गणतंत्र दिवस में मिस्र के राष्ट्रपति होंगे मुख्य अतिथि, क्या होती है चुनने की प्रक्रिया

मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी इस बार गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे हैं। पिछले 2 साल से कोविड महामारी के कारण हमारे देश में किसी को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के तौर पर नहीं बुलाया गया था।
कौन हैं अल सिसी
2023 गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि, अब्देह फतह अल-सीसी मिस्र के राष्ट्रपति बनने से पहले वहां की सेना में बड़े अधिकारी रह चुके हैं। 2014 में वह मिस्र सेना से जनरल पद से सेवानिवृत्त हुए। 2010 से 2012 तक उन्होंने मिलिट्री इंटेलीजेंस के निदेशक के रूप में काम किया। उनका जन्म 19 नवंबर 1954 को हुआ था। 2014 में राष्ट्रपति बनने के बाद 2018 में वह दोबारा सत्ता पर काबिज हुए। इससे पहले 2013 व 2014 में वह मिस्र के डिप्टी प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे और 2012-13 में रक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
कैसे चुनते हैं मुख्य अतिथि
भारतीय प्रोटोकॉल और गणतंत्र दिवस के महत्व को देखते हुए यह यह किसी विदेशी मेहमान के लिए सर्वोच्च सम्मान है। इस दिन चीफ गेस्ट सेरेमनी से जुड़ी गतिविधियों के दौरान मौजूद रहते हैं। उन्हें राष्ट्रपति भवन में औपचारिक गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है और शाम को भारत के राष्ट्रपति उनके लिए स्वागत समारोह आयोजित करते हैं। वह महात्मा गांधी के सम्मान में राजघाट पर श्रद्धांजलि देते हैं और माल्यार्पण भी करते हैं। उनके सम्मान में प्रधानमंत्री दोपहर के भोज का विशेष आयोजन करते हैं जहां उप-राष्ट्रपति और विदेश मंत्री उनसे मुलाकात करते हैं।
1999 और 2002 के बीच प्रोटोकॉल के प्रमुख के रूप में कार्य करने वाले पूर्व भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी, राजदूत मनबीर सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि मुख्य अतिथि की यह यात्रा मुख्य अतिथि को भारत के गौरव और खुशी में भाग लेने का जरिया होती है। यह भारत के राष्ट्रपति और मुख्य अतिथि के बीच दोस्ती को दर्शाती है। इसका राजनीतिक और कूटनीतिक महत्व भी है।
गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि के चयन के लिए बहुत तैयारी करनी होती है। इस आयोजन की प्रक्रिया लगभग 6 महीने पहले हज शुरू हो जाती है। विदेशी मेहमान को निमंत्रण देने से पहले विदेश मंत्रालय के बातों पर विचार करता है। इनमें सबसे ज़रूरी बात होती है कि भारत और संबंधित देश के बीच संबंध कैसे हैं।
गणतंत्र दिवस परेड का मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण भारत और आमंत्रित देश के बीच दोस्ती का संकेत भी होता है। भारत के राजनीतिक, वाणिज्यिक, सैन्य और आर्थिक हित को ध्यान में रखकर ही विदेश मंत्रालय यह तय करता है कि किस देश के प्रतिनिधि को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाना है। इस अवसर का उपयोग इन सभी मामलों में आमंत्रित देश के साथ संबंधों को मजबूत करने का एक मौका होता है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन की भूमिका
मुख्य अतिथि की पसंद में ऐतिहासिक रूप से भूमिका निभाने वाला एक अन्य कारक गुटनिरपेक्ष आंदोलन से जुड़ाव भी है, जो 1950 के दशक के अंत में शुरू हुआ था। यह आंदोलन नए उपनिवेशित राष्ट्रों का एक अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन था। 1950 में परेड के पहले मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो थे, जो गुड़ निरपेक्ष आंदोलन के पांच संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने मिस्र के नासिर, घाना के नक्रमा, यूगोस्लाविया के टीटो और भारत के जवाहर लाल नेहरू के साथ मिलकर इसकी नींव रखी थी। अल-सिसी का निमंत्रण गुट निरपेक्ष आंदोलन के इतिहास और भारत और मिस्र के 75 वर्षों के घनिष्ठ संबंधों का आह्वान भी करता है।
इन सब बातों पर विचार करने के बाद विदेश मंत्रालय इस मामले पर प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति की मंजूरी चाहता है। अगर विदेश मंत्रालय को आगे बढ़ने की मंजूरी मिल जाती है, तो वह काम करना शुरू कर देता है। संबंधित देश में भारतीय राजदूत संभावित मुख्य अतिथि की उपलब्धता का सावधानीपूर्वक पता लगाने की कोशिश करते हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य के प्रमुखों के लिए पैक्ड शेड्यूल का भी ध्यान रखना होता है। यह भी एक कारण है कि विदेश मंत्रालय सिर्फ एक विकल्प नहीं बल्कि संभावित उम्मीदवारों की एक सूची का चयन करता है। इस प्रक्रिया के पूरा होने और मुख्य अतिथि का नाम चुनने के बाद भारत और आमंत्रित देश के बीच आधिकारिक बात होती है। गणतंत्र दिवस समारोह के लिए एक डिटेल्ड प्रोग्राम प्रोटोकॉल आने वाले राष्ट्र के प्रतिनिधि के साथ साझा किया जाता है। और वहां से मंजूरी मिलने के बाद मुख्य अतिथि का नाम तय हो जाता है।
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