जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा की 90 सीटों के लिए चुनावों की घोषणा के बाद लोगों में एक बार फिर उम्मीद की लहर जागी है। लोकसभा चुनाव के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव की ज्यादा प्रतीक्षा हो रही थी। वहां चुनाव को ज्यादा समय तक टालना संभव नहीं था, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव के लिए 30 सितंबर की समय-सीमा खींच रखी थी, इसलिए अब तीन चरणों में मतदान के साथ चुनाव की घोषणा का स्वागत होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर में 18, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को मतदान होंगे जिसका परिणाम 4 अक्टूबर को आ जाएगा। गौरतलब है कि पिछले दिनों मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार, चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू ने जम्मू कश्मीर का दौरा किया था। सबसे ज्यादा उत्साह इस बात का है कि कश्मीर में लोग चुनाव में भाग लेने के लिए लालायित हैं। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में वहां के लोगों ने जिस तरह वोट डालने में सक्रिय भूमिका निभाई, इससे स्पष्ट पता चलता है कि लोग अपने इलाके की तस्वीर बदलना चाहते हैं। जनता के उत्साह को देखते हुए यह उम्मीद लगाई जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से कहीं ज्यादा वोट विधानसभा चुनावों में डाले जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा भी है, हमने लोकसभा चुनाव के दौरान जम्मू-कश्मीर में लोगों की लंबी कतारें देखी हैं, जिससे पता चलता है कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं और बुलेट के बजाय बैलेट को प्राथमिकता देते हैं। यह विधानसभा चुनाव इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि अलगाववादी नेता इस बार या तो जेलों में बंद हैं या चुप्पी साधे बैठे हैं।
5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म करने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। जम्मू-कश्मीर में 87.09 लाख मतदाता 11,800 से अधिक मतदान केंद्रों पर वोट डालेंगे। कश्मीर में माहौल बदला है और ज्यादा से ज्यादा लोग मुख्यधारा में आ रहे हैं। वहां लोग शांति के साथ रहना चाहते हैं। चुनाव आयुक्त ने विश्वास जताया है कि जम्मू-कश्मीर के लोग विघटनकारी ताकतों का उचित जवाब देंगे। वहां चुनाव कराने में किसी भी तरह के भय की जरूरत नहीं है और सुरक्षा के तमाम जरूरी इंतजाम रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। वास्तव में, चुनाव आयोग की दृढ़ता सराहनीय है।
साल 1990 में यहां आतंकवाद शुरू हुआ था। उसके बाद के चुनावों में पांच से 15 प्रतिशत मतदान होता था, लेकिन पिछली बार सारे रिकॉर्ड तोड़कर 55 प्रतिशत मतदान हुआ। पिछली बार भाजपा और महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने मिलकर चार साल सरकार चलाई। साल 2014 के विधानसभा चुनावों में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 25 सीटें मिली थीं। लेकिन चार साल बाद गठबंधन सरकार तब गिर गई जब भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। तब से महबूबा मुफ्ती और भाजपा के बीच 36 का आंकड़ा चल रहा है।
इस बार होने वाले चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उप-प्रधान उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की प्रधान महबूबा मुफ्ती ने घोषणा की है कि ये दोनों विधानसभा चुनाव तब तक नहीं लड़ेंगे जब तक कि जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए वापस नहीं दिया जाता तथा जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस नहीं मिलता है।
ये दोनों पूर्व मुख्यमंत्री, उमर अब्दुल्ला अपनी बारामुला लोकसभा सीट और महबूबा मुफ्ती अपनी अनंतनाग सीट से काफी वोटों से हार गए थे। उमर अब्दुल्ला ने भले ही एलान किया है कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि उनकी पार्टी सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वैसे, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने अभी तक यह फैसला नहीं किया है कि वे किसी से गठबंधन करेंगे या नहीं। लोकसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने जम्मू की दो सीटों और कश्मीर की तीन सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। महबूबा और उमर आपस में भी लड़ने वाले थे पर बाद में दोनों हट गए थे।
इस बार के चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और अल्ताफ बुखारी के लिए चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा। भाजपा और कांग्रेस को भी इन विधानसभा चुनावों में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। दोनों पार्टियों का वोटबैंक जम्मू की 43 सीटों पर ही केंद्रित है। पिछले दस सालों में भाजपा जम्मू के लोगों पर अच्छा प्रभाव नहीं डाल सकी क्योंकि जम्मू क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि पिछले कुछ वर्षों में शासन की वजह से जम्मू का सारा व्यापार खत्म हो गया है और बेरोजगारी बढ़ी है।
बहरहाल, चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा कर सियासी सरगर्मी को और बढ़ा दिया है। यह दिलचस्प होगा कि मुख्य चुनावी मुद्दों पर किस हद तक बात होती है। अनुच्छेद 370, 35ए, बेरोजगारी, आतंकवाद, राज्य का दर्जा दिए जाने और केंद्र के साथ अच्छे रिश्ते को लेकर भी खूब बातें होंगी और देखना है कि लोग किसे ज्यादा सुनते हैं?