पूर्व सीजेआई को राज्यसभा भेजे जाने पर उठ रहे सवाल, पहले ये जज बने हैं सदस्य
राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने सोमवार को पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य नामित किया है। राज्यसभा का सदस्य नामित होने के बाद अब पूर्व में उनकी तरफ से दिए गए फैसलों पर भी सवाल उठ रहे हैं। यही नहीं, राज्यसभा सदस्य नामित होने के बाद अब विपक्ष से लेकर जनता भी सवाल उठा रही है कि आखिर क्या देश का पिलर भी ढह गया?
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पूर्व जज ने की सख्त टिप्पणी
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को राज्यसभा भेजे जाने पर पूर्व सहकर्मी और रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने सख्त टिप्पणी की। रिटायड जज लोकुर ने कहा, 'जो सम्मान जस्टिस रंजन गोगोई को अब मिला है उसके कयास पहले से ही लगाये जा रहे थे। ऐसे में उनको नामित किया जाना चौंकाने वाला नहीं है, लेकिन यह जरूर अचरज भरा है कि आखिर सरकार ने बहुत जल्द ही यह सब कुछ कैसे हो गया। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को फिर से परिभाषित करता है।' वैसे पूर्व जज जस्ती चेलामेश्वर ने टिप्पणी करने से इनकार किया। वैसे, उनके राज्यसभा भेजे जाने पर यह सवाल किया जा रहा है कि देश का आखिरी पिलर भी ढह गया है।
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इन बेंचों की अगुवाई कर चुके हैं गोगोई
राष्ट्रपति की तरफ से जारी की गई अधिसूचना में कहा गया, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 80 के खंड (1) के उपखंड (ए), जिसे उस अनुच्छेद के खंड (3) के साथ पढ़ा जाए, के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति को रंजन गोगोई को राज्यसभा में एक सदस्य का कार्यकाल समाप्त होने से खाली हुई सीट पर मनोनीत करते हुए प्रसन्नता हो रही है।’ बता दें पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई को केटीएस तुलसी के राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने से खाली हुई है। राज्यसभा के सदस्य बने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई उस पांच न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व किया था, जिसने 9 नवंबर को अयोध्या मामले का फैसला सुनाया था। यही नहीं, उन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश मामले से लेकर राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर भी फैसला सुनाया है।
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असम के रहने वाले हैं रंजन गोगोई
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई असम के रहने वाले हैं। उनका जन्म 18 नवंबर 1954 को हुआ। साल 1978 में बतौर एडवोकेट अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने अपनी शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट में वकालत से की थी। पूर्व सीजेआई उनको संवैधानिक, टैक्सेशन और कंपनी मामलों का दिग्गज वकील माना जाता था। उन्हें पहली बार 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाया गया था। इसके बाद 9 सितंबर 2010 को उनका तबादला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया था। उन्हें 12 फरवरी 2011 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बना दिया गया। इसके बाद 23 अप्रैल 2012 को उनको प्रोमोट करके सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। सीजेआई दीपक मिश्रा के रिटायर होने के बाद रंजन गोगोई भारत के चीफ जस्टिस बनें।
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कांग्रेसी नेताओं को क्लीन चिट देने का मिला तोहफा
पूर्व सीजेआई रहे रंगनाथ मिश्रा को भी कांग्रेस की सरकार ने राज्यसभा भेजा गया था। पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को सिख विरोधी दंगों की जांच का काम सौंपा गया था, जिसमें उन्होंने दंगों के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया था। ऐसा कहा जा रहा है, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे हुए थे। देश भर में 3000 से ज्यादा सिखों की हत्या हुई थी। दंगों के लिए जांच कमेटी बनाई गई थी। इसमें रंगनाथ मिश्रा सदस्य थे। उन्होंने रिपोर्ट सौंपी इसके बाद फिर उन्हें तोहफा दिया गया। मिश्रा पर लगा था कि इंडियन आर्मी के चीफ कमांडिंग ऑफिसर और सिटिजन जस्टिस कमिटी के सदस्य रहे जगजीत सिंह अरोड़ा ने कहा था कि कमीशन पीड़ितों से ठीक बर्ताव नहीं करता था। बता दें, रंगनाथ मिश्रा पर दंगा उकसाने के आरोपी कांग्रेसी नेताओं को भी क्लीन चिट देने के आरोप लगाया गया है। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य 1998 में नामित किया। देश के 21वें चीफ जस्टिस मिश्रा 1998 से 2004 तक राज्यसभा सांसद रहे। बता दें, जस्टिस मिश्रा 1983 में सुप्रीम कोर्ट जज बने। फिर 1990 में चीफ जस्टिस बने। 1991 में पद से रिटायरमेंट होने के 7 साल बाद उन्होंने कांग्रेस जॉइन कर ली थी।
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विपक्ष के नेताओं ने कहीं ये बात
पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए मनोनीत किए जाने पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, रंजन गोगोई के लिए इनाम बताया है। 'क्या यह इनाम है?' लोग न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर यकीन कैसे करेंगे? इसके अलावा अन्य कई सवाल भी उठेंगे। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक तस्वीर साझा करके लिखा, 'यह तस्वीरें सब बयां करती हैं।' संजय झा ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, 'रंजन गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किया गया। नो कमेंट्स।' पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने लिखा, 'मुझे आशा है कि रंजन गोगोई की समझ अच्छी है इसलिए वो इस ऑफर को ना कह देंगे। नहीं तो न्याय व्यवस्था को गहरा धक्का लगेगा।'
सुप्रीम कोर्ट के वकील और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने लिखा,
'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। (सुभाष चंद्र बोस)
तुम मेरे हक में वैचारिक फैसला दो मैं तुम्हें राज्यसभा सीट दूंगा.'
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा | (सुभाष चंद्र बोस )
तुम मेरे हक में वैचारिक फैसला दो मैं तुम्हें #राज्यसभा सीट दूंगा | ( #भाजपा )
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