फैसला: पराली जलाने से रोकने के लिए फ्लाइंग स्क्वायड तैनात, 30 नवंबर तक रहेंगे एक्टिव

अगर आयोग अपने निर्देशों की पालन नहीं करा पा रहा है तो उसके निर्देशों का क्या महत्व है! अच्छे नेता, अच्छी संस्था, अच्छे निर्देश-आदेश का लाभ अगर प्रदेश-देश को न मिले, तो यह अफसोस और दुख की बात है। -सुप्रीम कोर्ट

खेतों में धान की बालियों की कटाई के बाद खड़े-खड़े सूखे पौधे जिन्हें पराली कहते हैं, जलाने का घातक क्रम फिर शुरू हो गया है। उत्तर भारत के एक बड़े इलाके में इस मौसम में वायु प्रदूषण का घना प्रकोप रहता है। एक समय ऐसा आ जाता है, जब लोगों को घर से बाहर निकलने में भी परेशानी होने लगती है। अभी अक्टूबर का महीना शुरू ही हुआ है पर खेतों को जल्दी से जल्दी गेहूं की फसल के लिए तैयार करने की होड़ में पंजाब-हरियाणा के किसान फिर खेतों में आग लगाने पर आमादा हैं।

ऐसे में, प्रशंसनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने समय रहते संज्ञान लिया है और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के कामकाज को लेकर नाराजगी जताई है। न्यायालय ने कहा कि पराली जलाने से निपटने के लिए आयोग को एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। आयोग अपने आदेशों को जमीन पर उतारने में बहुतहद तक नाकाम रहा है। ऐसे में न्यायालय की नाराजगी सराहनीय व स्वागत के योग्य है। संज्ञान में यह बात आई है कि पिछले साल की तुलना में इस बार ज्यादा पराली दहन हो रहा है।

आयोग को और अधिक सक्रिय रहने की जरूरत: सर्वोच्च न्यायालय

न्यायाधीश अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा है कि आयोग ने कुछ कदम उठाए हैं, पर और ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है। आप मूकदर्शक के रूप में काम कर रहे हैं। आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके प्रयास और निर्देश वास्तव में प्रदूषण को घटा सकें। आयोग की जितनी बैठकें होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रही हैं। आयोग ने प्रदूषण की रोकथाम के लिए 82 निर्देश जारी किए हैं, पर यह सुनिश्चित नहीं किया कि सभी निर्देशों की पालन हो। आयोग को अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद करने और उसके आदेशों का पालन न करने पर मुआवजा चुकाने का निर्देश देने का अधिकार है।

अगर विभिन्न राज्यों में प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित अधिकारियों ने आदेशों-निर्देशों को नहीं माना है तो उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने की तकलीफ आयोग ने नहीं उठाई है। ऐसे में, सर्वोच्च न्यायालय ने दो टूक पूछा है कि अगर आयोग अपने निर्देशों की पालन नहीं करा पा रहा है तो उसके निर्देशों का क्या महत्व है! अच्छे नेता, अच्छी संस्था, अच्छे निर्देश-आदेश का लाभ अगर प्रदेश-देश को न मिले, तो यह अफसोस और दुख की बात है। पराली दहन पर अनेक सरकारों का रुख लोग देख चुके हैं और इस मोर्चे पर शासन-प्रशासन की नाकामी किसी से छिपी नहीं है। पराली जलाने से रोकने की दिशा में राज्य सरकारों के प्रयास कतई पर्याप्त नहीं हैं।

पराली प्रदूषण रोकने के लिए आवश्यक कदम

सीएक्यूएम (कमिशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट) के निर्देश पर पंजाब और हरियाणा ने पराली जलाने के मामलों को कम करने के लिए कांप्रिहेंसिव एक्शन प्लान पर काम शुरू कर दिया है।1 अक्टूबर से 30 नवंबर तक पंजाब और हरियाणा में सीपीसीबी के फ्लाइंग स्क्वायड भी नजर रखेंगे। इनकी पहली नजर पराली जलाने के मामले में हॉट स्पॉट पर रहेगी। हॉट स्पॉट पर पराली जलाने के सबसे अधिक मामले आते हैं। साथ ही पंजाब और हरियाणा राज्य भी पराली जलाने के मामलों में एजेंसियों के साथ मिलकर कड़ी मॉनिटरिंग कर रहा है।

