भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव के बीच एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मिली है। दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख के एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर बची हुई तनावपूर्ण जगहों से सैनिकों की गश्त फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है। यह फैसला 2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद से जारी तनाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हालांकि, विशेषज्ञ इस समझौते को सकारात्मक कदम मानते हैं, लेकिन साथ ही भारत को चीन की मंशा पर सतर्क रहने की सलाह भी दे रहे हैं।
चीन पर भरोसा करना मुश्किल: विशेषज्ञों की राय
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि यह समझौता खासकर डेपसांग प्लेन्स और देमचोक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में तनाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन, इस समझौते के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि चीन पर पूरी तरह से भरोसा करना जल्दबाजी होगी।
जियोस्ट्रेटेजिस्ट ब्रह्मा चेलानी ने एक चर्चा में कहा, “यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन इसे पूर्ण समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। चीन की ओर से अभी तक इस समझौते पर कोई बयान नहीं आया है, और हमें समझना चाहिए कि चीन अपने कब्जाए हुए इलाकों से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है।”
चेलानी ने बताया कि तनाव समाप्त करने के तीन प्रमुख चरण होते हैं — विस्थापन, तनाव कम करना, और विरोधी ताकतों की वापसी। वर्तमान में, केवल पहले चरण यानी विस्थापन पर सहमति बनी है। चीन ने भारत-चीन सीमा पर स्थायी सैन्य ढांचे तैयार कर लिए हैं, जिससे आगे के चरणों को लागू करना बेहद मुश्किल होगा।
डेपसांग और देमचोक पर अभी भी चुनौती
चेलानी के अनुसार, अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति, जब चीन ने लद्दाख के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, अब वापस नहीं आ सकती। उन्होंने कहा, “सैनिकों की गश्त फिर से शुरू होने से तनाव कम हो सकता है, लेकिन सीमा के पुराने हालातों में वापस लौटना संभव नहीं दिखता।”
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त) ने भी चेलानी की बात का समर्थन करते हुए कहा कि पिछले चार सालों में सीमा पर बुनियादी ढांचे और सैन्य तैनाती में भारी बदलाव हुए हैं। “चीन द्वारा की गई इन तैयारियों को तुरंत खत्म करना संभव नहीं है। इसके लिए विस्तृत समझौते की आवश्यकता है,” उन्होंने कहा।
हसनैन के अनुसार, “तनाव बढ़ने में केवल कुछ सेकंड लगते हैं, जबकि तनाव कम करने में कई साल लग जाते हैं। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे आगे बढ़ेगी और तुरंत हल नहीं होगी।”
BRICS सम्मेलन की तैयारी का संकेत?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते से पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच BRICS शिखर सम्मेलन में मुलाकात का रास्ता साफ हो सकता है। लेफ्टिनेंट जनरल हसनैन ने कहा, “यह समझौता एक सकारात्मक माहौल तैयार करने के लिए किया गया है। हालांकि, इसे किसी बड़ी सफलता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।”
भारत और चीन के बीच यह नया समझौता कूटनीतिक स्तर पर एक महत्वपूर्ण कदम जरूर है, लेकिन विशेषज्ञ इस पर पूरी तरह से भरोसा करने से पहले सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। चीन की मंशा को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं, और सीमा पर उसके द्वारा किए गए स्थायी ढांचे को देखते हुए, आगे के कदमों पर सतर्कता बरतनी जरूरी है।