पुलवामा हमले की वजह से फरवरी में टली थी अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा!

सोमवार को राज्य सभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की बात कही तो कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद समेत पूरा विपक्ष तिलमिला उठा और इस फैसले को लोकतंत्र का गला घोटने वाला करार दिया लेकिन खास बात यह है कि जो प्रस्ताव केंद्र सरकार ने सोमवार को रखा इसे मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रखने की पूरी तैयारी कर ली गई थी। जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को वापस लेने का निर्णय फरवरी के शुरू में ही ले लिया गया था। महज इसकी घोषणा की जानी बाकी थी। हालांकि, सरकार की इस घोषणा के पहले ही पुलवामा में सीआरपीएफ के काफीले पर जैश-ए-मोहम्मद ने हमला कर दिया, जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद कश्मीर के हालात खराब हो गए थे और भारत-पाकिस्तान के बीच इतना तनाव बढ़ गया था कि सरकार को यह फैसला टालना पड़ा।
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सरकार को था सही समय का इंतजार
पुलवामा हमले के बाद सरकार को दोबारा इस घोषणा के लिए सही समय का इंतजार था। द प्रिंट वेबसाइट ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इस साल फरवरी को तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जोटली, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ इस विषय को लेकर बैठक हुई थी। लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा के लिए यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण साबित होने वाला था। यही वजह है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का प्रस्ताव चुनाव के दौरान लाया जाने वाला था। इस फैसले के लिए गृह मंत्रालय को घाटी में तैनात सुरक्षा बलों का जायजा लेने से लेकर कानूनी विशेषज्ञों की सलाह लेने जैसे बड़े कदम उठाने के लिए कहा गया था।
पुलवामा हमले के बाद बदली प्राथमिकता
वेबसाइट के मुताबिक अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा चुनाव से पहले की जाने वाली सबसे बड़ी घोषणा थी। हालांकि, पुलवामा हमले के बाद सरकार की प्राथमिकताएं और रणनीति दोनों बदल गईं। पुलवामा में हुई घटना के तुरंत बाद बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक ने इस फैसले की भरपाई कर दी। ऐसे में इस घोषणा करने का विचार छोड़ दिया गया। खास बात यह है कि गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति के पास जो मसौदा सोमवार को भेजा गया था, उसे फरवरी में ही तैयार कर लिया गया था। साथ ही इस मुद्दे पर सरकार का क्या बयान होगा, इसका भी जवाब तैयार कर लियाा गया था।
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लोकसभा चुनाव का मेनिफेस्टो बनने से पहले पूरा हो गया था काम
जम्मू-कश्मीर से सरकार अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर किस हद तक दृण थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो महीने पहले हुए चुनाव के दौरान भाजपा की ओर से बने बनाए गए मेनिफेस्टो से पहले ही इसकी सारी तैयारियां कर ली गई थीं। वेबसाइट के मुताबिक लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र के सामने आने से पहले ही इसके लिए तैयारी की जा चुकी थी। सरकार तो बस सही समय का इंतजार कर रही थी और संसद शुरू होने से बेहतर भला और क्या समय हो सकता है।
शुरुआत मे सिर्फ 35ए हटाने का था विचार
एक अन्य सूत्र ने वेबसाइट को बताया कि पहले सिर्फ अनुच्छेद 35ए को हटाने पर विचार किया जा रहा था लेकिन बाद में इसके बड़े परिणाम देखते हुए अनुच्छेद 370 को हटाने का निर्णय लिया गया। लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद से ही इसे हटाने को लेकर प्रयास शुरू हो गए थे और प्रतिबद्धता दिखाते हुए इस पर तेजी से काम किया क्योंकि भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी यही सपना था कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए जून के अंत में गृह मंत्री शाह की जम्मू-कश्मीर यात्रा पर गए थे। इसके बाद वे जुलाई के अंतिम सप्ताह में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी कश्मीर गए थे। डोभाल ने अपनी दो दिवसीय यात्रा से लौटने के बाद, हजारों अर्धसैनिक बलों को राज्य में स्थानांतरित कर दिया गया था। केंद्र सरकार द्वारा पत्रकारों के समूहों को भी राज्य में ले जाया गया।
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जानबूझकर राज्यसभा में रखा गया यह प्रस्ताव
मोदी सरकार जानती है कि वह लोकसभा इस प्रस्ताव को संख्याबल के आधार पर आसानी से पारित करा लेगी लेकिन राज्यसभा में इसे पारित होने में दिक्कत आ सकती है। यही वजह है कि अनुच्छेद 370 को सबसे पहले प्रस्तावित करने से पहले सरकार ने ट्रिपल तलाक से लेकर आरटीआई संशोधन बिल और यूपीए अमेंडमेंट बिल को टेस्ट केस के रूप में पारित कराकर देख लिए थे। यह वो बिल थे, जिन्हें सरकार पिछली बार नहीं पारित करा पाई थी। हालांकि, इस बार विपक्ष के बड़े विरोध के बावजूद सरकार इन्हें पारित कराने में सफल रही।
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