आज ही के दिन भारत में चली थी पहली पैसेंजर ट्रेन, अब है लोगों की लाइफलाइन

कोरोना वायरस (CoronaVirus) की वजह से भले ही भारतीय रेलवे की पैसेंजर ट्रेनों के पहिये थम गए हैं, लेकिन आज का दिन भारतीय रेलवे (Indian Railways) के लिए बहुत खास है। दरअसल, 167 साल पहले 16 अप्रैल 1853 को आज ही के दिन भारतीय रेलवे (Indian Railways) की पहली यात्री ट्रेन (First Passenger Train) बोरीबंदर (Mumbai CSMT) से ठाणे (Thane) के बीच में चली थी।
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मुम्बई और ठाणे के बीच 21 मील (लगभग 33.6 कि.मी.) लम्बे रेलमार्ग पर 14 डिब्बों की यात्री ट्रेन (Passenger Train) चलाई गई थी। 21 मील के सफर की शुरुआत तीन बजकर 35 मिनट पर 21 तोपों की सलामी के साथ हुई थी। पहली ट्रेन में लगभग 400 यात्री इस स्वर्णिम इतिहास के गवाह बने थे। इसके लिए ब्रिटेन से सुल्तान (Sultan), सिंधु (Sindhu) और साहिब (Sahib) नाम के इंजन मंगवाए गए थे। उस समय ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे कंपनी (Great Indian Peninsula Railway) ने भारत की पहली रेलगाड़ी के लिए रेल लाइन बिछाने का काम किया था। तब से शुरू हुआ सफर अनवरत जारी है। भारत में प्रतिदिन लगभग 2.3 करोड़ यात्रियों को उनके गंतव्य स्थान पर पहुंचाने काम भारतीय रेलवे कर रहा है। आइए आज हम आपको बताते हैं इंडियन रेलवे के 167 साल के गौरवशाली इतिहास (167 Glorious Years of Indian Railways) के कुछ खास तथ्य।

दुनिया का चौथा बड़ा नेटवर्क है भारतीय रेल (Indian Railway)
एक दिन में करीब 2.5 करोड़ लोगों को सफर कराने वाला भारतीय रेलवे (Indian Railway) दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क (अमेरिका, चीन और रूस के बाद) है। भारतीय रेल ट्रैक की कुल लंबाई 65,000 किलोमीटर है। वहीं, अगर यार्ड, साइडिंग्स वगैरह सब जोड़ दिए जाएं तो ट्रैक की लंबाई लगभग 1,15,000 किलोमीटर हो जाती है। देश में सबसे बड़ी रेल सुरंग इस समय जम्मू-कश्मीर के पीर पंजाल में हैं, जिसकी लम्बाई 11.215 किमी है। देश में रेलगाड़ियों (Trains) का नेटवर्क 15 हजार गाड़ियों का हैं। भारत में करीब 6 हजार से ज्यादा रेलवे स्टेशन हैं।
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इतिहास में पहली बार थमे ट्रेनों (Train) के पहिए
कोरोना वायरस (Coronvirus) की वजह से इस समय पूरे देश में ट्रेनों के पहिए थमे हुए हैं। इतिहास (History Indian Railway) में देश के सामने कई बार विषम परिस्थितियां आईं, लेकिन भारतीय रेल का पहिया नहीं थमा। यहां तक कि विश्वयुद्ध (World Wars), वर्ष 1974 की रेलवे हड़ताल( Railway Strike), राष्ट्रीय या प्राकृतिक आपदा के बीच भी इतने दिनों तक यात्री ट्रेनों का संचालन बाधित नहीं रहा। इस समय देश में करीब 12 हजार 500 सवारी ट्रेनों और 500 सब-अर्बन ट्रेनों का संचालन रुका हुआ है।
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भारतीय रेलवे (Indian Railways) के वे तथ्य जिन्हें नहीं जानते हैं आप
देश में पहली ट्रेन चलने के 8 साल बाद 1861 में बॉम्बे (अब मुंबई) में नए टर्मिनस के रूप में चर्चगेट रेलवे स्टेशन (Churchgate railway station) स्थापित किया गया।
