जानिए कैसे होता है सेना में 'स्पेशल फोर्सेज' का गठन, ये है पूरी प्रक्रिया
भारतीय सेना कई बार अपनी शक्ति का प्रदर्शन सर्जिकल स्ट्राइक के तहत कर चुकी है। 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना के स्पेशल फोर्स के जवानों ने पीओके में आतंकियों को मार गिराया था। स्पेशल फोर्स ही इस तरह के युद्धों में शामिल होती है और इसका गठन एक प्रक्रिया के तहत होता है।
स्पेशल फोर्स के जवानों को कठिन सैन्य अभ्यास से गुजरना पड़ता है। प्रशिक्षण के दौरान इन जवानों का न केवल तकनीक और युद्ध कौशल देखा जाता है बल्कि विपरीत परिस्थितियों में ये खुद को कैसे जीवित और सुरक्षित रख सकते हैं, इसके बारे में भी बताया जाता है। भारतीय थलसेना की एलीट कमांडो फोर्स पैरा रेजीमेंट की स्थापना साल 1941 में ही हो गई थी। लेकिन 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद एक स्पेशल कमांडो यूनिट की जरूरत लगी और उसके बाद एक जुलाई 1966 को भारतीय सेना की पहली स्पेशल फोर्स 9 पैरा यूनिट की स्थापना हुई। इसका बेस ग्वालियर में बनाया गया। इसके एक साल बाद पैरा कमांडो की दूसरी यूनिट को बनाई गई, जिसे राजस्थान में तैनात किया गया।
इन देशों में बलात्कारियों को दी जाती है मौत से भी बदतर सजा, भारत पीछे क्यों?
कैसे होता है इसके लिए चयन
सेना में कमांडो बनने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। चयन सेना अलग-अलग रेजिमेंट्स में से ही होता है। इनका अनुपात 10 हजार में से एक का होता है मतलब स्पेशल फोर्स में शामिल होने के लिए 10 हजार में से एक जवान को चुना जाता है। पैरा स्पेशल फोर्स बनने के लिए आवेदन जवान के ऊपर निर्भर करता है।
नागरिकता संशोधन बिल 2019 कैबिनेट से पास, अब संसद में होगा पेश
कैसी होती है ट्रेनिंग
सभी कमांडो यूनिट अपने-अपने जवानों के ट्रेनिंग के लिए लगभग एक ही तरीका अपनाते हैं। जैसे पैरा कमांडो बनने के लिए 90 दिनों की कठिन ट्रेनिंग दी जाती है। इसकी कठिनाई का अंजादा आप ऐसे ही लगा सकते हैं कि बहुत कम ही सैनिक इसे सफलतापूर्वक पूरा कर पाते हैं। इस ट्रेनिंग के दौरान जवानों के मानसिक, शारीरिक क्षमता और इच्छाशक्ति की भी परीक्षा होती है। इसके दौरान दिनभर में जवानों को पीठ पर 30 किलो सामान जिसमें हथियार व अन्य जरूरी साजो-सामान शामिल होते हैं उसे उठाकर 30 से 40 किमी की दौड़ लगाना होता है।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...