भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(ISRO) 30 दिसंबर 2024 की रात 9 बजकर 58 मिनट पर स्पेडेक्स मिशन की लॉन्चिंग करेगा। स्पैडेक्स यानी स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट। इसमें इस सैटेलाइट के अलावा 23 और एक्सपेरिमेंट अंतरिक्ष में भेजे जा रहे हैं। यह मिशन आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होगा। स्पैडेक्स मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट को डॉक और अनडॉक करने वाली तकनीकि डेवलप करना और उसका प्रदर्शन करना है।
दरअसल, जब कोई स्पेस मिशन लॉन्च किया जाता है तो उसके मकसद हासिल करने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने होते हैं। इसके लिए अंतरिक्ष में डॉकिंग की जरूरत पड़ती है। भारत के लिए यह तकनीकि मून मिशन, चंद्रमा से सैंपल लाने और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए बहुत अहम है। स्पैडेक्स मिशन के जरिए भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीकि रखने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन स्पेस डॉकिंग में सफलता हासिल कर चुके हैं।
क्या है स्पेस डॉकिंग
स्पेस डॉकिंग का मतलब है अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ना या कनेक्ट करना। यह प्रक्रिया ऐसी होती है जैसे आसमान में दो कारों को आपस में जोड़ना हो। स्पैडेक्स मिशन में पहले स्पेसक्राफ्ट चेजर को दूसरे यान टारगेट के पास ले जाने और उससे जोड़ने का प्रदर्शन किया जाएगा। यह काम बहुत बारीकी से किया जाएगा, क्योंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता और सब बहुत तेजी से हिलता है। डॉकिंग के बाद ये यान मिलकर काम कर सकते हैं, जैसे ईंधन भरना, सामान भेजना-लेना या मरम्मत करना। इसके अलावा अंतरिक्ष स्टेशन बनाना, लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान कई बार रॉकेट अलग-अलग हिस्सों में भेजे जाते हैं, जिन्हें बाद में जोड़ना पड़ता है। अंतरिक्ष यानों को ईंधन या उपकरण देने के लिए और अगर कोई स्पेसक्राफ्ट खराब हो जाए, तो उसे बचाने के लिए दूसरे यान से जुड़ना पड़ सकता है।
POEM-4 क्या है
PS4-Orbital Experiment Module को पोयम (POEM) कहा जा रहा है। ये असल में पोलर सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी PSLV का चौथा स्टेज है, जो कि स्पेडेक्स सैटेलाइट की ठीक नीचे रहेगा। इस जरिए वैज्ञानिक अंतरिक्ष में कुछ माइक्रोग्रैविटी प्रयोग कर सकते हैं। ये प्रयोग करीब तीन महीने तक चल सकते हैं। POEM में कुल मिलाकर 24 पेलोड्स जा रहे हैं, जिसमें से 14 पैलोड्स इसरो और डिपार्टमेंट ऑफ साइंस के हैं बाकी के 10 गैर-सरकारी संस्थाओं जैसे कॉलेज, स्टार्टअप्स आदि के हैं।
इसरो के 14 पेलोड्स का मतलब क्या है
विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के 5 पेलोड। स्पेस फिजिक्स लेबोरेटरी (SPL) के 4 पेलोड। इसरो इनर्शियल सिस्टम्स यूनिट (IISU) के 3 पेलोड। SPLऔर IISU के अलग से एक-एक पेलोड।
10 पेलोड्स शिक्षण संस्थानों और स्टार्टअप्स के जा रहे हैं
1.SJC Institute of Technology कर्नाटक की तरफ से बीजीएस अर्पित यानी एमेच्योर रेडियो पेलोड फॉर इन्फॉर्मेशन ट्रांसमिशन जा रहा है। ये ऑडियो, टेक्स्ट, इमेज मैसेज को सैटेलाइट से धरती पर भेजने का एक्सपेरिमेंट है।
2.बेंगलुरू के की तरफ से पेलोड जा रहा है। ये माइक्रेगैविटी का अध्ययन करेगा। बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस बेंगलुरू की तरफ से बनाया गया ग्रीन प्रोपल्शन रुद्र 1.0 एचपीजीपी पेलोड अंतरिक्ष में ग्रीन प्रोप्ल्शन सिस्टम की जांच करेगा। यानी अंतरिक्ष में प्रदूषण कम करने की तैयारी है।
3.ग्रीन प्रोपल्शन थ्रस्टर-व्योम-2यू जिसे मनास्तु स्पेस टेक्नोलॉजी मुंबई ने बनाया है, इसमें हाइड्रोजन परॉक्साइड आधारित थ्रस्टर की टेस्टिंग की जाएगी।
