अलविदा मिल्खा सिंह: पाकिस्तान से मिला था 'फ्लाइंग सिख' का खिताब
'फ्लाइंग सिख' के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर हुए मिल्खा सिंह को यह खिताब उनके जन्मस्थली वाले देश से ही मिला था। पाकिस्तान में जन्में मिल्खा सिंह को उड़न सिख का खिताब यही से मिला था। उनकी कामयाबी और दौड़ को देखकर तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान उनके दीवाने हो गए थे। उस समय उन्होंने मिल्खा सिंह के गले में मेडल डालते हुए पंजाबी में कहा, ‘मिल्खा सिंह जी, तुस्सी पाकिस्तान दे विच आके दौड़े नई, तुस्सी पाकिस्तान दे विच उड़े ओ, आज पाकिस्तान तुहानूं फ्लाइंग सिख दा खिताब देंदा ए।’ उसके बाद से वे उड़न सिख के नाम से मशहूर हो गए।
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दरअसल, उनकी रेस लाहौर में पाकिस्तान के मशहूर धावक अब्दुल खालिक के साथ में थे, जिसमें उन्होंने उन्हें हराकर पाकिस्तानी के राष्ट्रपति को भी सोचने पर मजबूर कर दिया था।
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लाहौर नहीं जाना चाहते थे मिल्खा सिंह
पाकिस्तान की जिस रेस से उन्हें उड़न सिख (फ्लाइंग सिख) की पदवी मिली थी, उसी रेस में मिल्खा सिंह नहीं जाना चाहते थे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने उन्हें इस पदवी से नवाजा था। साल 1960 में मिल्खा को पाकिस्तान की ओर से उन्हें लाहौर में दौड़ने का आमंत्रण दिया था, लेकिन भारत-पाक बंटवारे का दर्द झेलने वाले मिल्खा सिंह ने निमंत्रण ठुकरा दिया था। उनकी आंखों के सामने बंटवारे के दौरान हुए दंगों में मारे गए लोगों की लाशों के दृश्य घूम रहे थे। उन्होंने खुद इन दंगों में माता-पिता के साथ में भाई-बहन को भी खो दिया था।
पाकिस्तान के निमंत्रण को ठुकराने की खबर अगले ही दिन अखबारों की सुर्खियां बन गई। इस खबर के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मिल्खा सिंह को बुलाया और समझाया कि पुरानी बातें भूलकर आप लाहौर जाइए। पंडित नेहरू के कहने पर मिल्खा सिंह बाघा बार्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंचे। यहां पर उन्हें खुली जीप में लाहौर ले जाया गया। उस दौरान बताया जाता है कि रास्ते भर सड़क के दोनों तरफ उनको देखने के लिए भारी भीड़ थी और उनके हाथों में भारत और पाकिस्तान के झंडे लहरा रहे थे। पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था।
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जब मौलवी से कहा हम भी खुदा के हैं बंदे
जिस मुकाबले के लिए वह गए थे वहां पर उनका मुकाबला एशिया का तूफान नाम से मशहूर पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक से था। बताया जाता है कि जब यह रेस शुरू होने वाली थी, उससे पहले कुछ मौलवी आए और खालिक से कहा कि खुदा आपको ताकत दे। मौलवी जब वहां से जाने वाले तो मिल्खा सिंह ने कहा, रुकिए! हम भी खुदा के बंदे हैं। तब मौलवी ने उन्हें भी दुआ देते हुए कहा कि खुदा आपको भी ताकत दे। इस रेस में ऐसा लग रहा था कि मिल्खा सिंह हार जाएंगे, रेस शुरू हुई तो सभी की धड़कनें बढ़ गईं। लेकिन इस रेस में जो हुआ वह अपने आप में एक इतिहास बन गया। मिल्खा सिंह ऐसे दौड़े जैसे लग रहा था कि वे उड़ रहे हों। उन्होंने एशिया का तूफान को मात देते हुए रेस जीत ली। इस रेस को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान भी देख रहे थे। वे मिल्खा सिंह के दीवाने हो गए।
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