जानिए क्यों अभिनंदन का ख्याल रख रहा है पाक, पढ़ें जिनेवा संधि के नियम

भारतीय सीमा में घुसे पाकिस्तानी सेना के फाइटर प्लेन्स को खदेड़ने के दौरान उनकी सीमा में पहुंच जाने वाले वायुसेना के वीर विंग कमांडर अभिनंदन इस समय पाकिस्तान के कब्जे में हैं। उनको लेकर पाकिस्तान ने तमाम वीडियो भी पेश किए। अपने पहले वीडियो में पाकिस्तानी आर्मी के लोग उनसे सवाल पूछते नजर आए थे, जिनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। इसके बाद पाकिस्तान ने 02 और वीडियो जारी किए थे। इन वीडियो के बाद भारतीय सरकार ने भी स्वीकार किया था कि उनका 01 जवान गायब है। अब देश की जनता में भी तमाम तरह के सवाल हैं कि क्या अभिनंदन सकुशल वापस अपने देश आ पाएंगे। इन सवालों का जवाब जिनेवा संधि में छिपा हुआ है। युद्धबंदियों की सुरक्षा को लेकर बनाए गए नियम इसमें शामिल किए गए हैं। हर देश को इसे मानना पड़ता है, ऐसा न करने पर उसे वैश्विक रूप से कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
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क्यों अभिनंदन का ख्याल रख रहा पाकिस्तान
आपने अभिनंदन के वीडियो में देखा होगा कि पाकिस्तानी सेना उनके साथ बेहतर सलूक कर रही है। उन्हें पीने के लिए चाय भी दी गई है। गौर करने की बात है कि उनसे सवाल पूछने के दौरान दबाव नहीं बनाया जा रहा है। अभिनंदन के जवाब न देने पर भी उनपर दबाव नहीं डाला जा रहा है। इसके साथ ही उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जा रहा है। यह सब जिनेवा संधि के नियम-कानून की वजह से हो रहा है। इस संधि का पालन करना हर देश के लिए जरूरी है। अगर पाकिस्तान ऐसा नहीं करेगा तो उसे वैश्विक स्तर पर कई तरह की परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
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जिनेवा संधि करती है युद्धबंदियों के हितों का संरक्षण
जिनेवा संधि का दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1949 में तैयार की गई संधियों और नियमों का जिक्र करती है। इसका काम युद्ध के समय दूसरे देशों के जवानों के मानवीय मूल्यों का संरक्षण करना है। कहने का मतलब यह है कि अगर युद्ध के दौरान कोई देश दूसरे देश के जवानों को अपनी सीमा में गिरफ्तार कर लेता है तो उसके साथ अमानवीय व्यवहार नहीं किया जा सकता। ऐसे जवान की जिम्मेदारी संबंधित देश की होती है। उस देश को ऐसे जवान को कई तरह की स्वास्थ्य व आवश्यक सेवाएं प्रदान करना जरूरी होता है। ऐसे जवानों का किसी प्रकार का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न नहीं किया जा सकता है।
यह हैं जिनेवा संधि के नियम
जिनेवा संधि के अंतर्गत संबंधित देश को युद्धबंदी के पूरी देखभाल करनी पड़ती है। संधि के तहत युद्धबंदी को खाद्य सामग्री, चिकित्सा व अन्य जरूरी सेवाएं प्रदान करना जरूरी है। कोई भी देश ऐेसे सैनिकों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता। उन्हें अपनी मिलिट्री के नियमों के हिसाब से ही ऐसे युद्धबंदियों के साथ व्यवहार करना होता है। कोई भी देश ऐसे युद्धबंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं कर सकता। साथ ही उन्हें डराना या धमकाना भी पूरी तरह से इस संधि का उल्लंघन माना जाता है।
युद्धबंदियों के धर्म, जाति और रणनीति के बारे में पूछना या इसके लिए दबाव बनाना भी पूरी तरह से अनुचित है। जिनेवा संधि के अंतर्गत ऐसे जवान पर मुकदमा चलाया जा सकता है, लेकिन उन्हें वापस भेजने की भी अनिवार्यता है। ऐसे जवानों से केवल उनका नाम, सर्विस नंबर, पद और यूनिट के बारे में ही जानकारी ली जा सकती है। अगर युद्धबंदी अन्य सवालों का जवाब देने से इनकार करता है तो उसके लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता।
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इससे पहले नचिकेता को छोड़ा था
जिनेवा संधि का पालन करते हुए पाकिस्तान पहले भारतीय वायुसेना के फ्लाइट लेफ्टिनेंट कमबमपति नचिकेता को भारत को सौंप चुका है। वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान 27 मई को नचिकेता मिग-27 उड़ा रहे थे। वह भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन सफेद सागर का हिस्सा थे। इस दौरान पाकिस्तानी सेना के हमले के दौरान उनका जहाज क्रैश हो गया था, लेकिन वह पैराशूट के जरिए जहाज से बाहर कूद गए थे। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर दिया था।
पाकिस्तान ने उन्हें काफी प्रताड़ित किया था। लेकिन उन्होंने भारतीय सेना को कोई राज नहीं खोला। बाद में पाकिस्तान पर जिनेवा संधि के तहत उन्हें छोड़ने का दबाव बनाया गया था। आखिरकार पाकिस्तान ने वैश्विक दबाव के चलते फ्लाइट लेफ्टिनेंट के नचिकेता को रेडक्रॉस सोसाइटी के हवाले कर दिया था। एक सप्ताह के बाद वह 03 जून को वापस भारत आ गए थे।
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