देश में किसानों के सामने डीएपी की समस्या

गेहूं समेत रबी फसलों की बुवाई का मौसम चल रहा है लेकिन लाल सागर में संकट की वजह से किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट डीएपी का है। देश को प्रत्येक वर्ष खरीफ एवं रबी दोनों फसलों के लिए 90 से 100 लाख टन डीएपी  की जरूरत पड़ती है जिसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। बाकी के लिए हमें दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस वर्ष भी देश में लगभग 93 लाख डीएपी की जरूरत बताई गई है लेकिन घरेलू उत्पादन एवं आयात दोनों को मिलाकर उपलब्धता लगभग 75 लाख टन डीएपी की है। संकट दिख रहा है लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों को आश्वस्त किया है कि उर्वरक की कमी नहीं होने दी जाएगी। तरल संस्करण नैनो डीएपी के भी इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जा रहा है।

डीएपी संकट के बारे में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि हमारी निर्भरता दूसरे देशों पर ज्यादा है। मुख्य रूप से रूस, जार्डन एवं इजरायल से आयात करना पड़ता है। डीएपी के कच्चे माल के रूप में म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) का आयात जार्डन से करीब 30 प्रतिशत और इजरायल से 15 प्रतिशत होता है। हाल के दिनों में हाउती विद्रोहियों के आक्रमण के चलते उर्वरक के जहाजों को दक्षिण अफ्रीका के रास्ते भेजना पड़ रहा है। इसके चलते पहले की तुलना में लगभग 6500 किलोमीटर की दूरी अधिक तय करनी पड़ रही है। इसमें लगभग तीन सप्ताह का समय ज्यादा लग रहा है।

दूरी और समय बढ्ने से उर्वरकों की आयात लगभग बढ़ गई है। अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में भी व्रद्धि हुई है। हालांकि तमाम चुनौतियों के बावजूद केंद्र सरकार ने किसानों को सस्ती दर पर उर्वरक की उपलब्धता जारी रखते हुए कीमतों को भी स्थिर बनाए रखा है। किसानों को प्रत्येक 50 किलोग्राम डीएपी बैग के लिए 1350 रुपए देने पड़ते हैं। कृषि के आधुनिकीकरण एवं उच्च उत्पादकता दर की जरूरत के हिसाब से डीएपी का आयात भी बढ़ता जा रहा है। 2019-2020 में 48.70 लाख टन डीएपी का आयात हुआ था जो 2023-24 में बढ़कर 55.67 लाख टन तक पहुंच गया। इसी तरह 2023-24 में डीएपी का घरेलू उत्पादन मात्र 42.93 लाख टन था।

पंजाब हरियाणा में ज्यादा मांग

डीएपी की ज्यादा मांग पंजाब एवं हरियाणा से आ रही है जहां रबी फसलों की बुवाई प्रारम्भ हो चुकी है। बाकी राज्यों में अभी धान की फसलें पूरी तरह नहीं कटी है। मध्य नवंबर और दिसंबर से अन्य राज्यों में भी मांग बढ्ने वाली है।

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने दावा किया है कि खाद की कमी नहीं होने दी जाएगी। पंजाब में डीएपी की कमी के आरोपों को खारिज करते हुए ब्यौरा भी दिया है कि केंद्र ने अक्टूबर में पंजाब को 92 हजार टन डीएपी एवं 18 हजार टन एनपीके कि आपूर्ति की है। नवंबर के पहले हफ्ते में भी केंद्र द्वारा 50 हजार टन डीएपी पंजाब को भेजा जाना है। हरियाणा का भी ऐसा ही हाल है। केंद्र की रिपोर्ट बताती है कि सितंबर में हरियाणा की ओर से 60 हजार टन डीएपीई की मांग आई थी मगर केंद्र की तरफ से 64 हजार 708 टन डीएपी की आपूर्ति की गई जो मांग से ज्यादा है।  

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