लाॅकडाउन का अच्छा असर, ठीक है हो रही है ओजोन परत
ये बात तो हम सभी जानते हैं जलवायु में होने वाले बदलावों का असर पृथ्वी की ओजोन लेयर पर काफी ज्यादा पड़ता है। पिछले कुछ दशकों में इस घटती ओजोन परत ने समुद्र और हवा को उनके प्राकृतिक रूप से काफी अलग कर दिया था, लेकिन आजकल जिस तरह से पूरी दुनिया के लोग अपने घरों के अंदर हैं और प्रदूषण काफी कम हो रहा है उससे इसे पहुंचने वाला नुकसान रुक गया है। हो सकता है कि आने वाले कुछ साल में ये दोबारा पहले जैसी हो जाए।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अंटार्कटिका पर ओजोन परत इस बिंदु पर पहुंच गई है कि पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में कई वायुमंडलीय परिवर्तन रुक गए हैं। निश्चित तौर पर यह एक अच्छी खबर है। इस सदी की शुरुआत से पहले दुनिया के कई हिस्सों में मौसम में कई बदलाव देखे गए। अब एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि परिस्थिति एकदम बदल सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि ओजोन परत में जो छेद था अब वो भर रहा है। इसका श्रेय 1987 के मॉन्ट्रिय प्रोटोकॉल को जाता है। इस संधि में दुनिया भर के कई देशों को ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों (ओडीएस) का इस्तेमाल बंद करने का निर्देश दिया गया था।
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आ सकता है सकारात्मक बदलाव
अध्ययन के मुताबिक, दक्षिणी ध्रुव में अंटार्कटिका के ऊपर तेज हवाओं का एक भंवर बन जाता है। अब उसका खिसकना बंद हो रहा है और वह उल्टी दिशा में जाने लगा है। नेचर पत्रिका में छपे इस शोध के मुताबिक, ओडीएस पदार्थों के कम इस्तेमाल से अंटार्कटिका के ऊपर का भंवर जिसे जेट स्ट्रीम कहते हैं, सही जगह वापस आने लगा है। अब वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में इसमें और सकारात्मक बदलाव आएंगे।
उम्मीद की किरण
मेलबर्न यूनिवर्सिटी के ऑर्गेनिक केमिस्ट लैन रे इस बात से बहुत उत्साहित हैं। उनका कहना है कि ऐसा होने से ऑस्ट्रेलिया के पास कोरल रीफ में जो बारिश होना कम हो गई थी उसमें भी इससे सुधार आ सकता है। हालांकि, वैज्ञानिक अभी इस मामले में ज्यादा जल्दबाजी नहीं दिखाना चाहते। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें लगता है कि जब लॉकडाउन खत्म हो जाएगा और फिर से पहले जैसा प्रदूषण होने लगेगा तब एक बार फिर कार्बन-डाइ-ऑक्साइड और बाकी ओडीएस पदार्थों का उत्सर्जन शुरू हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो स्थिति दोबारा पहले जैसी हो सकती है। फिलहाल वैज्ञानिक इसे सिर्फ पॉज यानी विराम कह रहे हैं।
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वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि लॉकडाउन की वजह से पर्यावरण को कितना फायदा हो रहा है इसका सही आंकलन अभी नहीं हुआ है। इस वक्त सभी का ध्यान सिर्फ कोरोना वायरस के खतरे से निपटने की ओर है। हां, दुनियाभर में जो कुदरती बदलाव हो रहे हैं उन पर वैज्ञानिकों की नजरें हैं।
ओजोन परत के छेद से क्यों है खतरा
पहले तो ये जान लें कि ओजोन परत है क्या? दरअसल, ये पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमें ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। ओजोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है क्योंकि ये हमें सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाती है। ओजोन लेयर में छेद हो गया है इस बात का पता सबसे पहले दुनिया को 1980 में चला था। सूरज की परबैंगनी किरणें अगर सीधे हम पर पड़ें तो स्किन कैंसर, मोतियाबिंद हो सकता है। यहां तक कि हमारा इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो सकता है। ओजोन लेयर इन किरणों को अवशेषित कर लेती है इसीलिए इसे पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहा जाता है। अगर इसे नुकसान पहुंचता रहा तो हमारा अल्ट्रा वॉयलेट किरणों की वजह से होने वाली बीमारियों से बचना मुश्किल हो जाएगा।
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