1864 में दिल्ली के चांदनी चौक (Chandni Chowk) के पास रेलवे स्टेशन (Delhi Junction) (दिल्ली का पुराना स्टेशन) की स्थापना हुई। उसके साथ दिल्ली और कलकत्ता (अब कोलकाता) के बीच में ट्रेन का संचालन शुरू हुआ।
लखनऊ से कानपुर (Lucknow to Kanpur) तक पहली रेलवे लाइन को बिछाने का काम 1867 में अप्रैल के महीने में शुरू हुआ।
अंग्रेजों ने पुल बनाने की पहली सफलता सतजल नदी (Sutlej bridge) पर 1870 में पाई। रेलवे के इस पुल को बनाना बहुत ही कठिन था। इस पुल की सफलता को अंग्रेजों ने ‘महान परिमाण के काम’ (work of great magnitude) के रूप में परिभाषित किया गया है।
1880 में दार्जिलिंग स्टीम ट्रामवे (दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे) (Darjeeling Himalayan Railways) में सेवा शुरू हुई। सिलीगुड़ी-दार्जिलिंग (Siliguri- Darjeeling Rail line) के बीच शुरू हुई इस सेवा को अब ‘टॉय ट्रेन’ के नाम से भी जाना जाता है।
भोपाल से इटारसी (Bhopal to itarsi) के बीच में 1882 में पहली ट्रेन चली थी।
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अजमेर (Ajmer) में पहला इंजन ( first locomotive) 1895 में बनाया गया। भारत का पहला रेल इंजन एफ/1 क्लास ऑफ 6-0 टाइप था जो अब रेल संग्रहालय दिल्ली (National Rail Museum Delhi) में संरक्षित है। देश के पहले इंजन का नाम एफ 734 है। इसका वेट 38 टन है। इसके फ्रंट में अमेरिकन स्टाइल में काऊ कैचर लगाया गया है। इस रेल इंजन पर पीले अक्षर में आरएमआर लिखा है जो राजपूताना (राजस्थान) मालवा रेलवे (Rajputana Malwa Railway F-734) का सिंबल है।
1905 में शिमला-कालका (shimla to kalka train) के बीच में रेल लाइन बनकर तैयार हुई। यह रेलवे ट्रैक इंजीनियरिंग का शानदार नमूना है। इस रेल लाइन पर कुल 107 छोटे-बड़ी सुरंगें हैं। इनमें से 33 नंबर की सुरंग का अपना अलग किस्सा है। उस समय की सबसे लंबी रेलवे सुरंग (करीब डेढ़ किलोमीटर) को ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बड़ोग ने तैयार किया गया था।
रेलवे ने 1911 में पंबन रेलवे ब्रिज (Pamban Railway Bridge) का निर्माण शुरू किया गया था। इस पुल पर ट्रेन का सफर 24 फरवरी 1914 से शुरू हुआ था। यह भारत का ऐसा पहला पुल है जो कि समुद्र को पार करने के लिए बनाया गया है। यह पुल पंबन और रामेश्वरम के बीच में यात्रा को शुरू करने के लिए बनाया गया था। रामेश्वरम (Rameshwaram) को भारत के मुख्य भू-भाग से जोड़ने वाला पुल मंडपम (Mandapam) में बना हुआ है। हालांकि, अब यह पुल अपनी ताकत खो रहा है। मंडपम (Mandapam) में बन रहे नए पंबन रेलवे ब्रिज पर निर्माण कार्य पिछले साल नवंबर में शुरू हो गया है। इसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने किया है।
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रेलवे ने मुंबई में दादर और क्यूरी रोड (Dadar and Currey Road Mumbai) के बीच 1920 में इलेक्ट्रिक लाइटनिंग का काम शुरू हुआ।
रेलवे के बढ़ते कदम को देखते हुए 1924 से 1944 के बीच रेलवे के राष्ट्रीयकरण (Nationalization of Railways) की पहल शुरू की गई। सरकार ने सभी प्रमुख रेल कंपनियों (rail companies) जैसे GIPR, EIR पर अधिकार कर लिया।
भारत में 1928 में पहली बार ऑटोमैटिक कलर लाइट सिग्नल बॉम्बे वीटी (Bombay VT) और बाइकुला (Byculla) के बीच में GIPR की तर्ज पर पेश किया गया।
