केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख लंबे समय से सुविधाओं के अभाव और स्थानीय मुद्दों को लेकर चर्चा में रहा है। सोनम वांगचुक ने इन समस्याओं के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए। यहां तक कि भूख हड़ताल का सहारा लिया। हालांकि, अब केंद्र सरकार ने लद्दाख के लोगों के लिए एक बड़ी राहत की घोषणा की है। लद्दाख से निर्दलीय सांसद हनीफा जन ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी।
हनीफा जन ने कहा-
“केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लेह एपेक्स बॉडी (LAP) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की, जिसमें आरक्षण को लेकर फैसला लिया गया।इस फैसले की डिटेल्स अगली मीटिंग में फाइनल होगी, जो 15 जनवरी को होगी। गृह मंत्रालय ने कहा कि लेह और कारगिल की अलग-अलग लोकसभा सीट पर फैसला जनगणना के बाद किया जाएगा।”
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद लद्दाख में स्थानीय लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 95 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया है। इसके साथ ही, पहाड़ी परिषदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण का प्रस्ताव भी रखा गया है।
पहाड़ी परिषदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस मीटिंग में हनीफा जन, नित्यानंद राव के अलावा होम सेक्रेटरी गोविंद मोहन, पूर्व भाजपा सांसद थुपस्तन छेवांग, गृह मंत्रालय के अधिकारी, लेह अपेक्स बॉडी के आठ और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के आठ प्रतिनिधि शामिल हुए। मीटिंग में आरक्षण-लोकसभा सीट के अलावा चार अन्य मांगों पर भी केंद्र सहमत हो गया।
1.केंद्र सरकार लद्दाख की पहाड़ी परिषदों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने पर भी राजी हो गई है।
2. केंद्र सरकार उर्दू और भोटी को लद्दाख की आधिकारिक भाषा घोषित करने पर सहमत हो गई है।
3. गृह मंत्रालय ने लद्दाख के कल्चर को बचाए रखने के लिए 22 लंबित कानूनों की समीक्षा करने पर हामी भरी।
4. वहीं, गृह मंत्रालय ने कहा है कि लद्दाख के लोगों की जमीन से जुड़ी चिंताएं भी दूर की जाएंगी।
थुपस्तान छेवांग, जो इस वार्ता का हिस्सा थे, उन्होंने बताया –
“लद्दाख के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग बनाना संवैधानिक रूप से संभव नहीं है। इसका कारण यह है कि लद्दाख के पास अपनी विधानसभा नहीं है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि भर्तियां तुरंत शुरू होंगी। हमने यह भी कहा कि गजटेड पदों के लिए भर्तियां जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग (जेकेपीएससी) के माध्यम से होनी चाहिए, न कि दानिक्स (दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सिविल सेवा) के जरिए।”
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि डॉक्टर और इंजीनियर जैसे गजटेड पदों के लिए भर्ती जल्द शुरू की जाएगी।
आर्टिकल 370 हटने के बाद शुरू हुआ आंदोलन
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाकर पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था। इसके बाद जम्मू-कश्मीर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बना। लेह और कारगिल को मिलाकर लद्दाख अलग केंद्र शासित प्रदेश बना था। इसके बाद लेह और कारगिल के लोग खुद को राजनीतिक तौर पर बेदखल महसूस करने लगे। उन्होंनें केंद्र के खिलाफ आवाज उठाई। बीते दो साल में लोगों ने कई बार विरोध प्रदर्शन कर पूर्ण राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा मांगते रहे हैं, जिससे उनकी जमीन, नौकरियां और अलग पहचान बनी रहे, जो आर्टिकल 370 के तहत उन्हें मिलता था।
लद्दाख के लोगों की प्रमुख मांगे
- लद्दाख को राज्य का दर्जा।
- संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कर आदिवासी क्षेत्र का दर्जा।
- स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में आरक्षण।
- लेह और कारगिल के लिए अलग-अलग संसदीय सीटें।
- अभी लद्दाख में एक लोकसभा सीट है, लेकिन अब दो लोकसभा सीट (कारगिल और लेह) की मांग हो रही है।
केंद्र ने मांगे मानने से किया था इनकार
इस साल की शुरुआत में बौद्ध बाहुल्य लेह और मुस्लिम बाहुल्य कारगिल के नेताओं ने लेह स्थित एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस के बैनर तले हाथ मिलाया। इसके बाद लद्दाख में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और भूख हड़ताल होने लगी। केंद्र ने मांगों पर विचार करने के लिए एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया। हालांकि, प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत सफल नहीं हुई। 4 मार्च को लद्दाख के नेताओं ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और बताया कि केंद्र ने मांगें मानने से इनकार दिया है। इसके दो दिन बाद वांगचुक ने लेह में अनशन शुरू किया था।
सोनम वांगचुक की मांगे
सोनम वांगचुक ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी, जिससे यहां के लोगों को आदिवासी दर्जा मिल सके। अपनी मांगों को लेकर उन्होंने भूख हड़ताल तक की। इसके अलावा, उन्होंने स्थानीय रोजगार और संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिए कई अन्य मांगे भी उठाईं। केंद्र सरकार ने इस दिशा में मदद का आश्वासन दिया था।