निर्माण के विरोध में प्रदर्शन किया। इस दौरान कुछ जिलों में डीसी को ज्ञापन भी सौंपे गए। इस मामले में शहरी विकास एवं लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि यह मामला लंबे समय से लंबित है। जहां तक मस्जिद के अवैध निर्माण की बाद है, उस पर सरकार ने संज्ञान लिया है। मैंने विधानसभा में भी मजबूती से कहा है कि जैसे ही इसमें फैसला आता है और अगर ये अवैध पाया जाता है तो निश्चित तौर पर इसे ध्वस्त किया जाएगा।
आखिर ऐसे प्रदर्शन की जरूरत क्यों
शिमला में बुधवार को तनाव फैल गया जब एक अवैध मस्जिद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों लोग पुलिस से ही भिड़ गए। क्या ऐसे प्रदर्शन से बचा जा सकता था? क्या पुलिस या प्रशासन पहले से सजग नहीं था? क्या प्रदर्शन की तीव्रता का अंदाजा नहीं लगाया गया था? शिमला में जो हुआ उसने पुलिस को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया हो तो आश्चर्य नहीं। कोशिश होनी चाहिए कि ऐसे प्रदर्शन की नौबत ही न आने पाए।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर किसी मस्जिद में अवैध निर्माण हो रहा था, तो क्या इसे रोकने की जिम्मेदारी भीड़ की है? आखिर किसी धार्मिक समूह को ऐसी जरूरत क्यों महसूस होती है? जब बहुसंख्यक वर्ग के समूहों ने विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था, तभी प्रशासन को सचेत हो जाना चाहिए था। प्रशासन की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ने से रोकने के लिए हरसंभव उपाय करे। प्रशासन कतई यह एहसास न होने दे कि उसकी सहानुभूति किसी वर्ग विशेष के साथ है। अगर प्रशासन पक्षपात करता न दिखे तो ऐसे प्रदर्शन का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। कहीं न कहीं प्रशासन की उदासीनता ने प्रदर्शनकारियों को मौका दिया है। अगर अवैध निर्माण है तो उसके खिलाफ स्थानीय प्रशासन को स्वयं कार्यवाई करनी चाहिए और अगर निर्माण अवैध नहीं है तो विरोधी पक्ष को आश्वस्त करना प्रशासन का ही काम है।
कहीं यह मसला सियासी रूप न ले ले
शिमला जैसे पर्यटन के बड़े केंद्र में किसी भी प्रकार का सांप्रदायिक प्रदर्शन बहुत अफसोस की बात है। सभी शिमलावासियों को सोचना चाहिए कि ऐसे प्रदर्शन से इस शहर के प्रति आकर्षण में कमी आएगी। शिमला में भी अगर सांप्रदायिकता की जमीन तैयार होती है तो यह खतरे की घंटी है। अपने देश में ज्यादातर पर्यटन केंद्र आबादी का बोझ झेलने के साथ ही अपने मूल प्रारूप को भी बदलते चले जा रहे हैं। नए-नए धर्मस्थलों के विकास-विस्तार की तेज होती परिपाटी चिंता बढ़ाती है।
सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि यह मसला कहीं सियासी रूप न ले ले। देश में मणिपुर हो या पश्चिम बंगाल जहां भी सियासत हुई है वहां समस्याओं के अंबार लगते चले गए हैं। यह अफसोस की बात है कि शिमला में सियासत ने काम करना शुरू कर दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। एक-दूसरे को दोषी ठहराने के बजाय कोशिश यह होनी चाहिए कि विवाद को शांतिपूर्वक सुलझा लिया जाए।