भारत की पहली विद्युत रेल ‘डेक्कन क्वीन’ थी, जिसे 1930 में कल्याण और पूना (अब पुणे) के बीच चलाया गया था। 1930 में ही रेलवे ने पाॅवर सिग्नलिंग और अपर क्वाड्रेंट सेमाफोर सिग्नल (Railways introduced power signalling) को पेश किया था। रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के संचालन में यही अहम भूमिका निभाता है।
रवीन्द्र सेतु के नाम से जाना जाने वाला प्रसिद्ध हावड़ा ब्रिज (Howrah Bridge) रेलवे ने 1943 में बनाकर तैयार कर दिया था। कोलकाता का यह प्रतिष्ठित हावड़ा ब्रिज हुगली नदी पर बना हुआ है। इस ब्रिज का निर्माण 1937 में शुरू हुआ था। खास बात यह है कि हावड़ा ब्रिज सिर्फ चार खम्भों पर टिका हुआ है।
रेलवे ने 1948 में उत्तरी ब्रिटिश (North British) से 100 WG वर्ग 2-8-2 लोको ऑर्डर किए गए थे। हालांकि, चितरंजन रेल इंजन कारखाना (CLW) ने 1950 में उनका उत्पादन शुरू किया।
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रेलवे के विकास का पहिया धीरे-धीरे आगे बढ़ा और 1954 में थ्री टीयर (Three Tier railway coaches) वाले रेलवे कोचों की शुरुआत की।
भारत में पहले इलेक्ट्रिक इंजन WAM-1 की सिफारिश ‘जगजीवन राम’ कमीशन (Jagjivan Ram commissioned) ने 1959 में किया था।
1500 VDC इलेक्ट्रिक इंजनों का निर्माण 1961 में चितरंजन रेल इंजन कारखाना (CLW) में शुरू हुआ। जिससे पहले ‘लोकमान्य’ के नाम से जाना जाता था। ये पहला स्वदेशी इंजन था और इसका प्रयोग इस समय भी किया जा रहा है।
अमेरिकी लोकोमोटिव कंपनी ALCO ने 1962 में WDM2 इंजन पेश किया था।
नई दिल्ली से आगरा (New Delhi to Agra) ताजमहल (Taj Mahal) देखने आने और वापस जाने वाले लोगों के लिए ताज एक्सप्रेस ट्रेन (Taj Express Trains) शुरू की गई। ताकि लोग एक ही दिन में ताज देखकर दिल्ली वापसी कर सकें।
रेलवे ने 1965 में कई मार्गों पर फास्ट फ्रेट सेवाओं (Fast Freight services) की शुरुआत की। यह सेवा चार बड़े महानगरों के बीच में शुरू की गई। इसके अलावा अहमदाबाद, बंगलुरु जैसे शहरों को भी इस सेवा में जोड़ा गया है।
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भारतीय रेलवे (Indian Railways) ने पहली बार केंद्रीकृत ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम (Centralized Traffic Control System) को 1966 में पहली बार शुरू किया। इस सिस्टम का प्रयोग 187 किमी लंबे खंड- गोरखपुर और छपरा के बीच किया गया था।
भारतीय रेलवे ने 1970 में अपना आखिरी BG Sream वाला इंजन विकसित किया। WG वाले इस इंजन का नाम ‘एंटीम सितारा’ था। यह इंजन भारत में पहली 1948 में बनाया गया था।
भारतीय रेलवे ने 1978-79 में WDM 2 कैटेगरी वाले इंजनों को बनाना शुरू कर दिया था। इन इंजनों को लोको पायलट ‘जुंबोस’ कहा जाता था।
भारत में 1980 से इलेक्ट्रिक इंजन WAP-1 का निर्माण शुरू हुआ। भारत में इस समय यही इंजन प्रचलन में है।
भारतीय रेलवे (Indian Railways) ने नई दिल्ली (New Delhi) में कम्प्यूटरीकृत टिकटिंग और आरक्षण की शुरुआत 1984 में की थी।
1990 में नई दिल्ली में रेलवे (Indian Railways) द्वारा पहली सेल्फ प्रिंटिंग टिकट मशीन (first Self Printing Ticket Machine) की शुरुआत की गई थी।
हाईटेक डीजल इंजन WDP-4 का निर्माण जून 2001 में भारत की लोको फैक्ट्री में शुरू किया गया था।
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