पंचायती राज मंत्रालय ग्रामीण निकायों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने और अपने बलबूते विकास में तेजी लाने के उद्देश्य से उन्हें भले ही अपने स्त्रोत से प्राप्त राजस्व बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है लेकिन हकीकत यह है कि इस मिशन में आशातीत कामयाबी नहीं मिल पाई है। हालत ये है कि 2017 से 2022 के बीच ग्रामीण पंचायतों का औसत ओएसआर प्रति व्यक्ति महज 59 रुपए रहा है। ऐसे में पंचायतें अपने बूते कैसे विकास करेंगी और कैसे आर्थिक रूप से स्वायत्त होंगी यह बड़ा सवाल है। वर्तमान में देश में कुल 2.25 लाख पंचायतें हैं और प्रति पंचायत यह ओएसआर केवल 2.27 लाख रहा है। राज्यवार बात करें तो इस मामले में गुजरात अव्वल रहा जबकि दूसरे व तीसरे पायदान पर लगातार केरल और आंध्र प्रदेश रहे।
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जुटाये गए आंकड़ों में यह सच सामने आया है। इस पांच वर्षों की अवधि के दौरान पंचायतों ने ओएसआर के रूप में केवल 5118.98 करोड़ ही जुटाए। पंचायतें सतत विकास और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जमीनी स्तर के निकायों के रूप में कार्य करती है। इन्हें केंद्र व राज्य सरकारों से अनुदान मिलता है। इसके अलावा विश्व बैंक आदि से भी ग्रांट मिलती है। ग्रामीण निकायों को 15वें वित्त आयोग का कुल राशि आवंटन लगभग 2.36 लाख करोड़ है। इसमें से लगभग 60 प्रतिशत बंधे हुए अनुदान हैं जिसमें पेयजल आपूर्ति, वर्षा जल संचयन, स्वछता और रखरखाव सेवाएं शामिल हैं जबकि लगभग 40 प्रतिशत अनुदान बुनियादी सेवाओं में सुधार के लिए हैं।
उप्र, बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में ओएसआर नियम नहीं
पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव, लद्दाख और लक्ष्य द्वीप उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल है जहां ओएसआर नियम ही नहीं है। गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मिजोरम, ओड़ीशा, राजस्थान, तमिलनाडू, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड, बंगाल और पुडुचेरी में ओएसआर सिस्टम लागू है।