नकली दवा बेचना होगा मुश्किल, सरकार ने शुरू की नई व्यवस्था

एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बिकने वाली करीब 25 फीसदी दवाएं नकली होती हैं। नकली दवाओं के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार (10 हजार करोड़ का) है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यहां बिकने वाली हर 10 दवाओं में से एक दवा नकली होती है। इस समस्या से निपटने का हल कई साल से खोजा जा रहा है, लेकिन अब सरकार ने इस पर पर अंकुश लगाने की तैयारी कर ली है। सरकान ने आदेश दिया है कि सभी दवाओं पर क्यू आर कोड लिखा जाए जिससे नकली और असली दवा की पहचान की जा सके। ऐसा होने से ग्राहक दवा पर मौजूद क्यू आर कोड को मोबाइल से स्कैन कर दवा असली है या नकली ये जान सकेगा।
फार्मास्युटिकल मंत्रालय के अनुसार, सरकारी अस्पतालों, जन औषधि केंद्रों पर आपूर्ति की जाने वाली दवाओं पर इ साल के एक अप्रैल से क्यूआर कोड अनिवार्य है। वहीं बाजार में बिकने वाली अन्य सभी दवाओं के लिए यह व्यवस्था एक अप्रैल, 2020 से लागू करने का आदेश है। दवा कंपनियों ने मंत्रालय के आदेश के अनुपालन की तैयारियां शुरू कर दी हैं। क्यू आर कोड से न सिर्फ ग्राहकों बल्कि दवा कंपनियों को भी फायदा मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हें भी नकली दवा की वजह से हर साल कई हजार करोड़ का नुकसान होता है। दूसरी ओर मरीज को नकली दवा असर नहीं करती और उसका मर्ज बढ़ जाता है।
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मंत्रालय के मुताबिक, क्यूआर कोड में दवा की पूरी जानकारी छिपी होगी। इसमें बैच नंबर, सॉल्ट, कंपनी का नाम, कीमत, हेल्पलाइन नंबर, जारी करने की तिथि और खराब होने की तिथि शामिल होगी। मंत्रालय ने यह भी कहा है कि दवा की नकल बाजार में उतारने वालों के लिए क्यूआर कोड की नकल तैयार करना असंभव है, क्योंकि यह हरेक बैच नंबर के साथ बदलेगा। ऐसे में देश को नकली दवाओं से पूरी तरह से मुक्ति मिलेगी। मौजूदा समय असली और नकली दवा की पहचान करना उपभोक्ताओं के लिए टेढ़ी खीर है।
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