फ्लाइंग स्क्वायड की तैनाती

पंजाब और हरियाणा में पराली जलने के करीब 40 हजार मामले रिपोर्ट हुए थे। बावजूद इसके केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने पराली को जलाने से रोकने के लिए इस बार फिर पंजाब और हरियाणा के 26 जिलों में फ्लाइंग स्क्वायड (उड़नदस्ते) की तैनाती दी है। सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड) के फ्लाइंग स्क्वायड, संबंधित जिले की अथॉरिटीज और अधिकारियों के साथ मिलकर यह काम कर रहे हैं। वह राज्य के नोडल ऑफिसर से भी सीधे संपर्क में रहेंगे।

इन जिलों में हुई तैनाती

फ्लाइंग स्क्वायड को पंजाब में 16 जिलों अमृतसर, बरनाला, बटिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, फज्लिका, फिरोजपुर, जालंधर, कपूरथला, लुधियाना, मांसा, मोंगा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर और तरन तारण में लगाया गया है। वहीं, हरियाणा में दस जिलों अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर में फ्लाइंग स्क्वायड लगाए गए हैं।

सीएक्यूएम और सीपीसीबी को भेजी जाएगी पराली की रिपोर्ट

फ्लाइंग स्क्वायड जमीनी स्तर पर पराली की रिपोर्ट रोज सीएक्यूएम और सीपीसीबी को भेजेंगे। साथ ही रिपोर्ट में यह भी रहेगा कि पराली जलाने के मामलों को कम करने के लिए जिला स्तर पर क्या कदम उठाए गए? फ्लाइंग स्क्वायड को पुलिस डिपार्टमेंट और संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी का भी सहयोग मिलेगा। सीएक्यूएम के अनुसार, जल्द ही वह मोहाली या चंडीगढ़ में धान पराली मैनेजमेंट सेल शुरू करेंगे। यह सेल एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट और पंजाव व हरियाणा सरकार के संबंधित विभागों की मदद से चलेगा।

देश की राजधानी में शून्य है पराली प्रदूषण

हवाओं के विपरीत दिशा से आने की वजह से पराली दिल्ली एनसीआर की आबोहवा को प्रभावित नहीं कर पा रही है। आईआईटीएम के डिसिजन सपोर्ट सिस्टम के अनुसार, राजधानी में पराली प्रदूषण अभी शून्य है। वहीं एक्सपर्ट के अनुसार, मॉनसून अब जाने को है, ऐसे में हवाओं की दिशा बदलेगी। इसके साथ ही पराली का धुंआ भी दिल्ली एनसीआर को प्रभावित करना शुरू कर देगा। पराली जलाने के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। इन्हें अभी ही नियंत्रित करना बेहद जरूरी है।

पराली जलाने का दुखद दौर सितंबर से लेकर जनवरी तक चलता है। किसान तमाम अपील और चिंताओं को नकारकर पैसे बचाने के प्रति ज्यादा आग्रही होते हैं, जबकि स्वयं उन्हें भी अपने स्वास्थ्य की चिंता होनी चाहिए। ऐसे किसानों को समय रहते सर्वोच्च न्यायालय की चिंता पर भी ध्यान देना चाहिए। पिछले साल भी न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि फसल अवशेष जलाने के क्रम को तत्काल रोका जाए, हम लोगों को मरने नहीं दे सकते। राज्यों को भी एक-दूसरे पर दोष मढ़कर पीछा छुड़ाने की राजनीति से बाज आना चाहिए। इस बार लोगों को वायु प्रदूषण से राहत की बहुत उम्मीद है पर अभी से जो लक्षण दिखने लगे हैं, वे चिंता बढ़ा रहे हैं।

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