विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को लोकसभा में चीन के साथ संबंधों और एलएसी पर ताजा हालात के बारे में सदन को अवगत कराया। उन्होंने कहा-
“मैं सदन को भारत-चीन सीमा क्षेत्र में हाल के कुछ घटनाक्रमों और हमारे पूरे द्विपक्षीय संबंधों पर उनके प्रभावों से अवगत कराना चाहता हूं। सदन को पता है कि 2020 से हमारे संबंध असामान्य रहे हैं। चीन की गतिविधियों की वजह से सीमावर्ती क्षेत्र में शांति और सौहार्द भंग हुआ था। चीन से सीमा मुद्दे पर बातचीत की गई। यह बताया गया कि सीमा पर शांति होने पर ही रिश्ते सुधरेंगे। कूटनीतिक रास्ते से मामले का हल निकला है। अब एलएसी पर हालात सामान्य हैं। पूर्वी लद्दाख में पूरी तरह से डिसइंगेजमेंट हो चुका है।”
भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में चार साल से सीमा विवाद को लेकर तनाव था। दो साल की लंबी बातचीत के बाद इसी साल अक्टूबर में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके बाद दोनों देशों की सेनाएं देपसांग और डेमचोक से पीछे हट गई हैं।
विदेश मंत्री बोले- जून 2020 से अब तक 38 बैठकें हुईं, भारत ने चीन की चुनौती का मजबूती से किया सामना
विदेश मंत्री ने बताया कि भारत और चीन के बीच रिश्ते बेहतर करने के लिए मेरी चीनी विदेश मंत्री से बातचीत हुई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने समकक्ष चीनी नेता से बातचीत की। इसके अलावा राजनयिक स्तर पर वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कोऑपरेशन एंड कोऑर्डिर्नेशन (WMCC) और सन्य स्तर पर सीनियर हाईएस्ट मिलिट्री कमांडर्स बैठकें (SHMC) होती हैं। जून 2020 से अब तक WMCC की 17 और SHMC की 21 बैठकें हुईं, तब जाकर 21 अक्टूबर 2024 को देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों पर समझौता हुआ। सितंबर 2022 से इन मुद्दों पर चर्चा चल रही थी, जब हॉट स्प्रिंग्स पर अंतिम समझौता हुआ था।
जून 2020 की गलवान झड़प में 45 साल बाद पहली बार सैनिकों की जान गई और सीमा पर भारी हथियार तैनात हुए। भारत ने इस चुनौती का मजबूती से सामना किया।
2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन ने सीमा के पास बड़ी संख्या में सैनिक तैनात किए, जिससे दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनाव बढ़ा। यह स्थिति भारतीय सेना की गश्ती में रुकावट बनी। हालांकि हमारी सेना ने इस चुनौती का मजबूती से सामना किया। इसमे हमारे प्रयासों को गंभीर नुकसान पहुंचाया और दोनों देशों के रिश्तों पर गहरा प्रभाव डाला।
पहले सारे समझौते रहे असफल
1988 से भारत-चीन ने सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाने और शांति बनाए रखने के लिए कई समझौते किए। 1993, 1996 और 2005 में शांति और विश्वास बहाली के उपाय किए गए। चीन ने 1962 के युद्ध में अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। इसके अलावा 1963 में पाकिस्तान ने 5,180 वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन चीन को सौंप दी थी।
भारत ने पहले से ज्यादा सख्ती बरती है: जयशंकर
भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि हाल के अनुभवों के बाद हमने सीमा पर सख्ती बरती है। दोनों पक्ष सख्ती के सीमा सहमति का पालन करें। दोनों पक्ष इस सहमति को मानने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नई स्थिति में सामान्य चीजें नहीं हो सकती हैं जैसे पहले हुआ करता था। ऐसे में आपसी समझौते का पालन करना जरूरी है। सरकार ने कहा कि भारत-चीन रिश्ते तब तक सामान्य नहीं हो सकते हैं जबतक सीमा पर हालात सामान्य न हो जाएं। हम साफ कर दें कि शांति और समझौता के बिनाह पर ही हमारे आपसी रिश्ते बेहतर होने की गारंटी है। चीन के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री ने भी चीन के समकक्षों से बात की है। कूटनीतिक स्तर पर भी बातचीत चल रही है, सेना के स्तर पर भी ऐसा काम चल रहा है।
‘आगे सीमा विवाद न हो इसकी भी चर्चा होगी’
उन्होंने कहा कि लद्दाख में कई तकनीकि का इस्तेमाल किया जा रहा है। ये बताता है कि सरकार हमारे सैनिकों की मदद के लिए कितनी तत्पर है। चीन के साथ हमारे रिश्ते आगे बढ़े हैं, ये जरूर है कि पिछली घटनाओं से चीन के रिश्ते खराब हुए हैं। आने वाले दिनों में हम चीन के साथ सीमा पर विवाद नहीं करने के मुद्दे पर भी चर्चाकरेंगे। अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए हम बात करेंगे।
बार्डर पर शांति के लिए जरूरी सिद्धांत
- भारत-चीन LAC का सम्मान करे।
- किसी भी तरफ यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश न की जाए।
- दोनों देश के बीच जो समझौते पहले हो चुके हैं, उनका पालन हो।