4. बेंगलुरू के गैलेक्सआई स्पेस सॉल्यूशंश की तरफ से SAR इमेजिंग डेमॉन्सट्रेशन पेलोड जा रहा है।
5.अहमदाबाद के पीयरसाइट स्पेस की तरफ से वरुण पेलोड जा रहा है।
6.आंध्र प्रदेश के एनस्पेस टेक की तरफ से स्वेचसैट एमआईटी ड्ब्लूपीयू पुणे की तरफ से STeRG-P1.0 पेलोड जा रहा है।
7.हैदराबाद के टेकमी2स्पेस की तरफ से MOI-TD पेलोड जा रहा है, जो स्पेस में एक एआई लैब होगा।
POEM-4 मॉड्यूल करेगा पौधे की कोशिकाओं की निगरानी
PSLV-C60 रॉकेट स्पैडेक्स मिशन के जरिए अपने साथ 200-200 किलो के 2 स्पेसक्राफ्ट लेकर जाएगा। इन्हें चेजर और टारगेट नाम दिया गया है। इनसे रिसर्च और डेवलपमेंट से जुड़े 24 पेलोड भी भेजे जाएंगे। इन पेलोड्स को पृथ्वी से 700 किमी की ऊंचाई पर डॉक किया जाएगा। इनमें से एक है- एमिटी प्लांट एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल इन स्पेस (APEMS) पेलोड, जिसे एमिटी यूनिवर्सिटी ने बनाया है। यह रिसर्च करेगा कि पौधे की कोशिकाएं अंतरिक्ष में कैसे बढ़ती हैं।
सफल हुए तो मंगल मिशन पर अंतरिक्ष में ही पौधे उगा सकेंगे वैज्ञानिक
इस रिसर्च के तहत अंतरिक्ष और पृथ्वी पर एक ही समय में प्रयोग किया जाएगा। पौधे की कोशिकाओं को LED लाइट्स और जेल के जरिए सूर्य का प्रकाश और पोषक तत्व जैसी अहम चीजें दी जाएंगी। एक कैमरा पौधे की कोशिका के रंग और वृद्धि को रिकॉर्ड करेगा। अगर कोशिका का रंग बदलता है तो प्रयोग असफल हो जाएगा। वहीं, अगर इसमें सफलता मिलती है तो अंतरिक्ष और पृथ्वी पर कृषि तकनीकों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों की लंबी अंतरिक्ष यात्राओं, जैसे मंगल ग्रह मिशन के दौरान पौधे उगाने की संभावना और मजबूत होगी।
अंतरिक्ष में कचरा पकड़ने वाला मिशन जा रहा साथ में
स्पेडेक्स के साथ IISU का वॉकिंग रोबोटिक आर्म (RRM-TD: Walking Robotic Arm) भी जा रहा है। ये कीड़े की तरह अंतरिक्ष में चलकर दिखाएगा। इसके साथ VSSC का डेबरी कैप्चर रोबोटिक मैनीपुलेटर (Debris Capture Robotic Manipulator) जा रहा है, जो स्पेस में कचरा पकड़ने का काम करेगा।
इसके अलावा कई ऐसे एक्सपेरिमेंट होने वाले हैं, जो इसरो को भविष्य में मानव और अन्य मिशन में मदद करेगे। ये हैं- रिएक्शन व्हील असेंबली, मल्टी सेंसर इनर्शियल रेफरेंस सिस्टम, लीड एक्जेम्ट एक्सपेरिमेंटल सिस्टम, एमईएमएस-बेस्ट रेट सेंटर, पेलोड कॉमन ऑनबोर्ड कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉन टेंपरेचर एनालाइजर, इलेक्ट्रॉन डेन्सिटी एंड न्यूट्रल विंड, लैंगमुइर प्रोब, PLASDEM, लेजर फायरिंग यूनिट, लेजर इनिशिएशन पाइरो यूनिट, कॉम्पैक्ट रिसर्च मॉड्यूल्स फॉर ऑर्बिटल प्लांट स्टडीज (CROPS) और पायलट-जी2 (ग्रेस)
स्पेस डॉकिंग तकनीकि में दक्षता हासिल करने वाले देश
1. रूस
रूस सबसे पहला देश था जिसने 1967 में कॉसमॉस-186 और कॉसमॉस-188 सैटलाइट के साथ ऑटोमैटिक डॉकिंग का प्रदर्शन किया था। रूस स्पेस डॉकिंग और स्पेश स्टेशन बनाने में आगे रहा है। मीर (Mir) और वर्तमान में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) बनाने में भी इसकी अहम भूमिका है।
2. अमेरिका
अमेरिका ने पहली बार 1966 में जेमिनी 8 मिशन के दौरान स्पेस डॉकिंग का प्रदर्शन किया। NASA ने अपोलो और शटल मिशन के दौरान डॉकिंग तकनीकि का इस्तेमाल किया और इसे डेवलप किया। अमेरिका ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के मॉड्यूल डॉकिंग और ऑपरेशन में भी अहम रोल निभाया है।
3. चीन
चीन ने 2011 में अपने शेंझोउ 8 और टियांगोंग 1 मॉड्यूल के साथ पहली बार सफल स्पेस डॉकिंग की। वर्तमान में चीन अपने स्वतंत्र अंतरिक्ष ‘तियांगोंग’ के निर्माण में इस तकनीकि का इस्तेमाल कर रहा है।