छात्रों ने बनाया कलामसेट सैटेलाइट, इसरो ने किया सफलतापूर्वक लॉन्च
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार रात अपने नए सैटेलाइट लांच व्हीकल पीएसएलवी-सी44 के जरिए माइक्रोसेट-आर सैटेलाइट को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह माइक्रोसेट-आर इमेजिंग सैटेलाइट को सेना की मदद के लिहाज से बनाया गया है। सबसे खास बात यह रही इस पीएसएलवी-सी44 ने माइक्रोसेट-आर के साथ भेजी गई कॉलेज छात्रों की बनाई ‘कलामसेट’ सैटेलाइट को भी तकरीबन 90 मिनट बाद अपने चौथे चरण के ईंधन की बदौलत 450 किलोमीटर दूर स्थित और ज्यादा ऊंची कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। छात्रों की ओर से बनाए गए इस सैटेलाइट ने एक इतिहास भी रचा है।
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पहली चौथे चरण में उड़ान भरने वाली सैटेलाइट
छात्रों द्वारा बनाई गई कलामसेट पहली सैटेलाइट है जो रॉकेट के चौथे चरण में उड़ान भर रही है। यह सैटेलाइट प्राकृतिक आपदा के दौरान बेहद काम आएगी। इस सैटेलाइट को केवल 12 लाख रुपये में बनाया गया है। इसे चेन्नई के एक संगठन स्पेस किड्ज इंडिया के दल ने तैयार किया है। इस बारे में स्पेस किड्ज के सीईओ श्रीमाथी केसान ने बताया कि यह परियोजना बीते 6 साल से चल रही थी। इस पर काफी शोध किया गया है। उन्होंने बताया कि परियोजना के तहत कलामसेट का निर्माण नैनो सैटेलाइट के कम्युनिकेशन सिस्टम को समझने के लिए किया गया है। इसका उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा सकता है।
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केवल दो स्ट्रेप-ऑन बूस्टर का प्रयोग
इसरो से मिली जानकारी के अनुसार पोलर रॉकेट पीएसएलवीसी-44 ने 28 घंटे लंबे काउंटडाउन के बाद रात में करीब 11.37 बजे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लांचपैड से उड़ान भरी। 04 चरण ईंधन वाले पीएसएलवी-सी44 ने अपनी पहली ही उड़ान में 740 किलोग्राम वजन वाली माइक्रोसेट-आर को महज 13 मिनट 30 सेकंड बाद कक्षा में स्थापित कर दिया।
इस मौके पर इसरो के पूर्व चेयरमैन कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन और एएस किरण कुमार भी मिशन कंट्रोल सेंटर में मौजूद रहे। इसकी एक और खासियत यह भी है कि इस रॉकेट में इसरो ने महज दो स्ट्रेप-ऑन प्रणाली (बूस्टर) का प्रयोग किया था, जबकि आमतौर पर पीएसएलवी सीरीज के रॉकेट छह स्ट्रेप-ऑन बूस्टर के साथ उड़ान भरते रहे हैं या उन पर कोई भी बूस्टर नहीं लगाया जाता था। इस लिहाज से यह सबसे खास है। इसकी लंबाई 44 मीटर है।
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