2025 की शुरुआत में जनगणना की सुगबुगाहट, जातीय जनगणना पर साफ नहीं तस्वीर

देश की जनसंख्या कितनी है इसे हर कोई जानना चाहता है। कई सालों से जनगणना का काम भी रुका हुआ है। इस बीच काफी विलंब से चल रही दशकीय जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने का काम जल्द ही शुरू हो सकता है। 

देश में पहली बार जनगणना 1872 में हुई। तब से हर 10 साल में जनगणना होती है। हालांकि, 2021 में कोरोना महामारी की वजह से यह सिलसिला टूट गया और अब 2025 की शुरुआत में जनगणना कराए जाने की तैयारी है।

जातीय जनगणना पर अभी कोई फैसला नहीं

अभी तक इस बात पर कोई फैसला नहीं हुआ है कि आम जनगणना के साथ-साथ जाति जनगणना भी की जाएगी या नहीं। विपक्षी दल लगातार जातीय जनगणना कराए जाने की मांग कर रहे हैं और आबादी के हिसाब से पॉलिसी प्लानिंग पर जोर दे रहे हैं। इतिहास देखा जाए तो जातियों पर जनगणना का गजब आंकड़ा देखने को मिलेगा। देश में 1931 में जातीय जनगणना हुई तो कुल जातियों की संख्या 4,147 थी और फिर जब 2011 में जनगणना हुई तो देश में 46 लाख जातियों की संख्या निकली। हालांकि, 2011 की जनगणना के आंकड़े उजागर नहीं किए गए हैं। तीन साल पहले ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक केस के सिलसिले में इन आंकड़ों का जिक्र किया था।

1872 से 1931 तक जितनी बार जनगणना हुई, उसमें जातिवार आंकड़े भी दर्ज किए गए। 1901 में जातीय जनगणना हुई तो 1,646 अलग-अलग जातियों की पहचान की गई। 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट का आधार भी यही संख्या थी। 1941 में भी जाति जनगणना हुई लेकिन आंकड़े पब्लिश नहीं हुए।

जातीय जनगणना पर दबाव बना रही हैं पार्टियां

राजनीतिक दल एक बार फिर नए सिरे से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। तर्क दिया जा रहा है कि जातिगत जनगणना से ही पता चलेगा कि कौन सी जाति को कितना हिस्सा आरक्षण मिलना चाहिए। राजनीतिक दलों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है। जानकार कहते हैं कि राजनीतिक रूप से जातिगत जनगणना ज्यादा फायदेमंद के तौर पर देखी जा रही है।

विशेष बदलाव लेकर आई स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना

आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो ब्रिटिश शासन वाली जनगणना के तरीके में बदलाव कर दिया गया और जातिगत आंकड़ों को सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तक सीमित कर दिया गया। यानी OBC और दूसरी जातियों का डेटा नहीं दिया जा रहा है। जनगणना का ये ही स्वरूप कमोबेश अभी तक चला आ रहा है।

2011 जनगणना के विचित्र आंकड़े

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि 1931 में जब आखिरी बार जनगणना हुई थी, तब जातियों की कुल संख्या 4,147 थी। लेकिन 2011 में जातियों की संख्या बढ़कर 46 लाख से भी ज्यादा होना पता चला है। हालांकि, यह आंकड़ा सही नहीं हो सकता है। संभव है कि इनमें कुछ जातियां, उपजातियां रही हों।

जानिए क्यों नहीं जातीय जनगणना के आंकड़ेहुए सार्वजनिक

साल 2021 में केंद्र सरकार ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था और बताया था कि साल 2011 में जो सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना हुई, उसमें कई कमियां थीं। जो आंकड़े एकत्रित किए गए उसमें काफी गलतियां और अशुद्धियां हैं। ऐसे में उन पर भरोसा या उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

सरकार का कहना था कि जनगणना करने वाले कर्मचारियों की गलती और गणना करने के तरीके में गड़बड़ी के कारण आंकड़े विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं। केंद्र ने उदाहरण दिया और बताया था कि महाराष्ट्र में आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी में आने वाली जातियों की संख्या 494 थी। जबकि 2011 की जातिगत जनगणना में वहां कुल जातियों की संख्या 4,28,677 पाई गई। केंद्र सरकार का कहना था कि SC, ST के अलावा OBC की जाति आधारित जनगणना कराना प्रशासनिक रूप से काफी जटिल काम है और इससे पूरी या सही सूचना हासिल नहीं की जा सकती है।

बताते चलें कि 2011 में लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई थी। इसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक व जातिगत जनगणना करवाने का फैसला लिया था। 2016 में मोदी सरकार ने जातियों को छोड़कर बाकी सारा डेटा सार्वजनिक कर दिया था।

भविष्य के चक्रों में बदलाव की संभावना

संभावना है कि जनगणना और एनपीआर का काम अगले साल ही शुरुआत में शुरू हो जाएगा और जनसंख्या के आंकड़े 2026 तक घोषित किए जाएंगे। इसके बाद ही जनगणना चक्र में बदलाव होने की संभावना है। इसलिए यह 2025-2035 और फिर 2035-2045 और भविष्य में इसी तरह होगा।

जनगणना में पूछे जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण सवाल

जनगणना के तहत प्रत्येक परिवार से पूछे जाने वाले 31 प्रश्नों में कुछ मुख्य प्रश्न…

  • परिवार में सामान्य रूप से रहने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या क्या है।
  • क्या परिवार की मुखिया महिला है।
  • परिवार के पास विशेष रुप से कितने कमरे हैं।
  • परिवार में रहने वाले विवाहित जोड़ों की संख्या कितनी है।
  • क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल या स्मार्टफोन, साइकिल, स्कूटर या मोटरसाइकिल या मोपेड है और क्या उनके पास कार जीप या बैन है।
  • वे घर में क्या अनाज खाते हैं, पीने के पानी का मुख्य श्रोत, शौचालय तक पहुंच, शौचालय का प्रकार, अपशिष्ट जल आउटलेट और स्नान की सुविधा की उपलब्धता के बारे में भी पूछा जाएगा।
  • रसोई और एलपीजी/पीएनजी कनेक्शन की उपलब्धता, खाना पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले मुख्य ईंधन, रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीविजन आदि की उपलब्धता के बारे में भी सवाल होंगे।

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